November 7, 2024 |

- Advertisement -

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पत्नी ने राष्ट्रपति भवन में क्या किया कि आ गई फायर ब्रिगेड

Sachchi Baten

कोई जवाब नहीं है लिट्टी-चोखा का, दिलचस्प है इतिहास

 

कुमार दुर्गेश

——————–

लिट्टी-चोखा का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। कहा जाता है कि इसका इतिहास मगध काल से जुड़ा हुआ है क्योंकि लिट्टी का प्रचलन मगध साम्राज्य में बड़ा था और इसका सेवन किया जाता था। बता दें कि मगध यानि बिहार की राजधानी पटना है। क्योंकि प्राचीन समय में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र हुआ करती थी। कहा जाता है कि इस दौरान चंद्रगुप्त मौर्य के सैनिक युद्ध में अपने साथ लिट्टी-चोखा लेकर जाते थे।
कई किताबों के अनुसार 18वीं शताब्दी में लंबी दूरी तय करने वाले मुसाफिरों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा ही था। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि बिहार में पहले लिट्टी-चोखा को किसान लोग खाया और बनाया करते थे। क्योंकि इसे बनाने में अधिक समय नहीं लगता है और यह पेट के लिए काफी फायदेमंद है।
मगध काल के अलावा, मुगलकाल में लिट्टी-चोखा को बढ़ावा और नया स्वाद देने में बड़ा योगदान है। कहा जाता है कि मुगलकाल में लोग इसे मांसाहार के साथ बनाकर खाया करते थे।  धीरे-धीरे इसका प्रचलन काफी बढ़ गया। इसके बाद, अंग्रेजों के जमाने में इसे करी के साथ खाया और बनाया जाने लगा।
वैसे तो लिट्टी-चोखा के लोग बड़े शौक से खाते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि इसे फूड फॉर सर्वाइवल कहा जाता है, आखिर क्यों? कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसे सैनिक युद्ध के दौरान खाया करते थे। क्योंकि इसकी खासियत है कि ये जल्दी खराब नहीं होता और खाने में हल्का भी होता है।
कई इतिहासकारों के अनुसार 1857 के विद्रोह में भी लिट्टी-चोखा का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि इस दौरान भी सैनिकों ने लिट्टी-चोखा खाया था। इसके अलावा, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई ने भी इसे अपनी सेना को खाने के तौर पर दिया था।
आज के समय में आपको लिट्टी-चोखा की कई तरह की वैरायटी मिल जाएंगी जैसे- लिट्टी को आप वेज और नॉनवेज चोखा के साथ खा सकते हैं और वेज और नॉन वेज में भी आपको कई तरह की वैरायटी आसानी से मिल जाएंगी।
इसे आप अपनी पसंद के हिसाब से बना सकते हैं लेकिन असल मजा लिट्टी को खाने का वेज चोखे में है, जैसे बिहार में खाया जाता है। इसे बिहार के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बारिश होने के बाद डिफरेंट तरीके से बनाना पसंद करते हैं। आप भी इसे अपनी पसंद के चोखे के साथ बनाकर खा सकते हैं। सेहत के लिए फायदेमंद लिट्टी-चोखा को आपको भी जरूर चखना चाहिए।
1857 के विद्रोह के दौरान तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई के सैनिक बाटी या लिट्टी को पसंद करते थे। क्योंकि इसके लिए ज्यादा सामान की जरूरत नहीं थी और इसे पकाना आसान था। आज लिट्टी चोखा की प्रसिद्धि का आलम यह है कि जो भी बिहार जाता है, वह खुद को लिट्टी चोखा खाने से नहीं रोक पाता है।
लिट्टी चोखा, एक ऐसी डिश, जो शायद ही किसी को पसंद ना हो। आटे की लोई का गोला, जिसमें सत्तू भरकर जलते अलाव में, कोयले या गोबर के उपले की आँच पर सेंक लिया जाता है, उसे लिट्टी कहते हैं और इसके साथ आग पर पके हुए आलू, बैंगन और टमाटर जैसी सब्जियों का भर्ता बनाकर उनमें नमक-तेल डालकर तैयार किया जाता है चोखा।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति बने थे तो उनकी पत्नी राजवंशी देवी जी राष्ट्रपति भवन में ही लिट्टी लगाने के लिए गोइठा का आड़ा लगा कर लिट्टी सेंकने का इंतजाम कर रहीं थीं। गोइठा में आंच लगते ही राष्ट्रपति भवन के ऊपर धुआं उड़ने लगा। सिक्योरिटी वाले समझे कि आग लग गई है। भाग दौड़ मच गई, फायर ब्रिगेड की गाड़ियां बुलाने को कॉल दिया गया। लेकिन सब जब अंदर पहुंचे तो देखा कि लिट्टी चोखा का इंतजाम हो रहा है, न कि आग लगी है।

Sachchi Baten

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.