यह मात्र एक तस्वीर नहीं है। आजादी के अमृत काल की हकीकत है। विकास का ढिंढोरा पीटने वालों के लिए आइना है। देश को विश्व गुरु बनाने वालों के गाल पर तमाचा है। देश का मालिक होने का दंभ भरने वाले मतदाताओं की औकात का परिचायक है। नेताओं के लिए कुछ नहीं। गोदी मीडिया के लिए देशभक्ति।
जिलाधिकारी के बसाए गांव के लिए 50 साल में भी नदी में नहीं बन सका एक अदद पुल
आरके वर्मा, मुजफ्फरनगर (सच्ची बातें)। यदि करील के पेड़ में पत्ते नहीं लगते तो इसमें वसन्त ऋतु का क्या दोष है? अगर उल्लू को दिन में नहीं दिखाई देता है, तो इसमें सूर्य का क्या दोष है ? अगर पपीहे के मुख में जल-धारा नहीं गिरती, तो इसमें मेघ का क्या दोष है ? विधाता ने जो कुछ भाग्य में लिख दिया है, उसे कोई भी मिटा नहीं सकता । मुजफ्फरनगर के मोरना विकास खंड के योगेंद्र नगर के निवासियों पर आजादी के अमृत काल में भी जो बीत रही है, उसे अपना भाग्य ही मान लिया है। अब वे किसी को दोष नहीं देते।
कैसे बसा योगेंद्र नगर
योगेंद्र नगर गांव की कहानी बहुत रोचक है और परेशान करने वाली भी। यहां के लोग पहले सोलानी नदी केे दूसरी तरफ रहते थे। उस गांव का नाम बख्शीराम कान्हावाली था। सोलानी नदी में हर साल बाढ़ आती थी और गांव भी हर साल डूबता था। बरसात के दिनों में यहां के लोग बहुत परेशान रहते थे। 1976 में तत्कालीन जिलाधिकारी योगेंद्र नारायण माथुर ने इनकी दुर्दशा देखी तो 29 फरवरी को एक ऊंचे टीले पर जगह आवंटित कर नया गांव बसा दिया। बख्शीराम कान्हावाली गांव के रहले वाले सभी लोग नई बस्ती में आ गए। जिलाधिकारी के ही नाम पर इस गांव का नाम योगेंद्र नगर रख दिया गया।
ऊंचे स्थान पर आने से परेशानी कम होने के बजाए और बढ़ी
ऊंचे टीले पर गांव तो बसा लिया गया, लेकिन सभी के खेत तो नदी के दूसरी तरफ ही रह गए। खेती के काम से उनको नदी पार करना पड़ता है। पुल की जरूरत है। 1976 से अब तक बरसात हो, जाड़ा या गर्मी। ग्रामीणों को प्रतिदिन एक बार तो नदी आर-पार करना ही पड़ता है। किसी-किसी दिन तो कई बार आर-पार करना पड़ता है। हर चुनावा में सोलानी नदी में पुल बनने की बात हर चुनाव में उठती है। नेता आश्वासन भी देते हैं, लेकिन चुनाव बाद ही सभी भूल जाते हैं।
गांव में करीब 1500 मतदाता
अब तो स्थिति यह हो गई है कि ग्रामीणों ने पुल निर्माण की उम्मीद ही छोड़ दी है। ऐसा तब है, जब इस गांव में करीब 1500 मतदाता हैं। इसी गांव के निवासी सुशील कुमार बताते हैं कि हर चुनाव में नेता लोग आते हैं, पुल निर्माण कराने का आश्वासन देते हैं, जो आज तक पूरा नहीं हो सका है।
नदी पार करते समय डूबने से कई लोगों की जा चुकी है जान
खेती के लिए नदी पार करने के क्रम में गांव के ओमप्रकाश, मुख्तियार सिंह, अर्जुन, वीरबल, तारा, सतबीर, मांगी सहित कई ग्रामीणों की डूबने से मौत हो चुकी है। कई किसानों के मवेशी भी अपनी जान गंंवा चुके हैं। इसके बावजूद विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर देश में स्थिति इस तरह की भी है।
इस साल कार्ययोजना में शामिल करने के लिए भेजा जाएगा प्रस्ताव
उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम सहारनपुर मंडल के परियोजना प्रबंधक सत्येंद्र सिंह ने कहा कि वर्ष 2022-2023 में पुल निर्माण के लिए 26 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा गया था, लेकिन कार्ययोजना में शामिल नहीं हो सका। इस साल 2023-2024 में फिर प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है।