September 16, 2024 |

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यक्ष प्रश्नः नीतीश, लालू, मायावती के बाद वंचित समाज का वकील कौन ?

Sachchi Baten

यूपी व बिहार दोनों राज्यों में भविष्य के नेतृत्व की तलाश का सही समय यही

 

राजेश पटेल


नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और सुश्री मायावती। इस समय हिंदी पट्टी में ओबीसी और दलित राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूम रही है। इन्हीं तीन नेताओं की चर्चा होती है। इन तीन के अलावा एक चौथा नाम हम सभी भूल जाते हैं। वह है अनुप्रिया पटेल।

ओबीसी समाज के लिए सोचने का वक्त आ गया है कि वह अभी तय करे कि 15-20 साल बाद उनकी आवाज कौन बुलंद करेगा। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव तथा मायावती तीनों नेता उम्र दराज हैं। नीतीश कुमार 72 के, लालू प्रसाद यादव 75 के तथा मायावती 68 साल की हो गई हैं। इनके बाद हिदी पट्टी में कोई ऐसा नहीं दिखता जो पूरे ओबीसी व दलित समाज का वकील बनता दिखे।

इसके लिए पद, कद, उम्र, समझ, शिक्षा, समर्पण, सहकार, बोलने की कला के साथ अच्छा रणनीतिकार का होना आवश्यक है। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव तथा मायावती  के बारे में तो सभी जानते ही हैं। इन तीनों नेताओं में उपरोक्त सभी गुण हैं, तभी आज नायक के रूप में जाने जा रहे हैं।

बात इनके बाद के विकल्प की हो रही है तो इसमें अनुप्रिया पटेल की चर्चा आवश्यक है। वह अंतरमुखी हैं। जल्दी घुल-मिल नहीं पातीं, इसलिए इनके स्वभाव को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। लेकिन जो दिखता है, उससे तो यही लगता है कि उनमें वंचित समाज का सर्वमान्य नेता बनने के सारे तो नहीं कहा जा सकता, अधिकतर गुण हैं। उम्र के साथ परिपक्वता और बढ़ेगी ही।

वंचित समाज का ऐसा कोई मुद्दा नहीं, जिसपर संसद में आवाज न उठाई हो

अनुप्रिया पटेल को मिर्जापुर से सांसद बने नौ साल से ज्यादा हो चुके हैं। मोदी सरकार-1 में दो साल से ज्यादा राज्य मंत्री रहीं। मोदी सरकार-2 में भी विस्तार में राज्य मंत्री बनीं। वर्ष 2014 के चुनाव के समय से ही अनुप्रिया पटेल की पार्टी उस समय अपना दल अब अपना दल एस का भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन है। सरकार के साथ और सरकार में शामिल होने के बाद भी वह ओबीसी तथा दलित समाज के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहीं।

एनडीए की बैठक हो या आल पार्टीज बैठक। संसद में भी उन्होंने नई दिल्ली में सरदार पटेल की समाधि बनाने, जातिगत जनगणना कराने, नीट में आरक्षण बहाल करने, आज भी सबसे निचले पायदान पर डोम समाज की स्थिति में सुधार करने, पान की खेती को कृषि का दर्जा देने, केंद्रीय विद्यालय तथा जवाहर नवोदय विद्यालय के प्रवेश में ओबीसी बच्चों के लिए 27 फीसद आरक्षण की मांग सहित तमाम मुद्दों को उठाया। केंद्र सरकार में अलग से पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय बनाने, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक मान्यता देने की भी बात वह कई बार उठा चुकी हैं। कुछ में सफलता मिल गई, कुछ प्रक्रियाधीन हैं। कुछ अभी प्रक्रिया में भी नहीं आई हैं। लेकिन अपनी बात उचित फोरम पर कहती रहती हैं।

नीतीश, लालू व मायावती उम्र की ढलान पर, अनुप्रिया बढ़ रही परिक्वता की ओर

नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और मायावती की उम्र से अंदाज लगा सकते हैं कि वह कितने दिनों तक वंचित समाज की अगुवाई कर सकते हैं। ठाकुर का कुआंं... कविता पढ़ने पर मची रार के विरोध में लालू प्रसाद यादव के बाद कौन खड़ा होगा। फिर किसके शासनकाल को सुशासन कहेंगे। जिस जाति को लेकर अदम गोंंडवी ने कविता लिखी- आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को,
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको…। फिर कौन गर्व से कहेगा कि वह उसी समाज की बेटी है या बेटा है। वंचित समाज के सामने ये यक्ष प्रश्न हैं।

अनुप्रिया पटेल की उम्र अभी 42 साल है। एक बार विधायक रहीं। दो बार से सांसद हैं। दूसरी आजादी के नायक, सामाजिक न्याय के योद्धा जैसे शब्दों से सम्मानित डॉ. सोनेलाल पटेल की बेटी हैंं। अनुप्रिया में सोनेलाल पटेल की विचारधारा कूट-कूट कर भरी हुई है। आज की राजनीति को भी बखूबी समझती हैं। शायद इसी कारण से विचारधारा विपरीत होते हुए भी भाजपा के साथ लंबे समय से गठबंधन में हैं। लेकिन इस बीच यह जताने में वह कामयाब रही हैं कि सामाजिक न्याय की विचारधारा के रास्ते से इधर-उधर नहींं  होंगी। उम्र कम होने  के कारण इनके पास समय है। अभी जो गलतियां हैंं, परिवक्वता के साथ वह दूर ही होती जाएंंगी। ताजा उदाहरण संसद में नारी शक्ति वंदन अधिनियम की चर्चा का है। अनुप्रिया पटेल ने मंत्री रहते  हुए भी अपने भाषण में कहा कि महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण में ओबीसी आरक्षण की विपक्ष की मांग गलत नहीं है।

संसद व संसदीय क्षेत्र में सामंजस्य

केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बावजूद वह अपने संसदीय क्षेत्र मिर्जापुुर को ज्यादा समय देने का प्रयास करती हैं। कभी-कभी तो सुबह आना और शाम को ही जाना हो जाता है। मांगलिक और शोक कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा शिरकत करती ही हैं। विकास भी इनके कर्यकाल में जमकर हुआ। यह कहें कि विकास का दरवाजा मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल के सांसद बनने के बाद ही खुला तो कोई गलत नहीं होगा।

केंद्रीय विद्यालय, इंजीनियरिंंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, विंध्य विश्वविद्यालय, इंडियन ऑयल का पूर्वांचल का सबसे बड़ा डिपो, फोर लेन सड़क जैसे कुछ कालजयी विकास कार्य हैं। इनसे मिर्जापुर का गौरव बढ़ रहा है। शायद यह पहली सांसद होंगी कि विकास के नाम पर कोई विरोध नहीं करता। मिर्जापुर जनपद में गंगा पर शास्त्री ब्रिज के समानांतर और एक दूसरा रामपुर घाट पर नया पुल बनेगा। इन दोनों की  स्वीकृति मिल चुकी है। ऐसा कोई जनपद नहीं होगा, जहां गंगा आर-पार करने के लिए पांच पुल हों। मिर्जापुर जनपद में चुनार घाट, भटौली घाट तथा शास्त्री ब्रिज हैं।

बड़ा नेता बनने के लिए समाज का समर्थन जरूरी

कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को छोड़ दें तो समाजवादी पार्टी व  बहुजन समाज पार्टी का समर्थक पहले समाज रहा। इसके बाद विस्तार हुआ तो अन्य जातियां भी जुड़ने लगीं। बिहार में जनता दल यू नेता नीतीश कुमार के साथ भी उनका समाज मजबूती से खड़ा है। उन्होंने किसी से भी हाथ मिलाया, बिहार में उनके समाज ने नीतीश का हाथ नहीं छोड़ा। इसी तरह से बहुजन समाज पार्टी भी है। बसपा के आधार संगठन दलित शोषित संघर्ष समाज समिति डीएस-4 से सबसे पहले दलित जाति ही जुड़ी। किसी भी संकट में साथ नहीं छोड़ा। पार्टी नेतृत्व ने जिसे चुनाव में उतारा, उसे ही वोट दिया। हालांकि बसपा की इस स्थिति में अब छोड़ा सा बदलाव आया है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव में भविष्य का नेता तलाशने वाले ओबीसी को यह जानना चाहिए कि वह नेताजी मुलायम सिंह यादव नहीं बन सकते। इसके साथ कुछ ओबीसी जातियां उनसे जुड़ ही नहीं सकतीं। दलित भी।

उत्तर प्रदेश में लंबे अरसे से नेतृत्व की तलाश कर रहे कुर्मी समाज को यह बात समझनी होगी। उसे सपा, बसपा, जेडीयू  तथा आरजेडी के स्थाई समर्थकों से सीखने की जरूरत है। यदि कुर्मी समाज अनुप्रिया का हाथ किसी भी परिस्थिति में न छोड़े तो वह भविष्य की बड़ी नेता हैं। कुर्मी समाज के लिए फख्र का कारण बन सकती हैं। कुर्मी समाज की ही एकजुटता अन्य जातियों को भी आकर्षित करेगी। हांलाकि वह जिस पार्टी  की सहयोगी हैं, वह उनको बढ़ने से रोकने का हरसंभव प्रयास कर रही है। पूर्वाचल में प्रभाव कम करने के लिए कई कुर्मी  नेताओं  को आगे किया गया, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। कोई भी अनुप्रिया के कद का नहीं बन सका।

मुद्दों पर देश की संसद में आवाज उठाने के लिए सांसद बनना जरूरी है। विधानसभा के लिए विधायक। सामाजिक न्याय की लड़ाई लंबी है। सांसद व  विधायक का पद इस लड़ाई  में मात्र हथियार हैंं। अ्पनी बात रखने का सबसे बड़ा मंच देश की संसद ही है। वहां आवाज बुलंंद करने के लिए सांसद बनना जरूरी है। डॉ. लोहिया मुद्दों पर सिर्फ चर्चा के  लिए नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़े थे।  वह अपने चुनावी भाषणों में कहते थे कि रिजल्ट क्या होगा, मालूम है। लेकिन मुद्दों पर चर्चा तो हो होगी। चर्चा  बंद हो जाती है तो मुद्दे धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं।

नीतीश कुमार भी इसी सिद्धांत को मानने वाले हैं। भाजपा के साथ गठबंधन पर कुछ चर्चाएं हुईं  तो उन्होंने साफ कहा था-जिंदा रहेंगे, तभी लड़ेंगे और करेंगे भी। मतलब सत्ता। बिहार के कुर्मी भाजपा के साथ रहने पर भी नीतीश के पीछे खड़े थे। लालूू प्रसाद यादव के साथ हैं, तब भी हाथ पकड़े हुए हैं। अब बिहार के कुर्मी समाज के लिए भी सोचने का समय आ गया है  कि नीतीश कुमार के कौन ? यूपी के लिए तो और जरूरी है। इसके लिए अति आवश्यक है कि समर्थन किसी का भी करें, विरोध किसी का न करें।

(लेखक इस पोर्टल के प्रधान संपादक हैं।)


Sachchi Baten

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