वाहनों को बुरी नजर से बचाती हैं ये चोटियां, महिलाएं बालों का शृंगार भी करती हैं इनसे
फील नगर के लोग गांव में ही करते हैं काम, आपस में ऐसा झगड़ा नहीं करते जो पुलिस के पास जाना पड़े
राजीव शर्मा, शाहजहांपुर। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले का एक गांव है फील नगर। यहां पर महिलाओं के शृंगार के लिए तथा वाहनों को बुरी नजर से बचाने के लिए एवं उनके शृंगार के लिए चोटी बनाने का काम होता है। इस गांव में बनाई गई चुटिया पूरे भारत में सप्लाई की जाती है। रोजगार से जुड़ा होने के चलते इस गांव के लोग अन्य प्रदेशों में नौकरी करने नहीं जाते हैं तथा अपराध भी इस गांव में नहीं होता है।
तिलहर ब्लाक के अंतर्गत आने वाले गांव फील नगर में हर घर में चोटी बनाने का काम होता है। तेज आवाज में बज रहे संगीत की धुन के साथ गांव के कारीगर चोटी बनाने का काम करते हैं। लगभग 35 सौ की जनसंख्या वाले गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं। एक बुजुर्ग बताते हैं कि शाम को कहासुनी होने के बाद सुबह फिर बोल चाल शुरू हो जाती है। यहां के मामले ज्यादातर यहीं खत्म होते हैं। थाने जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
इस गांव में चोटी बनाने का काम कई दशकों से हो रहा है। पहले कम ठेकेदार थे। अब ज्यादा हो गए हैं। इसलिए मुनाफा में कमी आई है। वहीं ज्यादातर महिलाओं ने भी बालों में चोटी लगाना छोड़ दिया है।
अजय कश्यप बताते हैं कि वह फर्रुखाबाद के रहने वाले हैं। दिल्ली में कारोबार चलाते थे। कोविड-19 में घर आ गए थे। उनके पास कोई रोजगार नहीं था। इसलिए फील नगर अपनी रिश्तेदारी में आ गए और यहां पर चोटी बनाने का काम शुरू कर दिया। मूल रूप से फर्रुखाबाद के रहने वाले हैं।
उनका कहना है कि भीलवाड़ा, राजस्थान, गुजरात से कच्चा धागा लाते हैं। बाद में इसे साफ करते हैं। कटिंग करने के बाद गांव में जो उनके कारीगर हैं, उनको बांट देते हैं। महिलाएं गांठ लगाती हैं और इसके बाद इन्हें दूसरे कारीगरों को दे दिया जाता है।
वह बताते हैं कि दूसरे कारीगर उनसे चोटी पर फूल बनाते हैं। इस तरह कई लोगों की अलग-अलग कारीगरी के बाद चोटियां बनकर तैयार होती हैं। हर कारीगर का काम ठेके पर होता है और उसे उसके काम का मेहनताना दिया जाता है। इससे होने वाली आय के बारे में कश्यप का कहना है कि हर कारीगर 300 से लेकर 500 रुपये तक रोजाना कमा लेता है। चोटी बनाने के बाद इसे पूरे भारत में यहां से सप्लाई की जीती है। छोटे स्तर के विक्रेता गांव से ही चोटी ले जाकर मेला और बाजारों में भी बेचते हैं।
अफरोज अली ने बताया कि गांव में चोटियां पूरे साल बनती हैं, परंतु अगस्त से लेकर अक्टूबर तक ज्यादा मांग होती है। इसके बाद फिर साधारण बिक्री हो जाती है। अली का कहना है कि एक अच्छी चोटी बनाने में 255 से लेकर 260 रुपये तक की लागत आती है। इसके बाद इसे 300 रुपये में बेचा जाता है।
रोड के किनारे अपने ट्रक में चोटी लगवा रहे बरेली के ड्राइवर तालिब खान ने बताया कि हम लोग अपने वाहन को बुरी नजर से बचाने के लिए इसे लगाते हैं। यह खूबसूरत ही नहीं लगता है, बल्कि हमारे ट्रक का शृंगार भी पूरा हो जाता है।
जिलाधिकारी उमेश प्रताप सिंह ने बताया कि तिलहर ब्लाक के अंतर्गत फील नगर गांव में स्वरोजगार बड़े पैमाने पर हो रहा है। यहां पर महिलाओं के शृंगार के लिए बालों में लगाने वाली चोटी तथा ट्रकों में सजावट के लिए लगाई जाने वाली चोटियां बनाई जाती हैं। इस कार्य में गांव के युवक, महिलाएं, वृद्ध सभी लोग संलग्न हैं। इसी के चलते इस गांव के लोग अन्य प्रांतों में नौकरी करने नहीं जाते हैं।
जिला अधिकारी ने बताया कि इस गांव में कई दशकों से चोटी बनाने का काम हो रहा है।इसे एक जाति के लोग करते थे, परंतु अब सभी वर्गों के लोगों ने इसे अपना लिया है। महिलाएं भी अपने खाली समय का उपयोग चोटी बनाने में करती हैं और इससे उन्हें अच्छी आय भी हो जाती है। यह एक अच्छी परंपरा है हमारा जिला “एक जिला एक उत्पाद” के तहत “जरी जरदोजी” के तहत आता है। हम इस काम को आगे बढ़ाएंगे और प्रयास करेंगे कि फील नगर की तरह प्रत्येक गांव में लोग स्वरोजगार से जुड़ें।
शाहजहांपुर के पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार मीणा ने बताया कि फीलनगर गांव में हिस्ट्रीशीटर, दुराचारी, एक भी व्यक्ति नहीं है। वर्ष 2011 में एक हत्या हुई थी। इसके बाद से ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। उनका कहना है कि गांव में बलात्कार, चोरी, डकैती जैसा अपराध नहीं होता है, क्योंकि गांव के बाशिंदे ज्यादातर अपने कार्य में ही लगे रहते हैं।
मीणा ने बताया कि हालांकि इसके बाद भी पूरे गांव में पुलिस रुटीन गश्त करती है। अन्य गांव के लोगों को भी फील नगर गांव के बाशिंदों से सबक लेना चाहिए कि वह अपने कार्य को महत्व दें। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता। रोजगार से आय भी होती है तथा फालतू के लड़ाई झगड़ों से बचने के साथ-साथ व्यक्ति का रुझान अपराधों की तरफ नहीं होता है।