हर किसी को हम यदि शंकराचार्य मान लेते हैं तो दोषी दूसरा कैसे
कालनेमियों को व्यास समझने की हमारी सबसे बड़ी भूल
जगत नारायण सिंह उर्फ पप्पू पटेल
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प्रसून जोशी से लेकर मनोज मुंतशिर तक और कुमार विश्वास से लेकर म्यूजिक कंपनी तक के लोगों को यदि हम शंकराचार्य मान बैठते हैं तो दोष किसका है?
मुरारी बापू से लेकर जग्गी वासुदेव तक को यदि हम श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास मान बैठते हैं तो दोष किसका है?
जागरण में पीताम्बर ओढ़े नाचने गाने वालों को यदि हम श्री चैतन्य महाप्रभु का साक्षात् रूप समझ लेते हैं तो दोष किसका है?
राधे माँ से लेकर निर्मल बाबा तक के दरबार में यदि हम अपनी अपनी बुद्धि घर में छोड़कर जाते हैं तो दोष किसका है?
भगवान के दशावतारों से इतर मजार से लेकर साई जेसे मलेच्च कृत्रिम एवं प्रत्यारोपित देवताओं तक में यदि हम अंधस्थ हो जाते हैं और अपने देवता को उस हरामि के पैरो में रखते है तो दोष किसका है?
अपने शास्त्र एवं शास्त्रज्ञों को छोड़कर यदि हम एकता कपूर और आमिर खान आदि को अपना याज्ञवल्क्य मान लेते हैं तो दोष किसका है?
हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू मान बिन्दुओं का प्रात: उठते ही अपमान करनेवाले के हाथों में आरती की थाल देखते ही इन अवसरवादी मौसमी कीड़ों को यदि हम राजा दिलीप मान बैठते हैं तो दोष किसका है?
मंदिर का विध्वंस कर उसकी मूर्ति को गंगा में फेंक देनेवाले को यदि हम तर्पण करनेवाला गोकर्ण समझ बैठते हैं तो दोष किसका है?
वन, उपवन और नगर में आग लगा देने वाले आततायी राक्षस यदि हमें भगवान विश्वकर्मा लगता है तो दोष किसका है?
प्रभु श्रीराम का मंदिर तोड़ा जाना, लगभग हजार वर्षों तक अपने धर्मस्थलों का एक के बाद एक विध्वंस, अपने नारीवर्ग का घनघोर अपमान उत्पीड़न, धर्मगुरुओं का जिन्दा जलाया जाना, आरा से चीरा जाना, दीवारों में चुना जाना, भारत का विभाजन और सत्य कहने पर भी गला रेता जाना इत्यादि यदि हमारे लिए महत्वहीन हों, लेकिन मुफ्त की थोड़ी सी बिजली, पानी और सुविधा ही जीवन का सर्वस्व प्रतीत होते हों तो फिर दोष किसका है और दोषी कौन है?
नोटों की गड्डी देख और सिक्कों की खनक सुन पैरों में झटपट घुंघरू बांध लेने को तत्पर चरण और चरित्र ही यदि हमें अपने आइकॉन लगते हों और हम उनके अनुचर, खच्चर, जलचर आदि सब बनने के लिए लाइन लगा कर खड़े हो जाते हों तो फिर दोष किसका है और अपराधी कौन है?
सर्कस में जाकर मंदिर की अनुभूति का और स्वीमिंग पुल में नहाकर गंगा स्नान के सुफल का यदि हम भाव या इच्छा रखते हैं तो फिर दोष किसका है?
जो साईं खुद “ॐ” और “राम” के सहारे खड़े हैं, आप उनमें भगवान ढूंढ रहे हो? तो दोष किसका ?
हिन्दू हिन्दुत्व हिन्दुस्तान के विनाश के मिशन वाले जिहादी कालनेमियों को मन्दिर जाते ही दत्रात्रेयी गौत्र का जनैऊधारी हिन्दू समझोगे तो दोष किसका ?
स्मरण रहे कि भगवान कृष्ण गीता में स्पष्ट कहते हैं कि जो जिसकी पूजा करता है, वह वैसा ही हो जाता है।
भूत को पूजने वाला भूत और देवता को पूजने वाला देवत्व को ही प्राप्त होता है। इसलिए दोष भूत का है या उसकी पूजा करने वाले मूढ़मति मानव का?
भगवान राम आदिपुरुष नहीं अनादिपुरुष हैं, आदिपुरुष तो महाराज मनु हैं। आदि और अनादि का अंतर तक न समझने वाले या जानबूझकर ऐसा करनेवाले कवि, लेखक, कलाकार आदि ही यदि हमें विद्वान लगने लगें तब तो हम शिकार बनेंगे ही और तब ऐसे में दोष किसका है?
भगवान ने अपनी लीला से हमें यही तो दिखाया है कि यदि ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के पीछे उनकी सेवा में जाएंगे तो धर्म की रक्षा भी होगी, स्थापना भी होगी और भगवान शंकर की लीला से सीता विवाह का सुमंगल भी होगा, परन्तु यदि ब्रह्म के बदले भ्रम के हिरण के पीछे जाएंगे तो सीता का हरण ही होगा।
यह भी स्मरण रहे कि भगवान का रामावतार धर्म, शील और मर्यादा की स्थापना के लिए हुआ था। प्रभु लोकमंगल के लिए पधारे थे, लोकरंजन या मनोरंजन के लिए नहीं।
उनकी लीला के उस भाव तक श्रद्धा और भक्ति के बिना पहुंचा ही नहीं जा सकता। इसलिए हम अपने व्यास और वशिष्ठ को पहचानें, न कि कालनेमियों को ही व्यास समझने की भूल कर उनके जाल में फंस जाएँ।
फिर भी अपने विपुल वांग्मय के होते हुए भी यदि हम बार बार गड्ढे में गिर जाते हैं तो दोष किसका है, गड्ढे का या हमारी आँखों और बुद्धि का।
लेखक मिर्जापुर जनपद के चुनार तहसील के जमालपुर ब्लॉक के मनई गांव के निवासी हैं। प्रगतिशील किसान हैं। इसके साथ आप अखिल भारतीय कुर्मि क्षत्रिय महासभा की मिर्जापुर जिला इकाई के महामंत्री हैं। इनके पिता स्व. सुखनंदन सिंह जी बिरहा की रचना कई विधाओं में की है। इनके बड़े भाई श्री वेद प्रकाश सिंह को बिरहा लेखन के गुर विरासत में मिले हैं। वेद व जगत के चाचा स्व. श्रीपति सिंह विख्यात पहलवान थे। आलेख में इनके व्यक्तिगत विचार हैं।