नई नौकरियाँ आपसे क्या माँगती हैं?
नई नौकरियाँ हों या नई सेवाएँ, आपसे क्या माँगती है? आप दूसरे के यहाँ सेवा देने जा रहे हों, या खुद अपनी संस्थान में सेवा देने जा रहे हैं (यानि उद्यमी हैं), बात एक ही है, क्योंकि दोनों में उत्कृष्ट एवं प्रासंगिक बुद्धिमता एवं कौशल चाहिए ही| इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता, कि आप युवा हैं या प्रौढ़ यानि आप उम्र के किस पड़ाव पर है? आपको यदि कुछ भी नया और प्रभावी (असरदार) करना है, तो आपको वह सब करना ही पडेगा, जो आज की बदलती तकनीकों पर आधारित ज़माना माँग रहा है| यदि आप आज की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप (Proportion) और अनुकूल (Compatable) नहीं हैं, तो आप ‘बासी’ (Stale/ Musty) हो चुके हैं, और आपकी इस आधुनिक एवं डिजीटल तकनीक के युग में कोई उपयोगिता नहीं बची है| कुछ भी नया, अलग और प्रभावी करने का अर्थ सिर्फ यही है कि आप अभी के समय में यानि अभी की आधुनिकता और डिजीटल तकनीक के युग में सान्दर्भिक हैं, यानि प्रासांगिक (Relevant) हैं, यानि आप अभी भी किसी काम के हैं, तो ठीक है, अन्यथा आप की कोई जरूरत ही नहीं है|
आज आधुनिक विशेषज्ञ यह बताते हैं, कि नई नौकरियों के लिए आपको ‘आलोचनात्मक चिन्तन’ यानि “क्रिटिकल थिंकिंग” (Critical Thinking) और ‘भावनात्मक बुद्धिमता’ यानि “इमोशनल इंटेलिजेंस” (Emotional Intelligence) के साथ साथ “जेनेरेटिव ए आई” (Generative AI) की कुशलता (Skill) और व्यावहारिकता (Viability) आनी ही चाहिए| तो इसका क्या अर्थ हुआ? लेकिन हमें यह समझ में नहीं आता है, कि प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान और प्रतिष्ठित ज्ञान संस्थान के विद्वान् प्रोफ़ेसर मात्र ‘संज्ञानात्मक बुद्धिमता’ (Cognitive Intelligence) यानि सामान्यत: प्रचलित ‘सामान्य बुद्धिमता’ (General Intelligence) और ‘भावनात्मक बुद्धिमता’ (Emotional Intelligence) तक ही क्यों सीमित रखते हैं, या रहते हैं? ये क्यों नहीं हमें इसके भी पार (ऊपर की) की ‘सामाजिक बुद्धिमता’ (Social Intelligence) और ‘बौद्धिक बुद्धिमता’ (Wisdom Intelligence) तक जाते हैं? मैं आपको इन चारो बुद्धिमता के बारे में बताऊंगा भी, और समझाऊंगा भी|
इसके साथ ही हमें सिर्फ ‘आलोचनात्मक चिंतन’ (Critical Thinking) को जानना ही नहीं चाहिए, बल्कि इसके साथ यह भी जानना चाहिए कि यह आलोचनात्मक चिंतन किसी में कैसे विकसित होता है? यह “जेनेरेटिव ए आई” (Generative AI यानि Generative Artificial Intellegence) क्या है, और कैसे उपयोगी है? इतना ही जान लेने से इसमें कुशल, दक्ष एवं व्यावहारिक होने की जरुरत का पर्याप्त कारण मिल ही जायगा| अकसर विद्वान् लोग बताते हैं कि आगे बढ़ने के लिए किसी में आलोचनात्मक चिन्तन का होना बहुत जरुरी है, और यह क्या होता है, इतना ही बता कर छोड़ देते हैं| वे इसे सरल, साधारण एवं सहज शब्दों और भावों में यह नहीं बता पाते हैं कि यह आलोचनात्मक चिन्तन की दक्षता विकसित कैसे होती है, संवर्धित कैसे होती है, और कैसे नवाचारी (Innovative) हो जाती है? मैं यहाँ संक्षेप में इसे बताउँगा, क्योंकि कोई भी आलेख शब्दों की सीमा खोजती है| विस्तार से तो अगले विडिओ में भी दे सकता हूँ, या ऐसी ही अन्य आलेख में भी प्रस्तुत कर सकता हूँ|
आलोचनात्मक चिंतन का सीधा और साधारण अर्थ होता है – किसी भी चीज यानि किसी भी विषय को समुचित ढंग से समझना| मतलब किसी अंधभक्त की तरह यानि किसी आस्थावान की तरह यानि किसी झुण्ड के भेड़ की तरह पीछे पीछे नहीं चलना, बल्कि किसी भी चीज को अपनी बुद्धि, तर्क एवं विवेक से उसे सही तरीके से समझना और निर्णय लेना| इसीलिए बड़ी बड़ी कंपनियों, संस्थानों एवं सरकारी उच्च पदस्थ स्थानों पर ऐसे ही गुणवत्ता के व्यक्ति चयनित किये जाते हैं| इसी महत्ता के कारण ही इसे नई शिक्षा नीति- 2020 में प्रमुख स्थान दिया गया है, जिसकी चर्चा अक्सर सभी बड़े लोग करने लगे है| इससे सम्बन्धित प्रश्न साक्षात्कार (Interview) और लिखित परीक्षाओं में भी आने लगे हैं|
आप आलोचनात्मक चिन्तन यानि क्रिटिकल थिंकिंग को अच्छी तरह समझने के लिए अंग्रेजी के पाँचों Vovel (स्वर) – ‘A’, ‘E’, ‘I’, ‘O’, एवं ‘U’ को क्रमानुसार याद रखें, आप इसकी अवधारणा (Concept) और इसकी क्रियाविधि (Methodology) को कभी भी नहीं भूलेंगे| इन पाँचो Vovel (स्वर) – A, E, I, O, एवं U को पाँच क्रिया (Verbs) – ‘Analyse’, ‘Examine’, ‘Inquire’, ‘Open’ एवं ‘Unite’ के रूप में क्रमानुसार ही याद रखें| किसी भी शब्द, या वाक्य, या प्रसंग या सन्दर्भ, या अन्य कोई भी बात को इसी क्रम में जांचे और कसे, आपको सब कुछ स्वत: स्पष्ट होता जायगा| किसी चीज को ‘Analyse’ करने का अर्थ हुआ, कि उसको उसके मुलभुत तत्वों में ऐसा खंडित करना, कि उसकी प्रकृति का निर्धारण हो सके एवं उसके निश्चित संबंधों को जाना सके| फिर उसको ‘Examine’ करने का अर्थ हुआ, कि उसको उसके मुलभुत तत्वों, संबंधों और प्रसंगों को निकटता से जांच पड़ताल करना| तब उसका ‘Inquire’ करना, अर्थात उसके सम्बन्ध में विविध पक्षों एवं दृष्टिकोणों से प्रश्न खड़ा कर और विवेकपूर्ण ढंग से सत्यता तक पहुँचना होता है| इसके बाद ‘Open’ आता है, जिसका अर्थ हुआ कि इसे किसी बंद यानि संकीर्ण अर्थ यानि परिधि से बाहर करना, ताकि इसका व्यापक सन्दर्भ में अर्थ निकाला और समझा जा सके| सबसे अन्त में ‘Unite’ करना हुआ, जिसका कई अर्थ होते हैं, जैसे उपरोक्त सभी प्रक्रियाओं एवं तथ्यों को एकत्रित करना, या समाहित करना (Integrate), या समाज, राष्ट्र और मानवता के सन्दर्भ में एकत्रित करना होता है| इस तरह क्रिटिकल थिंकिंग का अर्थ हुआ कि सम्बन्धित विषय का एक व्यापक, समेकित, समुचित, सार्थक, तार्किक, वैज्ञानिक एवं विवेकपूर्ण निष्कर्ष पर आना, जिसे सभी विचारवानों को जानना एवं समझना चाहिए|
किसी को भी यदि क्रिटिकल थिंकिंग को अपेक्षित ढंग से और वैज्ञानिक तरीके से विकसित करना है, तो उसे चार्ल्स डार्विन का ‘विकासवाद’ (Theory of Evolution), कार्ल मार्क्स का ‘आर्थिकवाद (Theory of Economic Forces)’, सिगमण्ड फ्रायड का ‘आत्मवाद’ (Theory of Self), अल्बर्ट आइन्स्टीन का ‘सापेक्षवाद’ (Theory of Relativity), और फर्डिनांड डी सौसुरे का ‘संरचनावाद’ (Theory of Structure/ Structuralism) को समझना चाहिए| तब वह व्यक्ति “Critical Thinking” में पारंगत हो जायगा| तब वह किसी भी क्षेत्र में उचाईयों को छुएगा|
चार्ल्स डार्विन का ‘विकासवाद’ (Theory of Evolution) समझाता है कि ब्रह्मांड में सब कुछ सरलतम (Simpler) स्तर से जटिलतर (Complexer) अवस्था में विकसित हुआ है और इसलिए किसी भी कृतत्व (Creation) में दैवीय शक्ति (Divine Power) का योगदान नहीं है। इस तरह इनके द्वारा पर्याप्त साक्ष्य के साथ ईश्वर (God) और ईश्वरीय व्यवस्था के अस्तित्व का खंडन हुआ, जो एक क्रांतिकारी घटना थी। अब विकासवादी सिद्धांत कई क्षेत्रों में व्यापक स्वरूप में प्रयुक्त होता है, जो कई परम्परागत अवैज्ञानिक अवधारणाओं को ध्वस्त करता है।
कार्ल मार्क्स के ‘आर्थिकवाद (Theory of Economic Forces)’ के अनुसार सामाजिक स्थायी बदलाव यानि सामाजिक रुपांतरण (Social Transformation) की यानि इतिहास की वैज्ञानिक और समुचित व्याख्या आर्थिक शक्तियों के साधन और उनके अन्तर्सम्बन्धों के आधार पर ही, यानि उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग के साधनों और शक्तियों के आधार पर ही किया जाना समुचित और वैज्ञानिक है। यह वैज्ञानिक व्याख्या की क्रियाविधि (Methodology) कई बनावटी मिथकों को इतिहास से बाहर कर देता है।
सिगमण्ड फ्रायड का ‘आत्मवाद’ (Theory of Self) बताता है कि किसी भी आदमी की मनोदशा और उससे संबंधित सभी व्यवहार उसके आत्म (Self, आत्मा नहीं) के इड (Id), इगो (Ego) और सुपर इगो (Super Ego) के मध्य एक समुचित संतुलन से निर्धारित होता है। ‘इड’ किसी की पाशविक अभिवृत्तियों को अभिव्यक्त करता है, और ‘सुपर इगो’ समाज के उच्चतर आदर्श, मूल्य एवं प्रतिमान को अभिव्यक्त करता है। और आदमी इनके बीच अपनी सांस्कृतिक जड़ता, पृष्ठभूमि, अनुभव, ज्ञान, परिस्थिति, दबाव, व्यवस्था आदि के अनुसार अपने को संतुलित करता है और तदनुसार व्यवहार करता है।
अल्बर्ट आइन्स्टीन के ‘सापेक्षवाद’ (Theory of Relativity) के अनुसार ब्रह्मांड में सब कुछ की स्थिति किसी विशेष के सापेक्ष (Relative) ही निर्धारित की जा सकती है। इसके अनुसार किसी भी चीज की अवस्था (Stage), गति (Motion), समय (Time), उर्जा, पदार्थ, आकाश (Space), बल (Force) आदि किसी के सापेक्ष ही निश्चित और निर्धारित किया जा सकता है। अर्थात किसी भी वस्तु या विषय या विचार का अर्थ उसके संदर्भ (Reference), पृष्ठभूमि (Background), समय, प्रस्थिति (Status), क्षेत्र (Region) आदि की सापेक्षता के अनुसार बदलता है। यह बहुत कुछ नवाचारी (Innovative) दृष्टिकोण देता है।
और
फर्डिनांड डी सौसुरे का ‘संरचनावाद’ (Theory of Structure/ Structuralism) यह समझाता है कि शब्दों, वाक्यों, प्रसंगों का सिर्फ वही अर्थ नही होते हैं, जो दिखाई देता है, बल्कि उनके वास्तविक अर्थ उसकी संरचना (Structure) में होता है। अर्थात किसी भी शब्द, वाक्य, प्रसंग के सतही (Superficial) अर्थ भी होता है और निहित (Implied) अर्थ भी होता है, जिसे समझ कर ही आप सही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकते हैं। इन सभी को यहां उदाहरण सहित विस्तार से समझाया नहीं जा सकता है। कभी और विस्तार से समझाऊंगा।
अब हमें बुद्धिमता यानि Intelligence को अच्छी तरह समझना चाहिए| साधारण बुद्धिमता को सामान्यत: रटन्त ज्ञान भी माना जाता है| वस्तुत: यह संज्ञानात्मक बुद्धिमता है, जिसमे किसी भी चीज (वस्तु, या प्रक्रिया, या विचार, या भाव) का अवलोकन करना, उसे पहचानना, उससे निष्कर्ष निकालना, उस पर चर्चा यानि विमर्श करना और उसको संवाहित (Communicate) करना शामिल होता है| भावनात्मक बुद्धिमता में सामने वाले की भावों यानि मनो भावों को समझना, यानि उसे स्थान पर स्वयं को रखकर उसकी अनुभुति (Empathy, not Sympathy) को समझना, अपनी भावों का सम्यक मूल्याङ्कन करना, और तब उसके अनुरूप अपनी भावनाओं को संयमित एवं नियमित यानि अनुकूल करना होता है| भावनात्मक बुद्धिमता की अवधारणा डेनियल गोलमैन की है| इसका सन्दर्भ आपके और सामने वाले व्यक्ति तक ही सीमित होता है|
सामाजिक बुद्धिमत्ता में सन्दर्भ सिर्फ उन दो व्यक्तियों का ही नहीं होते हैं, इसमें पूरा समाज शामिल कर लिया जाता है| अर्थात निर्णय लेने में पुरे समाज को ध्यान में रखा जाता है| अब किसी समाज की परिधि क्या होगी, यह आवश्यकता, समय, क्षेत्र एवं परिस्थिति के अनुसार बदलता है| यह अवधारणा कार्ल अल्ब्रेच की है, और इसमें पहले वाले दोनों – संज्ञानात्मक बुद्धिमता और भावनात्मक बुद्धिमता अवधारणा भी शामिल है| जब कोई भावनात्मक एवं क्रियात्मक निर्णय में पूरी मानवता और प्रकृति को भी शामिल कर लेता है, तब वह बौद्धिक बुद्धिमता का उदहारण हो जाता है, जो तथागत गोतम बुद्ध का था| आप इस सबो का अलग से विस्तार से अध्ययन कर सकते हैं|
“जेनेरेटिव ए आई” (Generative AI यानि Generative Artificial Intellegence) सिर्फ एक वर्तमान ‘सान्दर्भिक’ (Relevant) ‘तकनीक’ (Technique या Technology) है| तकनीक क्या होता है| जब विज्ञान के आधार पर यानि विज्ञान के मुलभुत सिद्धांतों के आधार पर किसी समस्या का समाधान पाया जाता है, उसे अभियंत्रण यानि इंजीनीयरिंग (Engineering) कहते हैं| लेकिन जब इस इंजीनीयरिंग के आधार पर किसी समस्या का कोई व्यवहारिक सरल समाधान पा लिया जाता है, जो अधिकतर मशीन, उपकरण, यन्त्र, हथियार, उपस्कर आदि के उपयोग से होता है, तो वह तकनीक या प्रौद्योगिकी (Technology) कहलाता है| जब किसी समस्या का सरल एवं व्यवहारिक समाधान के लिए कोई तकनीक उपलब्ध है, तब उसका समुचित उपयोग नहीं किया जाना समय, संसाधन, ऊर्जा, धन, एवं मानव शक्ति का बर्बादी है यानि दुरूपयोग है| यह सब तकनीक आधारित साधन इसीलिए बनाया गया है, कि कोई भी इसके उपयोग एवं प्रयोग के द्वारा अपने व्यक्तिगत लाभ के साथ साथ उस संस्थान को भी लाभ उपलब्ध करावें| “जेनेरेटिव ए आई” कोई ख़ास तकनीक नहीं है, बल्कि यह मात्र एक आधुनिकतम यानि सबसे नवीनतम साफ्टवेयर है, जो कृत्रिम बुद्धिमता यानि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस पर आधारित है| कल इससे भी बेहतर तकनीक आएगा, और आपको उससे से भी वाकिफ होना होगा, यदि वह आपके समय में आ जायगा, तो|
उपरोक्त तीनों पर सम्यक ढंग से विचार करे और जाने (Educate), मनन मंथन करे (Agitate), उसे समझें और अपनी आवश्यकता के अनुसार व्यवस्थित (Organise) भी करे| इसे ही ‘Educate’, ‘Agitate’ एवं ‘Organise’ करना भी कहते है| यही सफलता का मूल, वास्तविक एवं व्यावहारिक मंत्र है, चाहे आप परीक्षार्थी है, चाहे आप रोजगार (बौद्धिक) चाहते हैं, या आप प्रोन्नति चाहते हैं, या आप कोई भी ऊँचाई चाहते हो| इस पर ठहर कर विचार कर लीजिए|
आचार्य निरंजन सिन्हा