October 7, 2024 |

- Advertisement -

बनारस में एयरपोर्ट पर पीएम के करीब जाकर दिखाया काला झंडा, गिरफ्तार

Sachchi Baten

असरदार सरदार सतनाम सिंह ने कर दिखाया असंभव सा कार्य

आपातकाल के दौरान देश भर में सबसे कम उम्र में जेल जाने वाले हैं सतनाम सिंह

 

राजेश पटेल, रामनगर (सच्ची बातें)। सरदार ही नहीं। असरदार भी। असरदार सरदार सतनाम सिंह। किशोरावस्था में इनके हृदय में क्रांति की आग धधकती रहती थी। इसका स्पष्ट उदाहरण है। आपातकाल में गिरफ्तार मात्र 14 की उम्र में। देश में सबसे कम उम्र के मीसा बंदियों में ये शुमार होते हैं। 1981 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बनारस एयरपोर्ट पर उतरते ही मात्र 10 फीट दूरी से काला झंडा दिखाया। इंदिरा वापस जाओ का नारा भी लगाया। अंजाम क्या हुआ होगा, इसका अंदाज आप लगा सकते हैं।

वाराणसी जनपद के राम नगर में साधारण परिवार में जन्मे सरदार सतनाम के राजनैतिक गुरु आजाद भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी यदुनाथ सिंह थे। वह क्रांति के लिए अपने साथियों का मनोबल बढ़ाया करते थे।

25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणाा की गई। इसके ठीक तीन दिन बाद 28  जून को रामनगर में सरदार सतनाम सिंंह के घर पर ही यदुनाथ सिंह ने साथियों की बैठक बुलाई। इस बैठक में हरबंश सिंह, शमीम मिल्की, सतीश श्रीवास्तव एडवोकेट, हीरालाल सोनकर रामदुलार एडवोकेट, श्यामाकांत पाठक, सतनाम सिंह उपस्थित थे। आपातकाल लागू होने के बाद इसका विरोध करने के लिए बनारस में यह पहली बैठक थी। इसमें सर्वसम्मति से आपातकाल का विरोध हर स्तर पर करने का निर्णय लिया गया।

निर्णय के अनुसार 30 जुलाई को रामनगर चौक पर सभा करने की एलान किया गया। प्रशासन ने सभास्थल पर भारी फोर्स की तैनाती कर दी, लिहाजा नहीं हो पाई। इसके बाद फिर पांच जुलाई सुबह नौ बजे से ही रामनगर चौक पर ही सभा का एलान किया गया। प्रशासन की लाख सख्ती के बावजूद मंच लग गया। माइक का भी इंतजाम कर लिया गया, लेकिन स्थान-स्थान पर नाकेबंंदी करके सभी नेताओं को रोक लिया गया। किसी को भी सभा स्थल तक नहीं पहुंचने दिया गया।

चूंकि सरदार सतनाम सिंह का घर चौक के करीब ही है। उस समय सतनाम सिंह की उम्र 14 साल ही थी। उनकी नजर प्रशासन की हर गतिविधि पर थी। सतनाम सिंह बताते हैं कि उन्होंने सोचा कि एक बार सभा फेल तो हो गई, इस  बार फेल नहीं होगी। होकर रहेगी। वह घर से निकले और फुर्ती के साथ मंच पर जाकर माइक से संबोधन शुरू करने वाले ही थे कि पुलिस ने उनको उठा लिया।

मारते-पीटते थाने ले गए। फिर जेल भेज दिया गया। जेल में भी काफी प्रताड़ना मिली। दूसरे दिन टीम लीडर यदुनाथ सिंह, हरबंश सिंह, शमीम मिल्की सहित सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इनकी गिरफ्तारी पड़ाव से दिखाई गई थी।

जब यदुनाथ सिंह साथियों संग जेल पहुंचे तो जेलर से कहा कि सतनाम सिंह से मिलना है। जेलर ने आनाकानी की तो वहां भी आंदोलन शुरू कर दिया। हारकर जेलर  ने सतनाम सिंह को बुलाया, और यदुनाथ सिंह एंड टीम से मिलवाया। फिर यदुनाथ सिंह तो अड़ गए कि सतनाम  सिंह भी उनके ही साथ रहेंगे। जेलर को हार माननी पड़ी। 19 माह बाद इमरजेंसी खत्म होने पर ही सभी रिहा हो सके।

अब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को काला झंंडा दिखाने के बारे में…

वर्ष 1981 में आल इंडिया साइंस कांग्रेस का आयोजन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में होना था। इसमें मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। इस कार्यक्रम से करीब 20 दिन पहले वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गई थीं। वहां छात्रों ने विरोध किया था तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। इसमें काफी संख्या में छात्र घायल हुए थे। लाठीचार्ज के विरोध में छात्रों में काफी आक्रोश था।

सरदार सतनाम सिंह उस समय सेंट्रल हिंदू स्कूल में 11वीं के छात्र थे। बीएचययू के छात्रों की अगुवाई में शहर में स्थित विभिन्न महाविद्यालयों के छात्रों की एक बैठक हुई। इसमें इलाहाबाद की घटना को लेकर चर्चा हुई। तय किया गया कि सभी छात्र अपने-अपने तरीके से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बनारस में विरोध करेंगे।

सतनाम सिंह ने बताया कि तारीख तो याद नहीं है। उन्होंने सोचा कि शहर भर में भारी फोर्स है। विरोध नहीं किया जा सकता। तय किया कि एयरपोर्ट पर विरोध ठीक रहेगा। खुद के केश को मुड़वा दिया, ताकि कोई पहचान न सके। दो और साथियों को लिया। उस समय के बनारस के जाने-माने पत्रकार आनंंद चंदोला और गोपेश पांडेय ने 2 रुपये दिए। उससे एयरपोर्ट के लिए भोर में पांच बजे ही गोदौलिया से बस पर बैठ गया।

शिवपुर में बस खराब हो गई। लेकिन रुकते कैसेे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बस को ही रुकवाकर उससे एयरपोर्ट पहुंच गए। जैसे ही एयरपोर्ट पहुंचे। वहां पत्रकारों के साथ खड़े हो गए। पत्रकारों में आनंंद कल्की ने पहचान लिया। उनसे इशारों में बात हुई और उन्होंने अपना पास दे दिया। पास लेकर जब आगे बढ़े तो एक पुलिस अफसर ने रोक लिया।

उससे कहा कि टाइम्स ऑफ इंडिया का पत्रकार हूं। नई दिल्ली से आया हूं। मैडम को पता है। वह पुलिस अफसर अर्दब में आ गया। बिना पास देखे ही अंदर जाने दे दिया। इंदिरा गांधी हेलीकॉप्टर से उतर चुकी थीं। स्वागत में कमलापति त्रिपाठी, वीपी सिंह सहित तमाम दिग्गज खड़े थे। इंदिरा गांधी जैसे ही आगे बढ़ीं, उनके सामने डट कर खड़ा हो गया। अपना परिचय दिया। फिर कहा कि आपका विरोध करता हूं। जेब में रखे काले कपड़े को दिखाया। इस अप्रत्याशित घटना से वहां खड़े सभी अवाक रह गए। उनको  वहीं पर हिरासत में ले लिया गया।

पहले कांग्रेसियों, फिर पुलिस वालों ने जमकर ठुकाई की। एयरपोर्ट के टार्चर रूम में ले जाया गया। वहां भी काफी प्रताड़ित किया गया। बेहोश हो गए। पत्रकारों ने जबरदस्ती वहां से निकलवाया। फिर पुलिस लाइन ले जाया गया। तब तक यदुनाथ सिंंह और उनकी पूरी टीम को इस घटना की जानकारी हो चुकी थी। सभी पुलिस लाइन पहुंचे।

विरोध करने वाले अन्य छात्रनेता भी हिरासत में लिए गए थे। जब शाम को जिलाधिकारी आरएस टोलिया ने घोषणा की कि सतनाम  सिंह के अलावा अन्य सभी लोगों को रिहा किया जाता है। इस पर यदुनाथ सिंह भड़क गए। कहा कि जब सभी के खिलाफ एक ही धारा है तो या तो सब रिहा होंगे या कोई नहीं। यदुनाथ सिंह तब तक अड़े रहे, जब तक सतनाम सिंह को छोड़ा नहीं गया।

इसके अलावा भी तमाम आंदोलनों में अनगिनत बार पुलिस की लाठियां खाईं, जेल गए, लेकिन अपने उसूलों से डिगे नहीं। तभी तो इनको असरदार सरदार कहा जाता है।

 


Sachchi Baten

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.