सच्ची बातें : संघर्ष के प्रतीक एक नेता का उदय, नाम था यदुनाथ
क्रांतिवीर यदुनाथ सिंह के जीवन पर आधारित राजेश पटेल लिखी पुस्तक 'तू जमाना बदल से'...
संघर्ष के प्रतीक एक नेता का उदय
शिक्षा सत्र 1965-66 चल रहा था। तभी दिसंबर में पाकिस्तान-भारत युद्ध शुरू हो गया। भारत को विजय मिली और उसने पाकिस्तान का काफी हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया। अब पाकिस्तान समझौते की गुहार लगाने लगा। सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री कोसी जिन के प्रयासों से दोनों देशों के बीच ताशकंद समझौता हुआ। उसमें देश का प्रतिनिधित्व ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा देने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी ने किया। समझौते के बाद वहीं पर शास्त्री जी की असामयिक मौत भी हो गई। इसके बाद श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। उस समय भारत सरकार में शिक्षा मंत्री मोहम्मद भाई करीम भाई छागला थे। उन्होंने एक आदेश पारित किया, जिसके अनुसार कॉलेज स्तर (इंटरमीडिएट) से शिक्षा में अंग्रेजी को अधिक महत्व देने और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने की बात कही गई थी।
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इस आदेश के आते ही देश के विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों (विशेषकर उत्तर भारत) में विरोध के स्वर उठने लगे। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में वाराणसी के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में विरोध की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी थी। इसका सर्वाधिक विरोध काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुआ। यहां के छात्रों ने वाराणसी शहर के साथ-साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में भी इस आंदोलन को विस्तार देने का काम किया।
मिर्जापुर जनपद के नरायनपुर, चुनार और उसके आसपास के विद्यालयों में भी विरोध की लहर उठने लगी। इन क्षेत्रों में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के विस्तार देने का काम काशी हिंदू विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग कर रहे एक 20-21 साल के नौजवान ने किया। पुरुषोत्तमपुर के पास स्थित प्रतापपुर के निवासी मेजर अखिलेश कुमार सिंह (एसोसिएट प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष भूगोल विभाग तथा कंपनी कमांडर एनसीसी श्री बलदेव पीजी कॉलेज बड़ागांव वाराणसी) ने बताया कि ने उस समय माधव विद्या मंदिर पुरुषोत्तमपुर में आठवीं के छात्र थे। एक दिन विद्यालय के प्राचार्य की ओर से सभी कक्षाओं में एक नोटिस घुमाया गया, जिसमें सभी छात्रों को प्रार्थना स्थल पर एकत्रित होने की सूचना थी।
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थोड़ी ही देर में सभी छात्र व अध्यापक प्रार्थना स्थल पर एकत्रित हो गए। सभी छात्रों के बैठ जाने के बाद प्राचार्य ने अंग्रेजी को लेकर भारत सरकार के आदेश को पढ़कर सुनाया। फिर एक बाहरी छात्र से परिचय कराया और उसे बोलने का अवसर दिया गया। यह संबोधन शायद उसके जीवन का पहला ही संबोधन था, लेकिन अपने 20 मिनट के भाषण से ही उसने सभी छात्रों में जोश भर दिया। अपने संबोधन के बाद उसने प्राचार्य और शिक्षकों से बात की। इसके बाद कॉलेज को बंद कर दिया गया।
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विद्यालय के सभी छात्र जोश से लबरेज थे। सभी जुलूस के रूप में उस छात्र के पीछे-पीछे चल पड़े। साथ में नारे लगाए जा रहे थे- एमसी छागला मुर्दाबाद, अपना आदेश वापस लो, हमसे जो टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा। छात्र एकता जिंदाबाद। यह जुलूस विद्यालय से पुरुषोत्तमपुर बाजार होते हुए मां शिवशंकरी धाम तक गया। फिर वहां से नारे लगाते हुए पुरुषोत्तमपुर में परसोध वीर बाबा मंदिर के पास सभा के बाद संपन्न हुआ। उस छात्र नेता की निर्भीकता, वकृत्व क्षमता एवं भाषण शैली से सभी छात्र बहुत प्रभावित हुए और निश्चय किया कि फिर आवश्यकता हुई तो इस तरह के आंदोलन में भाग लेंगे।
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यह आंदोलन सत्र 1966-67 तक चला। देश में भारी विरोध के कारण केंद्र सरकार को यह आदेश वापस लेना पड़ा। उत्तर प्रदेश के लिए एक नए आदेश की घोषणा हुई कि यूपी बोर्ड की 1968 की परीक्षा में विज्ञान वर्ग के छात्रों को पांच की जगह केवल चार विषयों में परीक्षी देनी होगी। इनके लिए अंग्रेजी अनिवार्य नहीं होगा। वे चाहे तो परीक्षा दे सकते हैं, लेकिन अंग्रेजी के अंकों को न तो प्राप्तांक में जोड़ा जाएगा और न ही उसका परीक्षाफल पर कोई प्रभाव पड़ेगा। यह छात्र कोई और नहीं था। स्वयं यदुनाथ सिंह जी ही थे। इस प्रकार से पूर्वांचल में एक नेता उदय हुआ, जो आगे चलकर चुनार विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक चुने गए। अन्याय के खिलाफ संघर्षों की नई इबारतें लिखीं।
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‘देश की बोलचाल की एवं राष्ट्रीय भाषा हिंदी हो। इंसानियत के नाम पर कानून बने। हिंदू-मुसलमान में, छोटी जाति एवं बड़ी जाति में फर्क न हो। जमीन, रेलगाड़ी, जहाज, तार-डाक, बैंक, फैक्ट्री ऐसी आवश्यक सेवाएं प्राइवेट न हों। इसके लिए मैं लड़ता रहूंगा। मेरी मौत या तो जनता मुक्ति रणक्षेत्र में होगी या शासन में जाकर होगी।’
-यदुनाथ सिंह (24 सितंबर 1970 को जेल से लिखे गए एक पत्र का अंश)
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