पतित पावनी गंगा व उसकी सहायक नदी जरगो के बीच बसा है बगही गांव। मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील का यह ढाब एरिया है। इस गांव के चरण को गंगा शायद इसीलिए हर साल बरसात में चूमती हैं कि यह उसके काबिल है। आजादी के आंदोलन से लेकर समाज सुधार कार्यों में अपना खून-पसीना बहाने वाले इस गांव को आज मॉडल गांव की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली है। इस गांव को मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल ने आदर्श सांसद ग्राम योजना के तहत गोद भी लिया है। पढ़िए इस गांव की खासियत की चौथी कड़ी…
बलि प्रथा को बंद कराने के लिए बकरे के स्थान पर रख दी थी अपनी गर्दन
बैजनाथ सिंह शुक्ल व विनायक प्रसाद सिंह बने इसके सूत्रधार
राजेश पटेल, बगही मिर्जापुर (सच्ची बातें)। समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ लड़ना आसान नहीं है। लड़ने के लिए बगही जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति और खुद को बलिदान कर देने का माद्दा होना चाहिए। मिर्जापुर जनपद के चुनार तहसील में स्थित शिवशंकरी धाम में नवरात्र के दौरान बकरे की बलि को बंंद कराया गया तो इसमें सौ फीसद बगही के बाशिंदों का ही श्रेय है।
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बात 1960-61 की है। बगही के आर्य वीर दल ने ठान लिया था कि शिवशंकरी धाम मंदिर में अब बलि प्रथा को बंद कराना है। इसके लिए जनजागरण शुरू कर दिया। लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था, लेकिन बगही तो हर काम में अगही रहने वाला जो ठहरा।
नवरात्र में मंदिर में बकरों की बलि बंद कराने के लिए एक दिन बगही गांव के बैजनाथ सिंह शुक्ल व विनायक प्रसाद सिंह ने बकरे को जबरन हटाकर ठीहा पर अपनी गर्दन रख कर बलि देने वाले से गड़ासा चलाने को कहा। गड़ासा चलाने वाले के हाथ रुक गए।
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इसी के साथ शिवशंकरी धाम मंंदिर परिसर में बकरों की जो बलि बंद हुई, आज तक बंद ही है।
कायस्थ कुल की एक विधवा को नापाक हाथों में जाने से बचाया था बगही गांंव के लोगों ने
बात 1935 की है। कायस्थ कुल की एक विधवा अपनी ससुराल से तंंग आकर इलाहाबाद से बनारस जाते समय कैलहट स्टेशन पर उतर गई। अनजाने स्टेशन पर वह इधर-उधर भटकने लगी। उसे भटकते देख स्टेशन का एक मुसलमान खलासी उसके पास गया। बातचीत की। फिर उसे अपने आवास में ले गया।
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वहां से अपने गांवं सहसपुरा ले गया। गांव की महिलाओं ने देखा तो उनको पता चला कि वह हिंदू महिला है। उसके हाथ पर गोदना से श्यामप्यारी लिखा था। फिर क्या था। महिलाओं के माध्यम से यह बात पुरुषों तक पहुंची। सहसपुरा के कुछ लोग बगही आए और आर्यसमाज के मंत्री बैजनाथ सिंह शुक्ल को सारी बातें बताईं।
बैजनाथ सिंह बिना देर किए सहसपुरा गए। उस समय मुसलमान खलासी अपने कुछ रिश्तेदारों को बुलाकर निकाह करने की तैयारी में था। बैजनाथ सिंह ने वहां से विधवा महिला को काफी प्रयास के बाद मुक्त कराया तथा उसे लेकर चुनार थाने गए। मुसलमान खलासी भी थाने गया।
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तत्कालीन थानेदार रामध्यान सिंंह ने ध्यान से सारी बातों के सुनने के बाद महिला को बैजनाथ सिंह के हवाले कर दिया। बैजनाथ सिंह उसे लेकर गांव आए तथा कुछ दिन बाद विज्ञापन निकलवाकर बनारस कबीरचौरा में जनाना अस्पताल के पीछे गिरीश सहाय लेन में शिक्षक शिवनायक से शादी करा दी। इसमें कन्यादान बगही के ही विक्रमा सिंह गांधी ने किया था। अपने जीवन काल में शादी आदि अवसरों पर वह महिला बैजनाथ सिंह शुक्ल के यहां बगही आती थी।
जारी…
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