September 16, 2024 |

- Advertisement -

क्रिएटिविटी क्या है और कैसे बनें क्रिएटिव?

Sachchi Baten

कल्पना से ही मिलती है सफलता, मेहनत का योगदान मात्र एक फीसद

 

आचार्य निरंजन सिन्हा

————————————

पहले क्रिएटिविटी (Creativity), अर्थात सृजनात्मकता को समझा जाय और इसे रचनात्मकता या  निर्माण करना (Manufacturing) से अलग किया जाना चाहिए। यह क्रिएटिविटी क्या हैइससे संबंधित भ्रम और मिथक क्या है? और क्रिएटिव कैसे बना जाता हैआजकल आधुनिक जीवन में और नए शिक्षा उपागम (Approach) में क्रिएटिविटीअर्थात सृजनात्मकता का महत्व बहुत बढ़ता जा रहा है। इसीलिए जीवन क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण ‘(Scientific Temper), ‘आलोचनात्मक चिंतन‘ (Critical Thinking), ‘पैरेडाईम शिफ्ट‘ (Paradigm Shift) और लीक से हटकर चिंतन‘ (Out of Box Thinking) का प्रयोग एवं उपयोग बढ़ता जा रहा है। इन्हीं विषयों पर आपको ठहराने के लिएयानि इसकी गहराईयों में उतारने के लिए और इसकी व्यापकता में फैलाने के लिए ही यह आलेख है।

सृजनात्मकता (क्रिएटिविटी) एक मानसिक (और आध्यात्मिक) प्रक्रिया हैजिसके सहयोग से ही कोई नए एवं मौलिक विचारअवधारणासमाधानया क्रियाविधि का अवतरण (जन्म) होता है और उसकी उपादेयता का वर्धन (Improvement) होता है। यदि किसी सृजन में मौलिकता नहीं हैतो वह सृजन नहीं कहलाएगा अपितु यह रचना कहलाएगा। रचना में उपादेयता तो होती हैलेकिन उपादेयता का वर्धन नहीं होता है। उपादेयता में वर्धन किसी नवाचार से ही आता हैजिसमें मौलिकता का तत्व अवश्य रहता है। इसीलिए कुछ लोग सृजन को रचना से अलग करने के लिए नवसृजन (Innovation) शब्द का इस्तेमाल करते हैं। पहले से सृजित विचारअवधारणासमाधानया क्रियाविधि के उपयोग कर पहले से तैयार किसी उत्पाद की प्रतिलिपियानि  इसकी नयी इकाई का उत्पादन रचना कहलाएगासृजन नहीं माना जाएगा। लेकिन आप भी प्रारंभिक दौर में सृजनात्मकता और रचनात्मकता को ही एक मानकर चल सकते हैं।

आमतौर पर क्रिएटिविटी (सृजनात्मकता) का अर्थ यह लगाया जाता है कि आप किसी  अलगनएविशिष्ट और उत्पादक अवधारणा की सोच पाने की योग्यता रखते हैं। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के अनुसार ऐसे सोच का अर्थ मौजूदा अवधारणा को नए संदर्भ में स्थापित करना भी है। मेरे अनुसार क्रिएटिव सोच वह सोच है जिस सोच में नयी अवधारणा या नया संदर्भ हो और वह समाज के लिए उपयोगी हो एवं समाज का माहौल सुधारता होसृजन है। यह सृजन किसी वर्तमान अवधारणा का नए संदर्भ में नयी व्याख्या भी देना हैजिससे वर्तमान अवधारणा और ज्यादा उत्पादक हो और सकारात्मक ऊर्जा संधारित करे।

क्रिएटिविटी के संबंध में कुछ मिथक गढ़ दिए गए हैंऔर यह उनकी यथार्थता नहीं है। इस संबंध में एक प्रमुख मिथक यह है कि यह खानदानीयानि जेनेटिकयानि वंशानुगत होता है। कुछ सामंती और सामान्यतः यथास्थितिवादी लोग अपनी  प्रतिभा को जन्मजात होने की सामाजिक विशिष्टता बनाएं रखना चाहते हैं। वे लोग इसे इसलिए जेनेटिक बताना चाहते हैंताकि  सामान्य वर्ग के लोग का ध्यान इसे विकसित करने में नहीं लगे। इस तरह यह मिथक आपके आविष्कारक (Inventive) बुद्धिमत्ता और नवाचारी (Innovative) बुद्धिमत्ता को आपके अचेतन स्तर पर ही बाधित कर देता है। यह मिथक आपके आविष्कारक और नवाचारी नहीं होने की स्थिति में आपके मन के भाव को को सही साबित करने में सहायक होता हैयानि यह आपके सोच को ही सही साबित कर बात वही समाप्त कर देता है। हालांकि यह आपके साथ धोखा है।

यह भी एक मिथक ही है कि क्रिएटिविटी उपयोगिता के संदर्भ में मौलिक रूप में एकदम नया‘ (Entirety New) प्रस्तुति होता है। अर्थात क्रिएटिविटी को एकदम मौलिक और अनूठी होना भी जरूरी नहीं है। यह किसी विचारअवधारणाक्रियाविधि या उत्पाद को और बेहतर बनाना भी है। यह विचारयह अवधारणायह क्रियाविधि और यह उत्पाद किसी भी वस्तुसेवासम्पत्तिनीतिविज्ञापनस्थानव्यक्तिइवेंटया प्रस्तुति से  संबंधित हो सकती है। यह किसी प्रक्रिया को पाने का नया नजरिया भी हो सकता है। यह किसी स्थिति का नया संदर्भ हो सकता है। यह किसी वर्तमान अवधारणा का नया पुनर्गठनपुनर्व्यवस्थापनपुनर्विन्यासपुनर्व्याख्यायापन,  पुनर्संरचना या नया समीकरण भी हो सकता है।

क्रिएटिविटी के संबंध में यह भी एक बड़ा मिथक है कि यह अचानक किसी भाग्यशाली व्यक्ति को प्राप्त होता है। अर्थात क्रिएटिविटी एक ही पल में किसी को सूझ जाता हैया उसके पास आ जाता है और किसी यह किसी भाग्यशाली के पास ही आती है। ऐसी ही कहानियां समाज में प्रचलित है कि न्यूटन ने सेब गिरते देखकर गुरुत्वाकर्षण बलया बेंजामिन फ्रैंकलिन ने पतंग उड़ाते बिजली की खोज कर दी। ऐसी  स्तरहीन सामान्य कहानियां स्तरहीन सामान्य लोग ही दुहराते रहते हैं और वे उन महान वैज्ञानिकों की वैज्ञानिक मानसिकताउनकी  पृष्ठभूमि और उनके नजरिए यानि दृष्टिकोण की चर्चा ही नहीं करते हैं। यदि कोई वैज्ञानिकों की इन वैज्ञानिक मानसिकताउनकी  पृष्ठभूमि और उनके नजरिए यानि दृष्टिकोण की चर्चा करता हैतो ही वह उसे समझने और उसे विकसित करने का प्रयास करेगा। इसी  भाग्यशाली वाली व्याख्या को ही यूरेका मिथक” कहा गया है। इसी मिथक के कारण लोग चमत्कारिक फल के इंतजार में अपना समय बर्बाद कर रहे हैंऔर इसे पा लेने का सामान्य प्रयास भी नहीं करते हैं।

क्रिएटिविटी के लिए आपको क्रिएटिव बनने की मानसिकता रखनी पड़ती है। इसके लिए आपको कार्य -कारण संबंध (Cause n Effect Relation) को जानना और मानना चाहिए। इसके अतिरिक्त आपको प्राकृतिक शक्तियों और उसके मानवीयकरण स्वरूप (ईश्वर) के अन्तर को समझना जरूरी है। कहने का तात्पर्य यह है कि आपको प्राकृतिक शक्तियां और ईश्वर दो भिन्न एवं अलग अलग अस्तित्व को समझना चाहिए। क्रिएटिविटी के लिए अपनी कल्पनाओं (Imagination) का चित्रीकरण (Visualisation) में मनन करना पड़ता है, अर्थात कल्पनाओं का महत्व बहुत अधिक होता है। इसीलिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि सफलता प्राप्त करने में एक प्रतिशत “पसीना बहाना” (Perspiration) पड़ता है और निन्यानबे प्रतिशत “कल्पना करना” (Imagination) पड़ता है। इसे ध्यान से और ठहर कर पढ़ें।

क्रिएटिविटी से जुड़े भ्रम और मिथक लोगों की सफलता और उन्नयन में बाधा पहुंचाता है। इसी कारण  महान विद्वान डॉ आंबेडकर ने बुद्ध वाणी को नए स्वरूप में सूत्र के रूप में प्रस्तुत किया,  जो Educate, Agitate, Organise है। इसका सामान्य अर्थ शिक्षा ग्रहण करों‘ (शिक्षित बनो), ‘पाठों का मनन (मंथन) करों‘, और और उस निष्कर्ष को व्यवस्थित करो। Organise का अर्थ  व्यवस्थित करने के अतिरिक्त इस शिक्षा और इस निष्कर्ष पर संगठन (Organisation) में विमर्श करों भी होता है। वैसे कुछ राजनीतिक चालाकों ने और कुछ नादानों ने इनके मौलिक सूत्र के भावों को बदल कर इस सूत्र का ही नाश कर दिया है। इसे बदल कर Educate, Organise, Struggle कर दिया गया है। ध्यान दिया जाए कि Organise  को दूसरे क्रम पर रख दिया गया और Agitate को दूसरे क्रम से हटाकर तीसरे एवं अंतिम क्रम में लाकर Struggle शब्द से प्रतिस्थापित कर दिया गया है। अब उनके अनुयायी उनके बताए गए बौद्धिकता के मार्ग पर चलने से ज्यादा राजनीतिक संघर्ष में उलझ गए हैं। इससे भी उनके क्रिएटिविटी का नुक़सान हो रहा है।

क्रिएटिव बनने के लिए आपको विचारों की शक्तियों को मानना और समझना होगा। इसके बाद विचारों में नवाचार लाने की विभिन्न स्थितियों और प्रक्रियाओं को जानना और समझना होगा। इसी के लिए ही विचारों में पैरेडाईम शिफ्ट की बात की जाती हैजिसे साधारण भाषा में “लीक से हटकर चलना” भी समझा जाता है। इसमें कोई पहले से उपलब्ध विचारअवधारणाप्रक्रियाप्रस्तुति या उत्पाद को नए संदर्भ मेंनए पृष्ठभूमि मेंनए दृष्टिकोण से देखनेसमझने और इसकी उपयोगिता बढ़ाने पर विचार करते हैं।  यही सृजन हैयही नवाचार है। इसी के लिए आलोचनात्मक चिंतन की जरूरत होती है। आलोचनात्मक विश्लेषण एवं मूल्यांकन भी इसी आलोचनात्मक चिंतन का हिस्सा है। इसके लिए ही कार्य – कारण संबंध को जानना एवं अपने उपागम (Approach) में वस्तुनिष्टता (Objectivity) और विवेकशीलता (Rationality) का ध्यान रखना होता है।इसे ही आप समेकित रूप में वैज्ञानिक मानसिकता (Scientism) भी कह सकते हैं।

(लेखक आचार्य निरंजन सिन्हा बिहार राज्य कर विभाग में संयुक्त आयुक्त पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त हैं)


Sachchi Baten

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.