February 8, 2025 |

किसानों के लिए सबसे बुरी खबर, इस साल भी सूखे के आसार

एक बूंद चैत जो गिरे, सहस्र बूंद सावन हरे...

Sachchi Baten

किसानों के लिए चेतावनी- घाघ की मानें तो आने वाला सावन कम बरसेगा

घाघ ने कहा है- एक बूंद चैत जो गिरे, सहस्र बूंद सावन हरे…

 

राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें Sachchi Baten)। एक बूंद चैत जो गिरे, सहस्र बूंद सावन हरे…,इसका मतलब यह है कि यदि चैत माह में बरसात की एक बूंद भी गिरी तो सावन की बारिश में हजार बूंदें कम हो जाएंगी। यह कहावत कृषि पंडित महाकवि घाघ-भड्डरी की है। इस साल चैत में जमकर बारिश हुई है। अंदाज लगा लीजिए कि आने वाले सावन में कितनी कम बरसात होगी। आज की फाइव जी Five G-सिक्स जी Six G जेनरेशन को तो ये घाघ के बारे में ही नहीं पता होगा। महाकवि घाघ वह शख्सियत थे, जो भारतीय कृषि विज्ञान में रचे-बसे हैं। उनकी कहावतें किसानों का मार्गदर्शन करती हैं। बारिश को लेकर भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी कभी फेल हो सकती है, लेकिन घाघ की, कभी नहीं।

 

इस साल भी चैत में जमकर बरसात हुई। कहीं-कहीं ओले भी गिरे। इससे फसलों की व्यापक क्षति हुई है। अभी भी मौसम इस समय कृषि कार्य के लिए विपरीत ही है। संकट यहीं पर खत्म होने वाला नहीं है। आने वाले मानसूनी सीजन में भी कम बारिश होने का आशंका घाघ की कहावतों के माध्यम से जताई जा रही है। दरअसल चैत में हुई बारिश का दुष्प्रभाव रबी की पकी फसल पर ही नहीं, खरीफ की बोवाई व रोपाई पर भी पड़ता है। सावन माह की ही बारिश खरीफ की जान होती है।

 

दरअसल चैत बारिश का गर्भ धारण काल होता है। इस महीने में जितनी ज्यादा गर्मी पड़ेगी, मानसून में बारिश उतनी ही ज्यादा होगी। बैसाख की भी बारिश मानसून के लिहाज से ठीक नहीं है। अच्छी बारिश के लिए अच्छी गर्मी का पड़ना जरूरी है।

 

घाघ की कहावतों को आज के समय में भी न मानने का कोई कारण नहीं है। उनका नाम उत्तर भारत के किसानों की जुबां पर रहता है। चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ की कहावतें उनका पथ प्रदर्शन करती हैं। ये कहावतें मौखिक रूप में भारत भर में प्रचलित हैं।

 

आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करती आयी हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के के गांवों में सर्वाधिक लोकप्रिय जनकवियों में कवि घाघ का नाम ही है। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ कहावतें प्राय: सत्‍य साबित होती हैं।

 

घाघ की एक कहावत है- पांच मंगल होवे फगुनी, पूस पांच शनि होय। घाघ कहें सुन भड्डरी खेत में बीज न डाले कोय। इस कहावत के अनुसार वर्ष 2002 में संयोग बना था। आपको याद होगा कि उस साल कितना भीषण सूखा पड़ा था। मुहनोचवा का भी आतंक उसी साल था। बीते मानसून के दौरान जो सूखा पड़ा था, उसके लिए भी घाघ की कहावतों ने संकेत दे दिया था।

 

घाघ की कुछ कहावतें

सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

अर्थ : यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

अर्थ : यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।

भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

अर्थ : यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।

अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

अर्थ : यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

अर्थ : यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।

अर्थ : यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।

पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।

अर्थ : यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।

पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।

अर्थ : यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।

अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

अर्थ : यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।

सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात। 
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।

यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।

असुनी नलिया अन्त विनासै। 
गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो। 
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।

आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत। 
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।

आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।

वर्षा

रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ आद्रा जाय। 
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।

यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।

उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। 
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।

उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।

खनिके काटै घनै मोरावै। 
तव बरदा के दाम सुलावै।।

ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है।

हस्त बरस चित्रा मंडराय। 
घर बैठे किसान सुख पाए।।

हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।

हथिया पोछि ढोलावै। 
घर बैठे गेहूं पावै।।

यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।

जब बरखा चित्रा में होय। 
सगरी खेती जावै खोय।। चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।

जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। 
चरखा चलै न बोलै तांती।

पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।

जो कहुं मग्घा बरसै जल। 
सब नाजों में होगा फल।। मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।

जब बरसेगा उत्तरा। 
नाज न खावै कुत्तरा।।

यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।

दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय। 
सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।।

यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा।

असाढ़ मास आठें अंधियारी। 
जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले बादर फोड़। 
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।

असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। 
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।

यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।


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