सच्ची बातें : गृहस्थ के रूप में सन्त
पढ़िए BHU बीएचयू से एम. फार्म किए श्रीपति सिंह द्वारा लिखी एक आदर्श परिवार की सच्ची कहानी...
सच्ची बातें : गृहस्थ के रूप में सन्त
आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों में समानता वाले लोग यदि साथ-साथ रहते हों तो दोस्ती स्वाभाविक है।
बलवन्त सिंह और महीप सिंह युवावस्था में एक साथ पढ़ते और छात्रावास में साथ-साथ रहते कब ‘दोस्त’ बन गये, खुद उन दोनों को भी पता नहीं चला। छात्रावास में दोनों के रूम अलग-अलग लाबियों में थे। बलवन्त सिंह को घूमने फिरने का शौक नहीं था। शाम को विभाग से आने के बाद मेस में नास्ता करने के बाद सीधे अपने रूम में। महीप सिंह कुछ सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हुआ था। अक्सर वह शाम को साईकिल से बाहर निकल जाता था। वापस आते ही पढ़ाई की चिंता। कई बार ऐसा हुआ कि इसके रूम में या उसके रूम में पढ़ते-पढ़ते रात के डेढ़ – दो बज गये और दोनों 3 फीट चौड़ी चौकी पर सो गये। एक की मुंडी इस तरफ, दूसरे की उस तरफ।
महीप सिंह का गाँव बहुत दूर नहीं था। नाव से गंगा जी पार करने के बाद बस मिलने में चाहे जो देरी हो। लगभग दो घंटे बस की सवारी, फिर पैदल कई गांवों का नजारा लेते लगभग दो घंटे में महीप सिंह का गांव आ जाता था। बलवन्त सिंह कई बार महीप सिंह के गाँव की यात्रा कर लिया था छह सालों में। कभी सुख में, कभी दुख में। गांव के वो सभी लोग आज भी बलवन्त सिंह को याद करते हैं, जिनसे महीप सिंह का हेल-मेल था और है।
बलवन्त सिंह के जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसके सर से माँ का साया उठ गया। वह बहुत छोटा था कि पिताजी चल बसे। बड़ी भाभी और बड़ी बहन के हाथों बलवन्त सिंह का पालन-पोषण हुआ। उसके बड़का भईया किसी यूनिवर्सिटी में बड़े पद पर थे और छोटका भईया सरकारी विभाग में मुलाजिम थे। संयोग देखिये कि उसके दोनों भाईयों की पहली पत्नियों की दुखद मृत्यु के बाद दूसरी शादियां हुई। खूब भरा पूरा परिवार। घर के मालिक पितातुल्य बड़का भईया। बड़का भईया का बड़ा लड़का लगभग बलवन्त की उम्र का।
संस्कार के धागे में बंधा हुआ एक भारतीय परिवार। बड़का भईया और छोटका भईया में गजब का आदर्शमय आपसी तालमेल और समझ। परिवार के सभी बड़े काम, मसलन बेटियों की शादी करना, मकान बनवाना, वगैरह वगैरह बड़का भईया की जिम्मेदारी। घर के नून, तेल, मसला, दवाई ओखद का काम छोटका भईया के जिम्मे।
दोनों भाई दो शहर में। दोनों का परिवार गांव में। संयोग की बात पढ़ाई के बाद बलवन्त सिंह और महीप सिंह की नौकरी एक ही जगह लग गई, जिस शहर में छोटका भईया रहते थे। बिहार का आदमी अमूमन ‘खैनी’ खाता है। छोटका भईया खैनी नहीं खाते थे। वो कोई नशा नहीं लेते थे। वो मांसाहारी भी नहीं थे। अपरिग्रह उनके स्वभाव में था। किसी जरूरतमंद की मदद वो जरूरी समझते थे। वो बचपन से ही प्रतिवर्ष कांवर लेकर ‘बाबाधाम’ जाते थे। अपने गाँव और आसपास के कई गांवों के वो सर्वमान्य पंच थे। लोगों को भरोसा था कि वो न्याय की बात करेंगे।
सरकार की ओर से उन्हें तीन कमरों का सरकारी आवास मिला हुआ था। उनका एक मित्र जिसका गांव दूर के जिले में था और परिवार बड़ा था, उसे आवास नहीं मिला था। छोटका भईया अपना सरकारी आवास अपने उस मित्र को दे दिये थे और भाड़ा भी नहीं लेते थे। खुद शहर में अवस्थित एक मठ में एक छोटा सा कमरा किराये पर लेकर रहते थे। उस मठ के कुएं में बहुत पिल्लू थे। उसी पानी को मठ में रहने वाले सभी लोग कपड़े से छान कर पीते थे।
नौकरी ज्वाईन करने के बाद बलवन्त सिंह भी छोटका भइया के साथ मठ में रहने लगा और उनके साथ हर साल सावन माह में बाबाधाम भी जाने लगा। महीप सिंह भी कभी-कभी छोटका भइया से मिलने मठ में जाता था, पर कुएं का पिल्लू वाला पानी पीने में हिचकता था। लेकिन कोई चारा नहीं था। उन दिनों बोतलबंद पानी नहीं मिलता था।
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जब भी मौका मिलता छोटका भईया के कान में दोनों मित्र यह बात डालते रहते कि अब उन्हें अपने सरकारी आवास में रहना चाहिए। छोटका भईया की नजर में यह बहुत बड़ा निर्णय था और बिना बड़का भईया की अनुमति के सम्भव नहीं था।
संयोग से एक रविवार महीप भी बलवन्त के गांव गया था। बड़का भईया भी आये हुए थे। चर्चा चल पड़ी। उस समय कोई फैसला नहीं हुआ। लेकिन जल्दी ही छोटका भइया मठ से निकल कर अपने सरकारी आवास में आ गये। छोटी भाभी और उनके छोटे बच्चे भी आ गये। छठवीं से आगे पढ़ने वाले सभी बच्चे बड़का भईया के साथ रह कर पढ़ते थे। बड़ी भाभी और उनके छोटे बच्चे गांव में।
एक बार की बात है बड़का भईया, छोटका भइया के आवास पर आए हुए थे। महीप सिंह भी गया हुआ था उस दिन। एक फेरी वाला कपड़ों का गट्ठर पीठ पर लादे हांक लगाता हुआ आ गया. बड़का भईया ने बेडशीट, गमछा और चादर लिया यहांं के लिए। इसी बीच छोटका भइया अपने कुर्ता के लिये भागलपुरी सिल्क का कपड़ा ले लिये। बड़का भईया ने फेरी वाले को पैसा देते हुए छोटका भईया से उनका नाम लेकर बोले कि कुर्ता का पैसा दीजिये ! छोटका भईया का जवाब बहुत मार्मिक था। उन्होंने कहा कि मेरे पास पैसा रहता तो आपके सामने मैं कपड़ा लेता ?
बलवन्त सिंह के तिलक और शादी के बीच 7 दिन का गैप था। गर्मियों की छुट्टी चल रही थी। महीप सिंह अपने गांव से तिलक में आया तो 7 दिन तक बलवन्त सिंह के गांव रह गया। बड़ी भाभी महीप सिंह के लिये आलू छील कर अलग से सब्जी बनाती थीं और अलग से ‘अरवा चावल’ मंगवाईं थी बाजार से महीप सिंह के लिये।
तिलक की रस्म के समय बलवन्त सिंह की आंखों में आंसू आ गए और सिसकी भी सुनाई पड़ी। पूजा के समय बड़ी भाभी अपना आंचल बलवन्त को ओढ़ाकर पीछे बैठी थीं। उसकी सिसकी उन्होंने साफ़ साफ़ सुन ली। अन्य कोई समझ नहीं पाया कि बात क्या है ? बलवन्त की भाभी उसकी माँ जैसी हैं। उन्हें मालूम हो गई थी बलवन्त के मन की टीस। बात बड़का भईया तक पहुंची।
एक दिन बाद चर्चा शुरू हुई। दोनों बड़े भाई. बलवन्त, महीप, घर के और लोग। बलवन्त को अपने पिता जी की याद आ गई थी। और उसका यह सवाल सामने था कि यदि पिताजी होते तो उसके तिलक के लिये खुद कपड़े बनवाते या नहीं ?
बड़का भईया का दृष्टिकोण व्यवहारिक था। उन्होंने कहा कि तुम्हें नौकरी करते दो साल हो गये। न कुछ बड़ी खरीदारी की, न ही मुझे कुछ दिया। क्या करते हो पैसों का ? छोटका भईया ने बड़का भईया की हां में हां मिलाई।
छोटका भईया के बड़ी लड़की की उम्र शादी की हो गई थी। बलवन्त ने छोटका भइया को लक्ष्य करके कहा कि उसने उनका बैंक पासबुक देखा है। इतने लम्बे समय तक नौकरी करने के बाद भी केवल कुछ सौ रुपये हैं खाता में। आप अपना सब पैसा घर के नून तेल में खर्च कर देते हैं। कैसे शादी होगी बेटी की ? छोटका भइया ने तुरंत कहा कि बेटी की शादी करना मेरा काम नहीं है। बड़का भईया जानें।
अगर किसी कारण से वो नहीं कर पाये तो ? क्यों नहीं करेंगे ? फिर भी ? तब भगवान जाने, कह कर छोटका भईया बाहर चले गये।
एक साल बाद छोटका भइया की बेटी की शादी इंजीनियर लड़के के साथ बड़का भइया ने बड़ी धूमधाम से की। महीप सिंह भी कई दिन वहां रहा था। कुछ वर्षों बाद महीप सिंह की नौकरी दूसरे विभाग में हो गई,लेकिन आना – जाना यथावत जारी रहा।
मालूम हुआ कि छोटका भइया को अनियमित और अनियंत्रित लूज मोसन की समस्या हो गई है।तब तक वो सपरिवार निजी मकान में रहने लगे थे। इस मकान को बनवाने में छोटका भईया का कुछ पैसा लगा था। लेकिन उससे बहुत ज्यादा पैसा बड़का भईया का ही लगा था। इलाज चलता रहा। लेकिन समस्या यथावत बनी रही। बहुत बाद चिकित्सकों का ध्यान कैन्सर की ओर गया। कुछ जांच हुई फिर मुंबई ले जाया गया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
महीप सिंह की नजर में छोटका भइया गृहस्थ जीवन जीते हुए भी ‘सन्त’ थे।
-श्रीपति सिंह, एम फार्म (बीएचयू)
लोढ़वांं, जमालपुर,मिर्जापुर।