दर्जी चिड़िया : बया ने घोंसलों के माध्यम से बारिश की स्थिति को किया बयां
प्रतापगढ़ सदर विधानसभा के मकूनपुर गांव के पास नीम के पेड़ पर इस साल बसी है बया की बस्ती
राजेश पटेल, प्रतापगढ़ (सच्ची बातें)। इस साल बया ने भी संकेत दिया है कि बारिश हल्की ही होगी। उसने घोंसले इस बार टहनियों के बिल्कुल आगे वाले भाग में लगाए हैं। एक और आश्चर्य, नीम के पेड़ पर बया की बस्ती। आमतौर पर बया कांटेदार पेड़ों बबूल, ताड़, खेजड़ी आदि पर ही लगाते हैं।
मानसून की आहट भांपकर पक्षी अपना घोंसला बनाना शुरू करते हैं। इनको आने वाले मौसम व किसी आपदा का भान पहले ही हो जाता है। उसी हिसाब से इनकी गतिविधियां देखी जाती हैं।
बया कुछ ज्यादा ही सयाना तथा कारीगर होता है। ज्यादा बारिश होने की संभावना होती है तो ये अपना घोंंसला टहनी के पीछे वाले भाग में, मध्यम की स्थिति में बीच में तथा कम बारिश होने की संभावना की स्थिति में बिल्कुल अग्र भाग में लगाता है। इस वर्ष बिल्कुल अग्र भाग में लगाए हैं, इसलिए संभावना जताई जा रही है कि बारिश हल्की ही होगी।
वैसे भी चैत-बैशाख में बारिश होने से मानसून कमजोर होता है। इस साल चैत व बैशाख में जमकर बारिश हुई है। घाघ ने कहा है कि एक बूंद जो चैत परै, सहस्र बूंद सावन हरै. यानि की यदि चैत माह में एक बूंद भी बारिश हो गई तो वह सावन में एक हजार बूंद का नुकसान करती है।
पहले घर, फिर वर
हमारे पूर्वज जब घर की बेटी की शादी के लिए कहीं जाते थे तो पहले घर देखते थे। लड़के के बारे में पड़ताल बाद में करते थे। आज भी किसी बेटी की शादी तय होती है तो लोग पूछते हैं कि घर-वर ठीक हैं न। अब समय बदल गया है। पहले वर देखा जाता है। वह काबिल है तो घर का कोई मतलब नहीं है। लेकिन, बया इस परंपरा पर कायम है।
घोंंसला बनाने का काम नर बया करता है। इसे बनाने में लंबा समय लगता है। दिन भर में करीब 500 बार वह उड़ान भरता है। खस, गन्ने का पत्ता या अन्य नुकीले कड़े पत्ते वाले घास को धागा की तरह बनाकर उसे बुनता है। इसमें सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। इस तरह से इसकी बनावट होती है कि सांप जैसा कोई शत्रु प्रवेश न कर सके। इसमें दो-तीन मंजिलें होती हैं। अंदर से गोबर या गीली मिट्टी से लिपाई भी की जाती है। किसी-किसी घोंसले में गोबर या मिट्टी का लेप लगाते समय उसमें जुगनुओं को चिपका दिया जाता है, ताकि रात में रौशनी भी रहे।
नर जब घोंसला बना लेता है कि मादा बया घूम-घूम कर निरीक्षण करती है। जो घोंसला उसे सुंंदर और सुरक्षित लगता है, उसी में बैठ जाती है। बुनने की कारीगरी के चलते इसे दर्जी चिड़िया (Weaver Bird या Tailer Bird ) भी कहा जाता है।
नीम के पेड़ पर लगाने का कारण
आमतौर पर बया कंटीले पेड़ों की टहनियों पर अपना घोंसला बनाते हैं, लेकिन इस वर्ष नीम के पेड़ों पर भी इसके घोंसले देखे गए। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ सदर विधानसभा में पड़ने वाले मकूनपुर गांव में बस्ती के सन्निकट नीम के पेड़ पर इस साल बया की बस्ती बसी है। नीम के पेड़ पर भी घोंसला को लेकर भी तमाम जानकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ लोगों का मानना है कि आने वाले समय में किसी वायरस के हमले की आशंका है। बया को पहले ही आभास हो चुका है, इसलिए उसने अपने घोंसले नीम के पेड़ों पर लगाए हैं। नीम कुदरती रूप से एंटी बायटिक है।
पक्षी वैज्ञानिक डॉ. फैय्याज खुदसर ने क्या कहा
नई दिल्ली के प्रख्यात पक्षी वैज्ञानिक डॉ. फैय्याज खुदसर ने कहा कि यह सत्य है कि पशु पक्षियों को आने वाले मौसम या किसी आपदा का आभास पहले ही हो जाता है, लेकिन नीम के पेड़ पर बया का घोंसला बनाना कोई नया नहीं है। वह घोंसला ऐसी जगह की बनाता है, जहां जरूरत के हिसाब है उसे घोंसला बनाने के लिए खर-पतवार उपलब्ध हो। नीम के पेड़ पर कीड़े कम होते हैं, इसलिए सांप भी उस पर नहीं जाते। स्थान विशेष पर सुरक्षा के दृष्टिगत वह घोंसला के लिए पेड़ों का चयन करते हैं। सबसे ज्यादा डर इनको सांपों से रहता है।
डॉ. फैय्याज कहते हैं कि भोजन की उपलब्धता को ध्यान में रखा जाता है। किसी नदी, तालाब या अन्य जलभराव वाले स्थानों पर कीड़े बहुतायत में होते हैं। इनको खुद खाना होता है बच्चे हो जाने पर उनको भी।
सामाजिक पक्षी है बया
बया सामाजिक पक्षी है। वह समूह में ही रहना पसंद करता है। एक घोंसला कहीं पर नहीं दिखाई देगा। पूरी बस्ती बसाते हैं। यह भी सुरक्षा के ही कारण। यदि कोई बया भोजन लेने गया है तो दूसरा उसके घोंसले की रखवाली करता है। कोई खतरा समझ में आने पर वह शोर मचाने लगता है। फिर सारे बया वहां पर जुटकर खतरे का मुकाबला करते हैं।
झारखंड के गढ़वा जिला के रमना प्रखंड में इसी तरह से ताड़ के पेड़ पर पत्तों के अंतिम छोर पर बया ने घोंसले बनाए हैं। नीचे की तस्वीर गढ़वा से सत्यप्रकाश ने भेजी है। वह रमना प्रखंड से दैनिक जागरण के लिए रिपोर्टिंग करते हैं।
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