‘तू जमाना बदल’ – राजनीति के अघोरी संत थे यदुनाथ सिंह : डॉ. प्रो. हरिकेश सिंह
राजेश पटेल की पुस्तक तू जमाना बदल को लेकर जेपी विश्वविद्यालय सारण छपरा के पूर्व वाइस चांसलर के विचार
राजनीति के अघोरी संत थे यदुनाथ सिंह : डॉ. प्रो. हरिकेश सिंह
काशी हिंदू विश्वविद्यालय अपने स्थापना काल से ही राष्ट्रवादी युवा क्रांतिकारियों के शिक्षण-प्रशिक्षण का एक श्रेष्ठ विद्याश्रम रहा है। आज विश्व की उच्च शिक्षा संस्थाओं का गुणात्मक स्तर निर्धारित होता है तो काशी हिंदू विश्वविद्यालय का नाम 200 विश्वविद्यालयों में नहीं होने पर लोग चिंतित हो जाते हैं। इसका स्पष्ट कारण है कि विश्वविद्यालय जिन मौलिक महालक्ष्यों के लिए स्थापित एवं निर्मित होते हैं, उनको निर्धारक नियामकों में स्थान ही नहीं दिया गया है। इसी कारण श्रेष्ठ से श्रेष्ठ संस्थान इस सूची से बाहर हो गए हैं। ग्रामीण मेधाओं को श्रेष्ठ चिंतन और चेतना से संपन्न बनाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के यदि कुछ सौ उत्पादों की संघर्षशीलता का अध्ययन किया जाए तो काशी हिंदू विश्वविद्यालय एक अप्रतिम एवं अद्भुत विश्वविद्यालय है और इसकी ही एक उपज अद्वितीय निडर क्रांतिवीर समाजवादी नेता स्मृतिशेष अग्रज श्री यदुनाथ जी (श्री यदुनाथ सिंह पटेल) जी हैं।
शैशवावस्था से संघर्षों में सक्रिय सहभागिता
शैशवावस्था से संघर्षों में सक्रिय सहभागिता तक सदैव हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ रहने वाले भाई यदुनाथ जी उम्र के अंतिम पायदान पर अस्वस्थ हो गए थे। जन्मभूमि पर रहते हुए ग्रामीण जनमानस को जगाए रखने तथा संघर्ष के लिए लोकशिक्षण का कार्य करते रहे। उनके चेहरे की नैसर्गिक मुस्कान यथावत बनी रही। क्रूर कोरोना के बीच इस समाजवादी संघर्ष पुरुष के ब्रह्मलीन होने की खबर ने हम सभी मित्रों को हिलाकर रख दिया। बार-बार भाई यदुनाथ सिंह पटेल की जीवंत संघर्षशीलता स्मृति पटल पर उभर जाती है।
ग्रामीण मेधा की श्रेष्ठता
अग्रज समाजवादी मित्र श्री यदुनाथ सिंह अपनी ग्रामीण मेधा की श्रेष्ठता के आधार पर ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज (अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) में प्रवेश पाने में सफल रहे। जब वह बीएचयू में अभियांत्रिकी के छात्र थे, तब भी प्रवेश अखिल भारतीय स्तर पर इंटरमीडिएट बोर्ड की परीक्षाओं में प्राप्तांक पर होता था। अतः यह तो स्पष्ट है कि वह एक प्रतिभावान छात्र रहे। सामान्य परंतु सामाजिक प्रतिष्ठा के दृष्टिकोण से एक यशस्वी ग्रामीण कुल से आने वाले आजीवन सच्चे देहाती थे, सहज थे, सरल थे तथा अनुकरणीय जनप्रतिनिधि थे।
समतावादी, न्यायाधारित एवं मानवतावादी नीति के प्रबल प्रतापी योद्धा
यदि औपचारिक साम्यवादी, समाजवादी, राष्ट्रवादी वैचारिक संप्रदायों को छोड़कर भी उनके मानस को विभूषित करना हो तो यह उचित होगा कि वे समतावादी, न्यायाधारित एवं मानवतावादी नीति के प्रबल प्रतापी योद्धा थे। आमजन ग्रामजन और गिरिजन ही उनके लोकजन थे। इसी लोकजन की पीड़ा के लिए यदुनाथ जी संघर्षरत रहे।
यदुनाथ सिंह जी अकेले ऐसा छात्रनेता थे, जिन्होंने सभी छह डेलीगेसी के अंतःवासियों को बीएचयू प्रशासन से मिलने वाली सारी सुविधाओं को मुहैया कराया। वे हर अंतःवासी को व्यक्तिगत रूप से जानते थे। निरंतर दौरा कर डेलीगेसी की समस्याओं को देखा करते थे। फिर उनके निदान की मांग करते। जरूरत पड़ने पर आंदोलन भी करते थे।
उग्र छात्रनेता एवं जननेता
श्री यदुनाथ सिंह पटेल को उग्र छात्रनेता एवं जननेता के रूप में जाना जाता है। उनकी उग्रता को अधिकांश लोग हिंसात्मकता से जोड़ देते थे। ऐसा नहीं था। वह सच्ची बात और समस्या पर निर्णय तत्काल एवं सार्वजनिक रूप से चाहते थे। वे मुलम्मा लगी बात नहीं पसंद करते थे और न ही कनफुसवा ढंग।
यही कारण था कि छात्र जीवन में तथाकथित क्रांतिकारी परंतु रात की आड़ में कुलपतियों या अन्य अधिकारियों से मिलने वाले अपने मित्रों को भी सार्वजनिक रूप से लज्जित कर देते थे। बड़े से बड़े राष्ट्रीय नेताओं को बीच भाषण में ही प्रश्नों के माध्यम से अवाक कर देते थे। गांव के थे न, कपटी और शहरी चतुराई रत्ती भर भी नहीं थी।
जो बोलना है, बेबाक। इसीलिए राजनीति में बहुत बड़े नेता यदुनाथ भाई से कन्नी काट लेते थे। यहां तक कि जनता के वे लोग जो केवल काम कराकर खिसक लेते थे, वह भी उनकी स्पष्टवादिता की आलोचना करते थ। परंतु भाई यदुनाथ जी अघोरी संत राजनीतिज्ञ थे। कबीरपंथी चित्त के धनी यदुनाथ संह अपना घर जारकर (जलाकर) साथ रहने वालों का आदर करते थे। तथाकथित राजा-रजवाड़े, धनाढ्य, अतिविशिष्टजन एवं भ्रष्ट रौबदार अधिकारी उनके नाम से कांपते थे। उनकी इस विशेषता के कारण उनके विरोधियों की श्रृंखला लंबी थी। भाई यदुनाथ सिंह की न्यायप्रिय उग्रता ने ही उनको अग्रता प्रदान की थी।
संसद में छात्र मांगों के लिए पर्चा फेंकने की अगुवाई
श्री यदुनाथ सिंह पहले छात्रनेता थे, जो संसद में छात्र मांगों के लिए पर्चा फेंकने की अगुवाई किए थे। तिहाड़ से लेकर आपातकाल में बरेली जेल तक जितनी यातनाएं उनको दी गईं, वह उतने ही प्रखर राजनेता होते गए। छात्र जीवन में भी जेल अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने पर उनको तनहाई में डाल दिया जाता था। हथकड़ी और बेड़ी लगाकर। किसी बड़े से बड़े भ्रष्ट अधिकारी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह यदुनाथ भाई से आंख से आंख मिलाकर बात कर सके। यह थी उनकी क्रांतिकारिता और तेजस्विता।
‘संपूर्ण क्रांति’ की ‘संपूर्ण विफलता’ से क्षोभ
‘संपूर्ण क्रांति’ की ‘संपूर्ण विफलता’ से जितना क्षोभ उनको हुआ, इसका अंदाज केवर उनके अतिनिकट के मित्रगण ही लगा सकते हैं। काशी के आप-पार जनता के निडर राजनेता भाई यदुनाथ सिंह शहर की ओर कभी नहीं भागे, अपितु गांव और अपनी जन्मभूमि को अंतिम सांस तक पूजा। ऐसे संघर्ष के पर्याय पुरुष श्रद्धेय अग्रज श्री यदुनाथ सिंह पटेल जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
यह पुस्तक निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों के लिए अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित करेगी। स्मृतिशेष भाई यदुनाथ जी के समय-समय पर अनुदित विचारों को अक्षरशः समावेशित करते हुए उनके स्वजन एवं ख्यातिप्राप्त पत्रकार श्री राजेश पटेल जी ने इस रचना (पुस्तक) को उपयुक्त शीर्षक प्रदान किया है। ‘एक निहत्थी क्रांती’ को ‘तू जमाना बदल’ शीर्षक से बड़ी ही समीचीन संज्ञा प्रदान किया है अर्थात ‘जीवित किवंदंती’। इस भावांजलि स्मारिका को एक प्रामाणिक ग्रंथ के रूप में देखा जा सकता है। प्रस्तुत ग्रंथ में श्री यदुनाथ सिंह जी की डायरी के आलेख हैं, जो उनके गूढ़ चिंतन का प्रतिपाद्य है।
समझौता नहीं, सत्याधारित समाधान उनका जीवन लक्ष्य
भारतीय समाज में मौलिक परिवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए सार्थक हस्तक्षेप की रणनीति के प्रायः सभी आयाम इसके पृष्ठों में वर्णित हैं। समझौता नहीं, सत्याधारित समाधान उनका जीवन लक्ष्य रहा। डॉ. राममनोहर लोहिया, मधुलिमये, जार्ज फर्नांडीज, राजनारायण एवं किसान नीति पर चौधरी चरण सिंह को अपना आदर्श मानते थे। डॉ. लोहिया के ‘मारेंगे नहीं, पर मानेंगे भी नहीं’ के नारे को उन्होंने अपनी राजनीति का मंत्रवत अंगीकार किया था।
श्री राजेश पटेल जी द्वारा लिखित इस पुस्तक में 15 प्रमुख व्यक्तियों की श्रद्धांजलियों को ‘श्रद्धा के फूल’ के रूप में दिया गया है। प्रत्येक श्रद्धा का फूल हृदय की गहराइयों से स्वतः पुष्पित होता प्रतीत हो रहा है। प्रत्येक युवा मित्र को इसका अनुशीलन करना श्रेयस्कर होगा। लेखक एवं प्रकाशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं, क्योंकि इतने कम समय में ससमय डेढ़ सौ से ज्यादा पृष्ठों के इस महत्वपूर्ण दस्तावेज को जन-जन तक पहुंचाने का अथक प्रयास किया है।
(डॉ. प्रो. हरिकेश सिंह जी उसी समय बीएचयू में पढ़ रहे थे, जब यदुनाथ सिंह जी थे। डॉ. सिंह बीएचयू में ही शिक्षा संकाय में प्रोफेसर भी बने। बाद में इनको जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय सारण, छपरा के वाइस चांसलर के दायित्व को भी निभाया।)