घाघ ने कहा हैः सावन मास बहे पुरवइया, बरधा बेच कीनो धेनू गइया
घाघ की कहावतों के अनुसार इस वर्ष लक्षण सूखा के
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। काली घटाओं एवं रिमझिम फुहारों के लिए प्रसिद्ध सावन मास की तीखी घूप देख किसानों के सब्र का बांध टूटने लगा है। पुरवा हवा की उमस से जनजीवन बेहाल है। अधिकतम तापमान बिल्कुल मई-जून की तरह 37 डिग्री सेल्सियस है। न्यूनतम भी 28 डिग्री से कम नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में किसान करें तो करें क्या। नर्सरी भी सूख रही है। बाद में यदि बारिश हो भी जाए तो रोपाई कैसे करेंगे, जब नर्सरी ही नहीं रहेगी।
गुरुवार की तीखी धूप में सिवान में सन्नाटा
हालांकि कृषि पंडित के रूप में विख्यात महाकवि घाघ ने अपनी कहावतों के माध्यम से बारिश को लेकर जो भविष्यवाणियां की हैं, उनके अनुसार इस साल लक्षण ठीक नहीं नजर आ रहे हैं। सावन की ही बात करें तो अभी तक झकझोर कर पुरवा हवा चल रही है। बाादल आ रहे हैं, लेकिन बिना बरसे ही आगे बढ़ जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण पुरवा हवा ही है।
घाघ अपनी कहावत के माध्यम से चेताया भी है – सावन मास बहे पुरवइया, बरधा बेच कीनो धेनू गइया। इसका अर्थ है सावन माह में पुरवा हवा चले तो बारिश नहीं होगी। ऐसे में कृषि कार्य नहीं हो पायेगा। तब बैल की उपयोगिता ही क्या है। बैल को बेचकर गाय खरीदने में लाभ है।
बारिश न होने से सूख रही धान की नर्सरी
इस साल सावन में मलमास लगा है। अधिक मास। मतलब सावन दो माह का है। पहले माह का आज 27 जुलाई को 24वांं दिन है। स्थिति सभी के सामने है। इस समय बारिश की रिमझिम फुहार, नदी-नालों की फुफकार, बाग-बगीचों में झूलों व कजरी गायन के दिन हैं। लेकिन इनके स्थान पर चिलचिलाती धूप, नदी-नालों में उड़ती धूल ही है। कहींं से भी सावन लग ही नहीं रहा है।
हालांकि महाकवि घाघ ने लिखा है कि एक बूंद जो चैत परै, सहस्त्र बूंद सावन हरै। मतलब एक बूंद भी बारिश यदि चैत में हो गई तो आने वाले सावन में एक हजार बूंद बारिश का नुकसान होता है। इस साल चैत और बैशाख दोनों महीनों में जमकर बारिश हुई है। उसी का साइड इफेक्ट सावन में सूखा के रूप में दिखाई दे रहा है। इधर लगातार पुरवैया भी बह रही है।
लगातार दो वर्ष से सूखा पड़ने के कारण भूगर्भ जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है। स्थिति यह है कि जिस किसान के पास सबमर्सिबल पंप नहीं है, उसकी धान की नर्सरी सूखने लगी है। बाद में बारिश होने पर भी वह क्या करेगा। का बरखा, जब कृषि सुखानी.