टीएन शेषन ने एक बार पूरे देश में चुनाव कराने पर ही रोक लगा दी थी
रेहान फजल
———————–
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी सेठना ने 1972 में अपने विभाग में उप सचिव पद पर काम कर रहे टीएन शेषन की गोपनीय रिपोर्ट ख़राब कर दी थी।
इसके जवाब में शेषन ने अपना बचाव करते हुए कैबिनेट सचिव टी स्वामिनाथन को 10 पन्नों का पत्र लिख कर अनुरोध किया था कि उनके ख़िलाफ़ की गई टिप्पणी को उनकी गोपनीय रिपोर्ट से हटा दिया जाए।
अपनी आत्मकथा ‘थ्रू द ब्रोकेन ग्लास’ में टीएन शेषन ने लिखा है, “इंदिरा गाँधी ने फ़ाइल से सिर उठा कर मुझसे पूछा तो आप शेषन हैं? आप इस तरह का दुर्व्यवहार क्यों कर रहे हैं? सेठना आपसे नाराज़ क्यों हैं?”
“मैंने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया मैडम मैंने ये बात आज तक किसी को नहीं बताई है। विक्रम साराभाई और होमी सेठना में गंभीर मतभेद हैं। मैं विक्रम के साथ काम कर रहा था इसलिए सेठना मेरे ख़िलाफ़ हो गए हैं।”
“इंदिरा ने पूछा, क्या आप आक्रामक हैं? मैंने जवाब दिया अगर मुझे कोई काम दिया जाता है तो मैं आक्रामक होकर उसे पूरा करता हूँ। इंदिरा गांधी का अगला सवाल था आप लोगों से रूखा व्यवहार क्यों करते हैं? मैंने कहा कि अगर कोई काम निश्चित समय के अंदर नहीं होता तो मेरा व्यवहार ख़राब हो जाता है।”
“इंदिरा ने फिर पूछा क्या आप लोगों को धमकाते हैं? मैंने कहा मैं इस तरह का शख़्स नहीं हूँ। इंदिरा गांधी ने अपने असिस्टेंट से कहा, ‘उन्हें बुलाइए’। तभी होमी सेठना इंदिरा गाँधी के दफ़्तर में दाख़िल हुए। इंदिरा ने मेरे सामने ही उनसे पूछा- आपने इस युवा शख़्स की गोपनीय रिपोर्ट में ये सब क्यों लिखा है?”
“फिर उन्होंने मेरी तरफ़ इस तरह देखा मानो कह रही हों, अब तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मुझे लगा कि इंदिरा गाँधी भी मुझसे नाराज़ हैं। लेकिन 10 दिन बाद मुझे सरकार का पत्र मिला कि मेरे खिलाफ़ सभी प्रतिकूल प्रविष्टियाँ मेरी गोपनीय रिपोर्ट से हटा दी गई हैं।”
विजय भास्कर रेड्डी और विधि मंत्रालय से तल्ख़ी
जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए तो क़ानून मंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने चुनाव आयोग से संसद में पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए कहना शुरू कर दिया। शेषन ने इसका ज़ोरदार विरोध किया. उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग सरकार का कोई विभाग नहीं है।
विजय भास्कर इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के पास ले गए। टीएन शेषन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “रेड्डी ने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मुझसे कहा, शेषन आप सहयोग नहीं कर रहे हैं। मैंने जवाब दिया मैं कोई कोऑपरेटिव सोसाइटी नहीं हूँ। मैं चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करता हूँ।”
“प्रधानमंत्री ये सुन कर सन्न रह गए। फिर मैंने प्रधानमंत्री की तरफ़ मुड़ कर कहा, मिस्टर प्राइम मिनिस्टर अगर आपके मंत्री का यही रवैया रहा तो मैं उनके साथ काम नहीं कर सकता।”
उसी तरह एक बार विधि सचिव रमा देवी ने चुनाव आयोग को फ़ोन कर कहा कि विधि राज्य मंत्री रंगराजन कुमारमंगलम चाहते हैं कि अभी इटावा का उप चुनाव न कराया जाए।
शेषन लिखते हैं, “मैंने प्रधानमंत्री को सीधे फ़ोन मिला कर कहा कि सरकार को शायद ये ग़लतफ़हमी है कि मैं घोड़ा हूँ और सरकार घुड़सवार है। मैं ये स्वीकार नहीं करूँगा।”
“अगर आपके पास किसी फ़ैसले को लागू करने के बारे में एक अच्छा कारण है, मुझे बता दीजिए. मैं सोचकर उस पर अपना फ़ैसला सुनाउंगा। लेकिन मैं किसी हुक्म का पालन नहीं करूँगा।”
“प्रधानमंत्री ने मेरी बात सुनने के बाद कहा, आप रंगराजन से अपना मामला सुलझा लीजिए। मैंने कहा, मैं उनसे नहीं आपसे ये मामला सुलाझाउंगा।”
“मैं चाहूँगा कि रंगराजन चुनाव आयोग के फ़ैसले को प्रभावित करने की कोशिश के लिए मुझसे माफ़ी माँगें। अगर हमें किसी बात का पता नहीं है जैसे कि सूखा पड़ रहा है, बाढ़ आ गई है, प्लेग फैल गया है तब आप हमसे कहिए कि हम चुनाव नहीं करा सकते।”
“लेकिन आप मुझे ये नहीं कह सकते कि आप ये कीजिए, ये मत कीजिए। उसी दिन रंगराजन ने मुझे फ़ोन किया और मुझसे तमिल में पूछने लगे, मामला क्या है? मैंने कहा आप मुझसे माफ़ी माँगिए।”
“उसी दिन 12 बजे के आसपास विधि मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव दौड़ा दौड़ा विधि सचिव की चिट्ठी लिए निर्वाचन सदन आया। इस चिट्ठी में लिखा था- मैंने जो कुछ भी कहा या लिखा है उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगती हूँ।”
सभी चुनावों पर रोक लगाने का आदेश
2 अगस्त, 1993 को टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि जबतक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई चुनाव नहीं कराया जाएगा।
शेषन ने अपने आदेश में लिखा कि चुनाव आयोग ने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाला हर चुनाव जिसमें दो साल पर होने वाले राज्यसभा चुनाव, लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, अगले आदेश तक स्थगित रहेंगे।
शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इससे इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने शेषन को ‘पागल कुत्ता’ तक कह डाला। वैसे पीठ पीछे उनसे परेशान लोग शेषन को ‘अलसेशियन’ भी कहने लगे थे।
पर कतरने के लिए दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
एक अक्तूबर, 1993 को जब शेषन पुणे में थे सरकार ने जीवीजी कृष्णामूर्ति और एमएस गिल को नया चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। कांग्रेस के प्रवक्ता विट्ठलराव गाडगिल ने व्यंग करते हुए कहा, “ये फ़ैसला शेषन के काम में हाथ बँटाने के लिए लिया गया है।”
शेषन ने लिखा, “मेरा वर्कलोड हुआ करता था सुबह 10 मिनट और शाम 3 मिनट का। दिन के बाकी समय मैं अपना वक्त टाइम्स ऑफ़ इंडिया की क्रॉसवर्ड पज़ल हल करने में बिताता था। एक बार अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैं अपनी दफ़्तर की कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गया। ये किसी बीमारी या बढ़ती उम्र की वजह से नहीं बल्कि बोरियत की वजह से हुआ था।”
“ये थी मेरी तथाकथित व्यस्तता की असली तस्वीर। उस पर तुर्रा ये था कि कोई मेरी इस व्यस्तता को और कम करने की कोशिश कर रहा था।”
इन दोनों चुनाव आयुक्तों का वेतन भी टीएन शेषन के बराबर तय किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना ने इस अध्यादेश की ये कहकर आलोचना की थी कि इस पर पहले संसद में चर्चा होनी चाहिए थी।
मशहूर न्यायविद् फली नरीमन ने कहा था, “ये सब मुख्य चुनाव आयुक्त की ताक़त को कम करने के लिए किया गया है। इससे निश्चित रूप से उसकी स्वायत्ता पर असर पड़ेगा।”
शेषन के साथ की बदसलूकी
तीनों चुनाव आयुक्तों की पहली मुलाकात अच्छी नहीं रही। शेषन लिखते हैं, “कृष्णमूर्ति मेरे कमरे में आकर कोने में पड़े सोफ़े पर बैठ गए और मुझसे सोफ़े पर बैठने के लिए कहा। मैंने हाथ जोड़कर कहा- मैं जहाँ बैठा हूँ वहीं ठीक हूँ।”
इस पर कृष्णमूर्ति बोले, “मैं तुम्हारी मेज़ के सामने पड़ी कुर्सियों पर तो बैठने से रहा। ये सब तुम्हारे चपरासियों के लिए है। तभी गिल ने कमरे में प्रवेश किया। कृष्णमूर्ति ने गिल से कहा- गिल तुम उनके सामने वाली कुर्सी पर मत बैठना। इनसे कहो कि ये यहाँ सोफ़े पर आकर बैठें।”
“गिल ने मुझसे पूछा कि क्या आपको सोफ़े पर आकर बैठने पर आपत्ति है? मैंने कहा- किसी और दिन मैं सोफ़े पर तो क्या कालीन पर भी बैठ सकता था, लेकिन आज नहीं। फिर कृष्णमूर्ति ने मुझे गालियाँ देनी शुरू कर दीं। इस बीच गिल खड़े रहे। उनकी समझ में नहीं आया कि वो सोफ़े पर कृष्णमूर्ति के बग़ल में बैठें या मेरे सामने कुर्सी पर।”
“इसके बाद कृष्णमूर्ति ने अपनी बाईं टाँग उठाकर मेज़ पर रख दी। फिर वो मेरे पास आकर बोले क्या आपकी मुझसे हाथ मिलाने की इच्छा है? मैं चुप रहा। इसके बाद वो दोनों कमरे से उठ कर चले गए। अगले दिन समाचारपत्रों में छपा, कृष्णामूर्ति और गिल दोनों ने मेरे दफ़्तर से वॉक आउट कर दिया।”
उप चुनाव आयुक्त को सौंपा चार्ज
टीएन शेषन ने इन चुनाव आयुक्तों से सहयोग नहीं किया। जब वो अमेरिका गए तो उन्होंने इन दोनों के बजाए उप चुनाव आयुक्त डीएस बग्गा को अपना चार्ज सौंपा। शेषन के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। तब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि शेषन की अनुपस्थिति में एमएस गिल मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर काम करेंगे। राजनेताओं में शायद राजीव गाँधी अकेले शख़्स थे जो शेषन को पसंद करते थे। जब शेषन वन एवं पर्यावरण सचिव थे तो उन्हें छुट्टी में भी दफ़्तर जाने की आदत थी।
2 अक्तूबर, 1986 को वो अपने दफ़्तर में टेलीविज़न पर क्रिकेट मैच देख रहे थे। तभी क्रिकेट कमेंट्री आनी बंद हो गई और एक ख़बर फ़्लैश हुई कि राजघाट में एक व्यक्ति ने राजीव गाँधी पर गोली चलाई है। अगले दिन राजीव गाँधी ने शेषन को तलब कर लिया।
शेषन लिखते हैं, “जब मैं उनके घर पहुंचा तो वहाँ चारों तरफ़ पुलिस वाले फैले हुए थे। राजीव गाँधी ने मुझसे कहा, शेषन मैं चाहता हूँ कि तुम कल हुई घटना की जाँच करो और मुझे इसकी रिपोर्ट सौंपो। मैंने कहा- मैंने इस तरह का काम पहले कभी नहीं किया है। दूसरा कोई शख़्स मुझसे बेहतर इस काम को अंजाम दे पाएगा।”
“राजीव ने कहा- तुम निडर होकर बोलते हो। तुम्हें किसी का डर नहीं है। इस वजह से ही मैं ये ज़िम्मेदारी तुम्हें दे रहा हूँ। मुझे ये रिपोर्ट सौंपने के लिए 4 हफ़्तों का समय दिया गया।”
“मैंने सुरक्षा व्यवस्था में कमी को लेकर 150 पन्नों की रिपोर्ट राजीव गाँधी को सौंपी और ये भी सुझाव दिए कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाना चाहिए।”
प्रधानमंत्री की सुरक्षा का अतिरिक्त भार
दो महीने बाद 15 दिसंबर को शेषन के पास प्रधानमंत्री कार्यालय से एक फ़ोन आया जिसमें उनसे कहा गया कि वो पालम हवाई अड्डे पर राजीव गाँधी से मिलें।
राजीव गाँधी को लेने के लिए एक लाल रंग की बुलेटप्रूफ़ जीप हवाई अड्डे आई हुई थी। राजीव खुद ड्राइवर की सीट पर बैठे। आंतरिक सुरक्षा मंत्री चिदंबरम उनके बग़ल में बैठे। शेषन पीछे की सीट पर बैठे।
शेषन लिखते हैं, “राजीव ने कहा कि आपने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जो सुझाव दिए हैं उनको आपको ही लागू करवाना होगा। मैंने उनसे पूछा मैं इसमें आपकी किस तरह मदद कर सकता हूँ? राजीव ने जवाब दिया- सुरक्षा को अपने नियंत्रण में लेकर।”
“बग़ल में बैठे चिदंबरम ने कहा ये अच्छा सुझाव है। हम इनकी जगह दूसरा वन और पर्यावरण सचिव ढूंढ लेंगे। लेकिन राजीव ये नहीं चाहते थे। वो चाहते थे कि मैं पर्यावरण और सुरक्षा दोनों विभाग देखूँ। एक सप्ताह बाद कैबिनेट सचिव के दफ़्तर से इस आशय का आदेश जारी कर दिया गया।”
पूर्व पीएम के परिजनों को एसपीजी सुरक्षा देने को कहा
राजीव की सुरक्षा पर नज़र रखने के लिए शेषन अक्सर राजीव के निवास पर जाने लगे। धीरे धीरे वो राजीव के नज़दीक आते चले गए।
लेकिन राजीव अपनी सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लेते थे। शेषन उनके कोलम्बो जाने के सख़्त ख़िलाफ़ थे। लेकिन राजीव ने उनकी बात नहीं मानी। नतीजा ये हुआ कि वहाँ एक श्रीलंकाई नौसैनिक ने राजीव पर राइफ़ल के बट से हमला किया।
ऐसे भी मौके आए जब शेषन ने उनके मुँह से बिस्कुट निकाल लिया। उनका तर्क था कि प्रधानमंत्री को ऐसी कोई चीज़ नहीं खानी चाहिए जिसका परीक्षण न किया जा चुका हो।
जब एसपीजी एक्ट बनाया गया तो उसमें प्रावधान था कि एसपीजी प्रधानमंत्री के अलावा उनके परिवारजनों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेगी।
शेषन राजीव के पास प्रस्ताव लेकर गए कि इसमें पूर्व प्रधानमंत्रियों ओर उनके परिजनों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
शेषन लिखते हैं, “मैंने राजीव से कहा आज आप प्रधानमंत्री हैं। कल आप इस पद से हट सकते हैं। लेकिन आपकी जान पर ख़तरा बना रहेगा। मैंने उन्हें अमेरिका का उदाहरण दिया जहाँ एफ़बीआई उनका कार्यकाल समाप्त हो जाने और उनके निधन के बाद भी उनके परिवार वालों को सुरक्षा प्रदान करती है।”
“लेकिन राजीव इस बात के लिए राज़ी नहीं हुए। उन्हें लगा कि लोग सोचेंगे कि वो ऐसा अपने निजी स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। मैंने उनको मनाने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ।”
शेषन को कैबिनेट सचिव के पद से हटाया गया
विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री बनने के अगले ही दिन इस बात पर विचार करने के लिए एक बैठक बुलाई गई कि राजीव गाँधी और उनके परिवार को एसपीजी कवर दिया जाए या नहीं।
कैबिनेट सचिव के तौर पर शेषन ने सलाह दी कि राजीव गाँधी को वही सुरक्षा मिलनी चाहिए जो उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर मिल रही थी।
लेकिन वीपी सिंह सरकार इसके लिए राज़ी नहीं हुई। 22 दिसंबर, 1989 को रात साढ़े 11 बजे एक सरकारी हरकारा मोटर साइकिल पर शेषन के लिए एक लिफ़ाफ़ा लेकर आया। उस लिफ़ाफ़े में आदेश था कि उन्हें कैबिनेट सचिव की जगह योजना आयोग का सदस्य बनाया जा रहा है।
शेषन को इस बात से तकलीफ़ हुई कि प्रधानमंत्री ने ये फ़ैसला लेने से पहले उन्हें बताने तक का शिष्टाचार नहीं निभाया। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव बीडी देशमुख ने भी उन्हें इस बारे में कोई संकेत देने की ज़रूरत नहीं महसूस की। अगले दिन शेषन ने ही कैबिनेट सचिवालय के एक अफ़सर को फ़ोन कर पूछा कि उनकी जगह कैबिनेट सचिव बनाए गए विनोद पांडे कब अपना कार्यभार ग्रहण करना पसंद करेंगे? विनोद पांडे ने 11 बजकर 5 मिनट का समय चुना। शेषन समय से दो मिनट पहले चार्ज देने के लिए दफ़्तर पहुंच गए।
काँची शंकराचार्य की सलाह पर लिया मुख्य चुनाव आयुक्त का पद
जब वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तो उन्हें शेषन को दोबारा कैबिनेट सचिव बनाने की पेशकश की गई लेकिन शेषन ने कहा कि वो जल्द ही रिटायर होने वाले हैं। तब चंद्रशेखर ने सुब्रमणयम स्वामी के ज़रिए उनके पास मुख्य चुनाव आयुक्त बनने का प्रस्ताव भेजा। शेषन ने इस बारे में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण से सलाह ली। दोनों ने कहा, अगर कोई दूसरा प्रस्ताव न मिले तभी इस पेशकश को स्वीकार करना। इसके बाद शेषन ने काँचीपुरम के शंकराचार्य की सलाह ली। शंकराचार्य ने कहलवाया- ये सम्मानजनक पद है। इसे शेषन को ले लेना चाहिए। 10 दिसंबर, 1990 को शेषन के नवें मुख्य चुनाव आयुक्त बनने का आदेश जारी हुआ।
साभार-बीबीसी