दिन में मजदूरी व रात में करती थीं पढ़ना, हाईस्कूल में टीचर बन गई आदिवासी बहना
झारखंड के चाकुलिया प्रखंड के बड्डीकानपुर पंचायत की नीलमणि हांसदा लक्ष्य के प्रति समर्पण की बनीं मिसाल
संघर्ष उस नन्हें बीज से सीखिए, जो जमीन में दफ़न होकर भी लड़ाई लड़ता है, और तब तक लड़ता है, जब तक धरती का सीना चीर कर अपने अस्तित्व को साबित नहीं कर देता है। नीलमणि हांसदा ने ऐसा ही कर दिखाया। संघर्ष की बदौलत अपना लक्ष्य हासिल कर ही लिया। अपना अस्तित्व जता दिया।
राजेश पटेल, जमशेदपुर (पू. सिंहभूम)। गरीब थी, आदिवासी है। महिला है। मगर उसका लक्ष्य एक था। पढ़-लिखकर कुछ बनना। ताकि वह अन्य आदिवासी बेटियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सके। इसके लिए उसने क्या नहीं किया। पहले मां ने मजदूरी करके प्राइमरी शिक्षा दिलवाई। इसके बाद खुद भी मजदूरी करने लगी। साथ में पढ़ाई भी। जाड़ा, गर्मी, बरसात में दिन में मजदूरी, रात में पढ़ाई उसकी दिनचर्या बन गई। लोग हंसते भी थे। तिरस्कार करते थे। लेकिन हार नहीं मानी। अब जब उसे सरकारी हाईस्कूल में शिक्षक की नौकरी मिल गई तो वही मजदूरी करने वाली महिला अपने जैसी अन्य के लिए प्रेरणा बन गई।
उसका नाम है नीलमणि हांसदा। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर-टाटानगर) जिले के चाकुलिया प्रखंड (ब्लॉक) में स्थित बड्डीकानपुर पंचायत को माचकांदना गांव की रहने वाली हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले ही सप्ताह उसे हाईस्कूल में शिक्षक का नियुक्ति पत्र सौंपा।
नियुक्ति पत्र पाने के बाद 36 साल की नीलमणि हांसदा के चेहरे पर जो मुस्कान दिखी, उसमें लक्ष्य के लिए मेहनत, लगन और संघर्ष की जीत झलक रही थी। लेकिन इसके पीछे की कहानी चौंकाने वाली है।
नीलमणि जब तीन साल की थीं, तभी उनके पिता गजेंद्र हांसदा का देहांत हो गया था। मां सरस्वती हांसदा ने अपनी संतानों नीलमणि तथा लूसाराम का पालन पोषण किया। नीलमणि अपने भाई लूसाराम से छोटी हैं। प्राथमिक शिक्षा तो किसी तरह से गांव के स्कूल से प्राप्त कर ली। हाईस्कूल व इंटर की शिक्षा निकटस्थ चाकुलिया प्रखंड मुख्यालय स्थित मनोहर लाल विद्यालय से प्राप्त की।
इसके बाद करीब 50 किमी दूर घाटशिला कॉलेज से 2008 में बीए किया। फिर 2010 में जमशेदपुर कोऑपरेटिव कॉलेज से एमए व 2012 में बहरागोड़ा से बीएड पास की। इस दौरान नीलमणि छुट्टियों में मजदूरी करती थीं, ताकि उसकी पढ़ाई के खर्च का सारा बोझ मां पर ही पड़े।
नीलमणि के जीवन में असल संघर्ष तो 2012 के बाद शुरू हुआ, जब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की। दिन में मनरेगा में मजदूरी करके पैसों की व्यवस्था करती थीं। रात में पढ़ाई। इसी तरह से मजदूरी व पढ़ाई साथ करते-करते नीलमणि ने 2016 में जेटेट की परीक्षा पास कर ली, लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिली।
कुछ लोगों ने अब पढ़ाई के लिए मना भी किया। क्योंकि उम्र बढ़ती जा रही थी। कुछ हतोत्साहित करने के लिए ताने भी मारते थे, लेकिन नीलमणि का तो लक्ष्य एक था। वह उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। 2017 में नीलमणि ने हाईस्कूल शिक्षकों की परीक्षा दी और उसमें पास हो गई। उसी आधार पर उसे अब जाकर नियुक्ति पत्र मिला है। उनको बहरागोड़ा प्रखंड के केशरदा उच्च विद्यालय में नियुक्त किया गया है।
बाल विवाह का किया विरोध, इसलिए भाई से हो गया पंगा
नीलमणि हांसदा बाल विवाह की धुर विरोधी हैं। उनके बड़े भाई ने जब अपनी बेटी (नीलमणि की भतीजी) की शादी जब 16 साल की ही उम्र में तय कर दी तो नीलमणि ने विरोध किया। बड़े भाई से बार-बार कहती रहीं कि अभी इसकी उम्र शादी की नहीं, पढ़ाई की है। खूब झगड़ा किया, लेकिन बड़े भाई नहीं माने तो उनसे नीलमणि ने संबद्ध विच्छेद कर लिया।
शिक्षा से ही दूर होगा आदिवासी समाज में पिछड़ापन
नीलमणि हांसदा का कहना है कि शिक्षा से ही आदिवासी समाज में पिछड़ापन दूर होगा। नीलमणि का कहना है कि दुनिया कितनी आगे निकल गई है, लेकिन हमारा आदिवासी समाज उसी तरह से जी रहा है। इस समाज में बाल विवाह अभी भी हो रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। यह कानूनी लिहाज से भी गलत है। हद तो यह है कि समाज के कथित रहनुमा मांझी परगना आदि भी बाल विवाह को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाते। लोग शिक्षित नहीं होंगे तो पिछड़ापन दूर नहीं होगा। हर माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए।
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