मेरा गांव-मेरा गौरव my village my pride
झारखंड के चेटर गांव में अब तक कोई मामला थाने नहीं पहुंचा
शत प्रतिशत साक्षरता वाले इस गांव को लोग कहते हैं झारखंड का केरल
करीब डेढ़ हजार की आबादी वाले चेटर गांव में 45 से ज्यादा हैं सरकारी शिक्षक
झारखंड के रामगढ़ जिला के चेटर गांव से लौटकर राजेश पटेल
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शत-प्रतिशत साक्षरता। डेढ़ हजार की आबादी में 45 से अधिक सरकारी शिक्षक। इसलिए इसे गुरुजी का गांव भी कहा जाता है। खासियत यह कि इस गांव का कोई विवाद आज तक थाने नहीं पहुंचा। इसलिए इस गांव में पुलिस किसी विवाद को लेकर नहीं आती।
चाहे जैसा भी झगड़ा हो, गांव के अखरा में ही सलटा दिया जाता है। यदि दोषी पाए जाने पर दंड लगता है तो उसे गांव के सार्वजनिक कार्य में खर्च किया जाता है। बात हो रही है झारखंड के रामगढ़ जिले के चेटर गांव की।
यहां की खासियत देखने लंदन से लेकर रांची के संत जेवियर कॉलेज के छात्र भी आ चुके हैं।यह गांव राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 33 पर रामगढ़ से रांची की ओर जाने पर बाईं ओर दिखाई देता है। मुख्य सड़क पर चेटर गांव की ओर जाने वाले रास्ते में बोर्ड लगा है।
जिला मुख्यालय से करीब पांच किमी दूरी पर स्थित इस गांव की हर गली में चार पहिया वाहन आसानी से आ-जा सकता है। कहीं कोई गंदा पानी नहीं दिखाई देता है। घरों के पानी की निकासी के लिए अंडरग्राउंड नालियां बनी हैं। गलियों की साफ-सफाई गांव के ही युवक टोली बनाकर करते हैं।
और तो और, नशे में कोई बहकता भी नहीं दिखाई देगा, चाहे कोई भी पर्व हो या त्यौहार।यह गांव पहले कोठार पंचायत में था। अब नगर परिषद रामगढ़ में शामिल कर लिया गया है। इस गांव में महतो, मुंडा, बेदिया, करमाली, मुसलमान, ठाकुर (नाई) तथा कुम्हार जाति के रहते हैं। इनकी एकता देखकर लगता है कि पूरा गांव एक ही परिवार है।
इसी गांव के निवासी शिक्षक डॉ. सुनील कुमार कश्यप बताते हैं कि वे उनके पिता स्व. तुला राम महतो आजादी के आंदोलन के दौरान घूम-घूम कर अंग्रेजों के खिलाफ नारा लगाते थे। डॉ. कश्यप ने कहा कि जब से उन्होंने होश संभाला है, तब से कोई मामला थाने नहीं गया। यही बात उनके पिता भी बताते थे।
कोई विवाद होता भी है तो गांव के अखरा में बैठकर सलटा दिया जाता है। गांव का गोड़ाइत सभी को अखरा में इकट्ठा करता है। वहां पर सर्वसम्मति से पंच चुने जाते हैं। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद पंच अपना फैसला सुनाते हैं। इसे सभी मानते हैं।
यदि किसी पर दंड लगा तो उस राशि को दो लोगों के नाम से खुले संयुक्त खाते में रखा जाता है। किसी गरीब की बेटी की शादी में या किसी सार्वजनिक कार्य में इस राशि को खर्च किया जाता है।
इस गांव में के दो बच्चे एमबीबीएस कर रहे हैं। 8 बच्चे इंजीनियरिंग कर रहे हैं। पुलिस में नौकरी करने वाले पुरुषों व महिलाओं की संख्या 10 है। बैंक में भी तीन-चार लोग हैं। अमीर हो या गरीब। हर घर वेल एजुकेटेड। पूर्ण शिक्षित। खास बात यह है कि यदि गरीबी के कारण कोई अपने बच्चों को शिक्षा नहीं दिला पाता तो पूरे गांव के लोग मदद करके उसे पढ़ाते हैं।
डॉ. सुनील कुमार कश्यप बताते हैं कि वह चार भाई हैं। तीन शिक्षक हैं, एक पेशकार। घर की तीन बहुएं भी सरकारी शिक्षक हैं। एक बहू घर का कामकाज संभालती है।
डॉ. कश्यप ने ही एक ड्रॉप आउट बच्ची सुचिता बेदियाा को प्रेरित करके उसका एडमिशन कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में कराया था। वह बच्ची जब इंटरमीडिएट की परीक्षा में आर्ट्स से जिले की टॉपर बनी थी।
बाद में उसकी आगे की पढ़ाई का खर्च वहन करने की जिम्मेदारी एक आइपीएस अफसर ने ले ली थी। यह वाकया 2013 का है। इस तरह के और भी उदाहरण इस गांव में हैं। सुचिता इस झारखंड पुलिस में नौकरी कर रही है। गांव की ही विभा रानी का चयन झारखंड प्रशासनिक सेवा के लिए हुआ है।
गांव के लोगों का कहना है कि बच्चों की शिक्षा के लिए मध्य विद्यालय है। यह हाईस्कूल में उत्क्रमित कर दिया जाए तो और अच्छा होगा। बच्चों को कम से कम हाईस्कूल तक की शिक्षा तो अपने गांव में ही मिल जाएगी। अभी कक्षा आठ के बाद ही रामगढ़ जाना पड़ता है।
इस गांव के कुछ शिक्षकों के नाम : गोलाराम महतो, रामचंद्र महतो, बलकू मुंडा, निरंजन महतो, रामप्रसाद महतो, शीला बाला, डॉ. सुनील कुमार कश्यप, कु. प्रतिमा, अनिल कुमार कश्यप, अरविंद कुमार कश्यप, रामटहल ओहदार, डॉ. बीएन ओहदार (रांची विश्वविद्यालय से अवकाशप्राप्त), शंकर ओहदार, भीखलाल ओहदार, संजय कुमार सुधांशु, गनी करमाली, प्रमिला देवी, फणीश्वर महतो, सुरेश महतो आदि।
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