घर में पिता के खिलाफ ही फूंक दिया विद्रोह का विगुल यदुनाथ सिंह (Yadunath Singh) ने
राजेश पटेल द्वारा लिखित पुस्तक 'तू जमाना बदल' से
घर में पिता के खिलाफ ही फूंक दिया विद्रोह का विगुल
राजेश पटेल द्वारा लिखित पुस्तक ‘तू जमाना बदल’ से…
अन्याय कभी किया बर्दाश्त नहीं, सहा नहीं कभी अपमान।
न्याय संग की हमेशा यारी, दिया सबको उचित सम्मान।
विद्रोही मन नहीं देखता कि सामने कौन है। यदि सामने वाला अन्याय कर रहा है तो उसका विरोध करेगा ही। भले ही सामने पिताजी ही क्यों न हों। यदुनाथ सिंह के साथ ऐसा हुआ है। अपने पिता श्री सहदेव सिंह और बड़े भाई श्री हरिनाथ सिंह को मजबूर किया कि वे मजदूरों को पूरी मजदूरी दें।
घटना वर्ष 1970 की है। यदुनाथ सिंह के मौजूदा मकान के पीछे एक कुआं है। उसकी खोदाई इनके पिता जी व बड़े भाई करा रहे थे। इसमें कई मजदूर लगे थे। यदुनाथ सिंह उस समय बीएचयू में पढ़ते थे। छुट्टियों में जब घर आए तो उनको बताया गया कि कुआं खोदने में लगे मजदूरों को मजदूरी कम दी जा रही है या नहीं दी जा रही है। उनसे कहा जा रहा है कि कुआं खोदना तो पुण्य का काम है। यह सुनकर यदुनाथ सिंह तमतमा गए। कहा कि गांव के भोलेभाले मजदूरों के साथ इतना बड़ा अन्याय।
उन्होंने अपने पिताजी व बड़े भाई से स्पष्ट शब्दों में कहा कि आप लोग मजदूरों को पूरी मजदूरी दीजिए। नहीं तो घर में रखे सारे अनाज को मैं इनके बीच बांट दूंगा। इनके इस रुख के चलते मजदूरों को उचित मजदूरी मिल गई। यदुनाथ सिंह ने कहा कि जिस सामंती विचारधारा के खिलाफ वे बाहर लड़ रहे हैं, वह तो उनके घर में भी मौजूद है। सभी जगह से सामंती विचारधारा को खत्म करना है।
उस समय छुआछूत भी खूब चल रहा था। इनके घर के सदस्यों में भी यह भावना थी। इसे खत्म करने के लिए यदुनाथ सिंह गांव की दलित बस्ती में गए और एक घर में रखी मटकी से एक लोटा पानी लाकर अपने घर की मटकी के पानी में मिला दिया। कहा कि अब इसे पीजिए, स्वाद में कोई अंतर आ रहा है क्या?
सोचिए, जो व्यक्ति घर में कुरीतियों की इस तरह से विरोध कर रहा हो, वह किस मिट्टी का बना होगा। यही कारण है कि वे जीते जी किंवदंती बन गये थे।
“मैं ईश्वर से परिस्थितियों व समस्याओं को ही मांगता हूं, साथ में निवेदन किया करता हूं कि उससे मुकाबला करने का मेरे में सामर्थ्य हो।’’
-यदुनाथ सिंह (31 मार्च 1969 को वाराणसी जिला कारागार से)