पतित पावनी गंगा व उसकी सहायक नदी जरगो के बीच बसा है बगही गांव। मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील का यह ढाब एरिया है। इस गांव के चरण को गंगा शायद इसीलिए हर साल बरसात में चूमती हैं कि यह उसके काबिल है। आजादी के आंदोलन से लेकर समाज सुधार कार्यों में अपना खून-पसीना बहाने वाले इस गांव को आज मॉडल गांव की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली है। आइए पढ़िए इस गांव की खासियत की पहली कड़ी...
एक महिला समेत 13 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे बगही गांव के
समाज की रूढ़िवादी परंपराओं के सबसे पहले त्याग कर बना मिसाल
इस गांव में मृत्यु भोज पर पूर्णतः पाबंदी, 1947 में ही हुई थी यहां आर्य समाज की स्थापना
इसके लिए कई बार सामाजिक बहिष्कार का भी दंश झेलना पड़ा बगही के लोगों को
यहां का श्मशान घाट भी किसी पिकनिट स्पॉट जैसा बना है, विकास व जागरूकता के कारण बना है मॉडल गांव
करीब 3500 की आबादी में साक्षरता 99 फीसद, विदेशों में भी रहती हैं यहा जन्मी प्रतिभाएं
राजेश पटेल, बगही (सच्ची बातें)। मिर्जापुर जनपद के चुनार तहसील में है मॉडल गांव बगही। आदर्श गांव की उपाधि इसे पहले ही मिल चुकी है। इस गांव को मिर्जापुर की सांसद केंद्र में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सांसद आदर्श गांव योजना के तहत गोद लिया है। इस गांव की संस्कृति, शिक्षा व सामाजिक जागरूकता का कोई सानी नहीं है। तभी तो लोग कहते हैं कि बगही, हर काम में अगही। मतलब बगही गांव के लोग हर कार्य में आगे रहते हैं।
बगही गांव में जरगो किनारे बना मुक्ति धाम (श्मशान घाट)
यह अकारण है भी नहीं। धार्मिक शुद्धीकरण हो, या आजादी का आंदोलन। छुआछूत का त्याग हो, या बालिका शिक्षा की चिंता। सभी में आगे। और तो और मृत्यु संस्कार में पोंगा पंडितों के कर्मकांड के त्याग की शुरुआत 1929 में ही इस गांव में सबसे पहले गंगेश्वर प्रसाद ने की थी। आज इस गांव में मृत्यु भोज पर पूरी तरह से प्रतिबंध है।
इस गांव पर गांधी जी का खासा प्रभाव रहा। इसी कारण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की दृष्टि से यह गांव जिले में अग्रणी है। यहां से रमाशंकर सिंह, गंगेश्वर प्रसाद सिंह, जय प्रसाद सिंह, लक्ष्मीनारायण सिंह, सीताराम सिंह, विक्रम सिंह गांधी, रघुनाथ सिंह, रामजतन सिंह, भवनाथ सिंह, उदित नारायण सिंह, विश्राम सिंह, दुक्खी राम सिंह, राम अधार सिंह शास्त्री, व एक महिला रामलली देवी का नाम स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में दर्ज है।
राम लली कुर्मी परिवार की प्रथम महिला थीं, जिन्होंने पर्दा प्रथा का विरोध किया। स्वतंत्रता के युद्ध में भाग लेकर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में 1949 में जेल गई थीं। इस गांव में आर्यसमाज की स्थापना भी 1947 में ही हो गई थी, लिहाजा समाज सुधार के कार्यों को और गति मिली।
…जारी
अगली कड़ी में पढ़िएगा एक मुसलमान को हिंदू बनाने में इस गांव को किस पीड़ा से गुजरना पड़ा…
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