आश्चर्य वाला फैसला नहीं, मायने समझने की जरूरत
शिवानंद तिवारी
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आडवाणी जी भी भारत रत्न हो गए। यह आश्चर्य करने वाली खबर नहीं है। नई पीढ़ी को शायद नहीं मालूम हो। 1990 में जब वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की अनुशंसा के मुताबिक़ केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ी जातियों के युवाओं को 27 प्रतिशत का आरक्षण दिये जाने की घोषणा की थी तो उसके विरोध में आडवाणी जी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या के लिए यात्रा निकाली थी।
उस यात्रा का संकल्प था कि मंदिर वहीं बनायेंगे। जहाँ कभी बाबरी मस्जिद हुआ करती थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके अनुषंगी संगठन विश्व हिंदू परिषद का मानना था कि जहां बाबरी मसजिद खड़ी है, वहीं भगवान राम का जन्म हुआ था।
बाबर के सिपाहसलार ने उस मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बना दिया था, जिसको बाबरी मसजिद कहा जाता है।
आडवाणी जी के रथ के सारथी की भूमिका नरेंद्र मोदी जी निभा रहे थे। उन दिनों उनको कोई नहीं जानता था। प्रमोद महाजन जी की उस यात्रा की योजना में महत्वपूर्ण भूमिका थी। यात्रा के दरम्यान आडवाणी जी का भाषण लोगों में उन्माद पैदा कर रहा था।
वे चुनौती दे रहे थे कि राम पैदा हुए थे या नहीं या कहाँ पैदा हुए थे, इसका फ़ैसला कोई अदालत नहीं तय कर सकती है। आडवाणी जी दिन भर में छः छः सभाएं संबोधित कर रहे थे। उनकी यात्रा और उन्मादी भाषण ने देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक दंगा करा दिया था।
बिहार में उस यात्रा की शुरुआत 19 अक्तूबर 1990 को हुई थी। धनबाद में आडवाणी जी राजधानी एक्सप्रेस से उतरे और वहीं से बिहार में उनके यात्रा की शुरुआत हुई थी।
उस समय लालू जी बिहार के मुख्यमंत्री थे। सात महीना पूर्व ही मुख्यमंत्री बने थे। उस यात्रा को लेकर बहुत ऊहापोह की स्थिति थी। लालू जी ने योजना बनाई थी कि राजधानी एक्सप्रेस जैसे ही बिहार की सीमा में प्रवेश करे, उसको रोक कर आडवाणी जी को वहीं उतार लिया जाए।
इसकी जवाबदेही तत्कालीन गृह सचिव आरके सिंह ( भारत सरकार, बिजली मंत्री) और तत्कालीन आईजी रामेश्वर उरांव ( झारखंड सरकार के मंत्री) को दी गई थी। दोनों पदाधिकारी अपनी जगह पर पहुंच भी गए थे, लेकिन दिल्ली से प्रधानमंत्री जी का फ़ोन आ गया कि फ़िलहाल उनको आगे बढ़ने दिया जाए। यह मेरे सामने की बात है। उस समय एक अणे मार्ग में लालू जी के साथ मैं मौजूद था।
आडवाणी जी 19 अक्तूबर 90 को राजधानी एक्सप्रेस से धनबाद उतरे। उन्मादी भीड़ वहां उनके स्वागत के लिए मौजूद थी। अफजल अमानुल्ला वहां डीसी (जिलाधिकारी) थे। उनको कहा गया कि वे आडवाणी जी को गिरफ़्तार करें। लेकिन उस उन्मादी माहौल में ऐसा करना संभव नहीं था। वह भी एक मुस्लिम पदाधिकारी के द्वारा। वहां से रथ यात्रा पटना के लिए चली। रास्ते में कोशिश हुई कि यात्रा का विरोध कर क़ानून व्यवस्था का सवाल बना कर यात्रा को रोक दिया जाए। लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।
जिस समय रथयात्रा पटना में प्रवेश करने वाली थी, मैं माहौल का जायज़ा लेने शहर में निकला था। जो हालत मैंने देखी, मैं डर गया। शहर में चारों तरफ़ भगवा झंडा लिए जय श्रीराम का नारा लगाती उन्मादी भीड़ थी। उस भीड़ के सामने खड़ा होना मुश्किल था।
पता नहीं कब लालू जी ने समस्तीपुर सर्किट हाउस में उनको गिरफ़्तार करने की योजना बनाई। समस्तीपुर के डीएम आरके सिन्हा और एसपी सुनील कुमार ने 24 अक्तूबर 91 को अहले सुबह उनको सरकार का आदेश बता कर गिरफ़्तार किया। उनके साथ प्रमोद महाजन भी थे। उन दोनों को बिहार सरकार के हेलीकॉप्टर से दुमका के मसानजोर स्थित डाकबंगला पहुंचा दिया गया।
उन लोगों की सुरक्षा का वहां पूरा इंतज़ाम था। आडवाणी जी का परिवार उनसे मिलने पटना आया तो लालू जी ने हेलीकॉप्टर से उन लोगों को मसानजोर आडवाणी जी के पास पहुंचाया था। इस प्रकार सात महीना पूर्व मुख्यमंत्री बने लालू यादव आडवाणी जी को गिरफ़्तार कर दुनिया के हीरो बन गए थे।
इस पूरे प्रकरण को जानना और समझना, नई पीढ़ी के लिए निहायत ज़रूरी है। आडवाणी जी ने 1991 में संकल्प की घोषणा की थी कि मंदिर वहीं बनायेंगे। 2024 में वह मंदिर बन गया, जिसका संकल्प 1991 में लिया गया था। मंदिर में राम जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा संविधान द्वारा घोषित धर्म निरपेक्ष देश के हमारे प्रधानमंत्री जी के द्वारा संपन्न हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का वैचारिक लालन पालन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गोद में हुआ है। लंबे समय तक वे संघ के प्रचारक रहे हैं। संघ की विचारधारा उनके रग रग में है। संघ का लक्ष्य इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का है। हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती हिंदू समाज की जाति व्यवस्था है। हिंदू समाज की जाति व्यवस्था को हमारा संविधान मान्यता देता है। जाति व्यवस्था से उत्पन्न विकृति को दूर करने के लिए ही संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। हिंदू राष्ट्र में जाति आधारित समाज व्यवस्था को मान्यता नहीं मिलेगी। इसके लिए पहले कदम के रूप में संविधान द्वारा दी गई जाति व्यवस्था की मान्यता को समाप्त करना होगा।
इधर प्रधानमंत्री जी जो लगातार बोल रहे हैं उससे स्पष्ट है कि वे जाति व्यवस्था को नकारने की ही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि देश में जातिगत जनगणना करने की बात करने वाले लोग देश को विभाजित करना चाहते हैं। उनके अनुसार देश में सिर्फ़ चार समूह है- युवा, महिला, गरीब और किसान। एक से अधिक बार मोदी जी इस बात को दोहरा चुके हैं, लेकिन इसको किसी ने गंभीरता से नहीं लिया है।
संघ के हिंदुत्व का लक्ष्य देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का है। इस लक्ष्य को मज़बूती के साथ आगे बढ़ाने के लिए पिछड़ी जाति में जन्म लेने वाला मोदी जी के जैसा मज़बूत प्रधानमंत्री मिल जाए तो लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन नहीं है। समझना होगा कि हिंदुत्व, सामाजिक न्याय और धर्म निरपेक्षता के विरुद्ध एक मज़बूत अभियान है। पिछड़े वर्गों ने, महिलाओं ने, दलितों और आदिवासियों ने अब तक के संघर्ष से जो हासिल किया है, हिंदुत्व उसको छीन लेने का एक अभियान है। इसको समझने की ज़रूरत है। पीड़ा यह है कि इसकी गंभीरता की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।
(लेखक राज्यसभा के सदस्य रहे हैं।)