
: jio के करोड़ों यूजर्स को बड़ी राहत, जानिए क्या है नया?
Sat, Sep 14, 2024
जियो उपभोक्ताओं के लिए 365 दिन तक रिचार्ज का झंझट खत्म
-धमाकेदार रिचार्ज प्लान अनलिमिटेड ट्रू 5G डेटा भी ऑफर
मुंबई।
49 करोड़ यूजर ग्राहकों के साथ रिलायंस जियो (Reliance Jio) देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी है। जुलाई के महीने में जियो ने अपने पोर्टफोलियो में सबसे बड़ा अपग्रेड किया था। इस महीने कंपनी ने अपने अधिकांश प्लान्स के दाम भी बढ़ाए और कई सारे प्लान्स को लिस्ट से रिमूव भी किया। हालांकि जियो ने कुछ ऐसे प्लान्स भी पेश किए जिसने करोड़ों यूजर्स को बड़ी राहत दी है।अगर आप रिलायंस जियो का सिम इस्तेमाल करते हैं तो आपके लिए आज की खबर काम की होने वाली है। दरअसल जियो ने एक ऐसा प्रीपेड प्लान लिस्ट में शामिल किया है जिससे आप 365 दिन के लिए मोबाइल रिचार्ज के झंझट से फ्री हो जाते हैं। अगर आप भी हर महीने रिचार्ज की परेशानी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हम आपको जियो के इस धांसू प्लान की पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।jio की लिस्ट का धमाकेदार प्लान
रिलायंस जियो के जिस प्लान की हम बात कर रहे हैं वह पूरे एक साल यानी 365 दिन की वैलिडिटी के साथ आता है। आप पूरे साल बिना किसी टेंशन के किसी भी नेटवर्क में अनलिमिटेड कॉलिंग कर सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं जियो का प्लान आपको फ्री कॉलिंग के साथ साथ डेली 100 फ्री एसएमएस भी ऑफर करता है।डेटा खत्म होने की टेंशन भी खत्म
जियो का यह प्लान उन यूजर्स के लिए बेस्ट चॉइस है जिन्हें अपने डेली रूटीन लाइफ के लिए अधिक इंटरनेट डेटा चाहिए। कंपनी ग्राहकों को प्लान के साथ 365 दिन के लिए कुल 912.5GB डेटा ऑफर करती है। मतलब आप डेली बिना किसी टेंशन के डेली 2.5GB डेटा इस्तेमाल कर सकते हैं।रिलायंस जियो का यह धमाकेदार रिचार्ज प्लान अनलिमिटेड ट्रू 5G डेटा भी ऑफर करता है। मतलब अगर आपके क्षेत्र में जियो का 5G नेटवर्क है तो आप फ्री में अनलिमिटेड 5G इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं।49 करोड़ यूजर्स को इस प्लान के साथ में फैन कोड, जियो सिनेमा, जियो टीवी और जियो क्लाउड का फ्री सब्सक्रिप्शन भी दिया जाता है। आपको ध्यान रहे कि इस प्लान में जियो सिनेमा का जो फ्री सब्सक्रिप्शन मिलता है वह प्रीमियम सब्सक्रिप्शन नहीं है। इसमें आपको ऐप का मोबाइल सब्सक्रिपशन मिलता है।

: कहीं आपका पॉवरबैंक आग का गोला न बन जाए
Fri, Sep 13, 2024
पॉवर बैंक यूज करते समय बरतें ये सावधानियां
Power Bank:
स्मार्टफोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस Smartphone or other electronics device के लिए पावरबैंक power Bank एक इमरजेंसी चार्जर Emergency Charger के तौर पर काम करता है। आप कहीं ट्रैवल कर रहे हों या फिर किसी ऐसी जगह पर हों, जहां बिजली की समस्या हो तो अपने फोन या अन्य डिवाइस को चार्ज करने के लिए पावरबैंक की जरूरत होती है। पावरबैंक हो या फिर अन्य कोई भी चार्जेबल डिवाइस उनमें आग लगने या ब्लास्ट होने का भी खतरा रहता है। यही कारण है कि इन्हें यूज करते समय या फिर चार्ज में लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पावरबैंक बन सकता है 'आग का गोला'
पिछले दिनों अमेरिका के ओकलाहोमा शहर के एक घर में पावरबैंक की वजह से आग लगने की घटना सामने आई है। पावरबैंक में मौजूद लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी इसकी बड़ी वजह है। यह बैटरी आपके इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस के लिए जितनी उपयोगी होती हैं, उतनी ही यह खतरनाक भी होती है। ये बैटरी लंबे समय तक इलेक्ट्रिसिटी एनर्जी Electricity Energy को स्टोर कर सकती हैं, लेकिन इसमें मौजूद केमिकल में रिएक्शन होते ही ये आग पकड़ सकती हैं और ब्लास्ट भी हो जाती हैं।अमेरिकी की घटना में भी यही बात सामने आई है। दरअसल, घर में मौजूद कुत्ते ने पावरबैंक को चबा लिया था, जिसकी वजह से उसमें से चिंगारी निकली और घर में आग लग गया। इसके अलावा स्मार्टफोन में आग लगने की कई घटनाएं भारत में भी सामने आई हैं, जिनमें फोन चार्ज में लगे रहने या फिर अन्य किसी वजह से हुए शॉर्ट-सर्किट के कारण आग लगी हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
पावरबैंक को चार्ज करते समय यह ध्यान रखना चाहिए की उसकी चार्जिंग कैपेसिटी कितनी है? चार्जिंग कैपेसिटी के हिसाब से ही आप पावरबैंक के लिए चार्जिंग अडेप्टर का चुनाव करें। आम तौर पर पावरबैंक को चार्ज करने के लिए स्टैंडर्ड 10W से लेकर 22.5W तक के चार्जर की जरूरत होती है। हालांकि, कुछ पावरबैंक फास्ट चार्जिंग को भी सपोर्ट करते हैं। ऐसे में वे फास्ट चार्जर से चार्ज किए जा सकते हैं।पावरबैंक चार्ज में लगाने के कुछ देर बाद यह चेक करना चाहिए कि कहीं वह गरम तो नहीं हो रहा है। अगर, आपको ऐसा लगे तो तुरंत पावरबैंक को चार्जिंग से हटा देना चाहिए। ओवरहीटिंग की वजह से इसमें आग लग सकती है।पावरबैंक से फोन या अन्य डिवाइस को चार्ज करने या फिर पावरबैंक को चार्ज करने से पहले दिए गए पोर्ट्स को चेक करना चाहिए। आम तौर पर बरसात के मौसम में इनमें नमी रहती है, जिसकी वजह से शॉर्ट-सर्किट होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में आपको पावरबैंक के पोर्ट्स को किसी सूखे
कपड़े
से साफ करना चाहिए। इसके बाद ही आप इसे या अन्य किसी डिवाइस को चार्ज करें।पावरबैंक में मौजूद लिथियम आयन बैटरी अत्यंत ही ज्वलनशील और विस्फोटक होती है। ऐसे में इसे किसी ऐसी जगह पर न रखें जहां यह गर्म हो सके।यह भी ध्यान रखें की पावरबैंक ऊंचाई से न गिरे। गिरने से भी इनमें ब्लास्ट हो सकता है। इसके अलावा पावरबैंक अगर पुराना है तो इसकी बैटरी को रिप्लेस करा दें। लिथियम आयन बैटरी ज्यादा पुरानी होने के बाद खतरनाक साबित हो सकता है।

: सेमीकंडक्टर की दुनिया: इंदिरा गांधी के सपने पर किसने किया था प्रहार?
Thu, Sep 12, 2024
World of Semiconductors: तब हम कर पाते तो आज होते बादशाह
-मोहाली के सेमी कंडक्टर प्लांट में कैसे ली आग, खुफिया एजेन्सी भी पता नहीं कर पाई
नई दिल्ली New Delhi ।
इंदिरा गांधी Indira Gandhi जब प्रधानमंत्री थीं। देश-दुनिया में विज्ञान नई करामातें पेश कर रहा था। लेकिन भारत इसमें काफी पीछे था। महात्वाकांक्षी इंदिरा चाहती थीं कि भारत इस रेस में किसी तरह से पीछे न रहे। अमेरिका-रूस में औद्योगिक प्लांट के दौरे पर जा चुकीं इंदिरा छोटी सी, मगर काम में जादुई क्षमता रखने वाले सेमीकंडक्टर की अहमियत को 1976-77 में ही समझ गईं थीं। उन्होंने तय किया कि इस इंडस्ट्री में भारत को किसी से भी पीछे नहीं रहना है।अभी जो ताईवान, अमेरिका और चीन सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के सिरमौर बने हैं उस वक्त भी ये देश सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के लीडर थे। अमेरिका के पास जो भी एक्सपर्टीज थी वो किसी भी हालत में इसे दूसरे देशों को नहीं देना चाहता था। अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर US President Jimmy Carter और रोनाल्ड रीगन Ronald Reagan संवेदनशील तकनीक की एक्सपोर्ट रोकने के लिए कानून भी लेकर आए थे।बता दें कि अमेरिका जैसे देश द्वितीय विश्व युद्ध World War II की समाप्ति के तुंरत बाद ही इस इंडस्ट्री में आ चुके थे। 1956 में अमेरिका में सेमीकंडक्टर बनना शुरू हो चुका था। चीन ने अपना पहला सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल silicon single crystal 1958 में बनाया था। जापान भी इसी रेस में था और इस इंडस्ट्री की तकनीक किसी को नहीं देना चाहता था।
कोई नहीं बांटना चाहता था सेमीकंडक्टर का ज्ञान
अमेरिका की अगुवाई में ये देश तीसरी दुनिया या औद्योगिक रूप से कम विकसित देशों को टेक्नॉलजी ट्रांसफर रोकने के लिए एक कानून लेकर आए, इस कानून का नाम था Coordinating Committee for Multilateral Export Controls यानी कि COCOM.खैर भारत का विज्ञान जगत और इंदिरा तो ऐसी कितनी ही समस्याओं का सामना कर रहा था और इससे निपट भी रहा था। सरकार से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद भारत का डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स Department of Electronics इस दिशा में आगे बढ़ गया। इस मंत्रालय ने तय किया कि भारत को सेमीकंडक्टर की डिजाइनिंग और फेब्रिकेशन में अपनी क्षमता विकसित करनी चाहिए। तुरंत ही कैबिनेट ने सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी की स्थापना की इजाजत दे दी। उस समय इंदिरा के वैज्ञानिक सलाहकार और इलेक्ट्रानिक्स मंत्रालय के सचिव थे अशोक पार्थसारथी। पार्थसारथी काबिल टेक्नोक्रेट थे। इंदिरा ने उन्हीं की अगुवाई में इस सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को भारत में लगाने की जिम्मेदारी दी।
इंदिरा ने 40 साल पहले पहल की
अब समझिए भारत जिस इंडस्ट्री के पैर अपने यहां अब रोपने की कोशिश अब कर रहा है, इंदिरा ने लगभग 40 साल पहले ही उस उद्योग का सपना देखा था। भारत सरकार ने इस प्लांट को नाम दिया सेमीकंडक्टर कॉम्पलेक्स लिमिटेड (Semiconductor Complex Limited). यहां 100 फीसदी भारत सरकार के स्वामित्व में सिर्फ सेमीकंडक्टर या चिप बनाया जाना था।1976 में एक एक्सपर्ट पैनल ने इस इंडस्ट्री के लिए दो संभावित जगहों की पहचान की- मोहाली और मद्रास। डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रानिक्स के विशेषज्ञों को इस प्लांट के लिए सही जगह मद्रास लगी। लेकिन तभी यहां जैसा कि भारत में होता है राजनीति आ घुसी। तब ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे। ज्ञानी जैल सिंह Gyani Zail Singh चाहते थे कि इस प्लांट का गौरव पंजाब को मिले। वे समझते थे कि इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। वो इस प्लांट को मोहाली Mohali में ही लगाने पर अड़ गए।
राजनीति यहां भी हुई
इंदिरा ने इस स्थिति से निपटने के लिए अशोक पार्थसारथी को लगाया। पार्थसारथी ने ज्ञानी जैल सिंह को समझाया कि इससे स्थानीय स्तर पर शायद ही लोगों को नौकरियां मिल पाए क्योंकि इस इंडस्ट्री के लिए काफी दक्ष और तकनीकी कौशल रखने वाले कर्मियों की आवश्यकता होती है। लेकिन ज्ञानी जैल सिंह नहीं माने और आखिरकार 1978 में पंजाब के मोहाली में सेमीकंडक्टर कॉम्पलेक्स लिमिटेड बनाने का फैसला लिया गया। गौरतलब है कि तब मोहाली भारत का उभरता हुआ औद्योगिक शहर था।सरकार ने तब इस इंडस्ट्री के लिए 15 करोड़ की रकम आवंटित की गई। 1983 में इस प्लांट का उद्घाटन हुआ। इस प्रोजेक्ट के लिए आईआईटी IIT और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से गणित, भौतिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स में स्नातक छात्रों का चयन किया गया। 1984 में इस प्लांट से बेसिक प्रोडक्शन शुरू हो गया। सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड का लक्ष्य हाई टेक सर्किट और इलेक्ट्रॉनिक्स का डिजाइन और निर्माण करना था। सरकार का दृष्टिकोण यह था कि ये कंपनी एक देशी भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की नींव बन सकती है। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को चलने के लिए चार चीजें चाहिए होती है। ये चीजें हैं- वित्तीय पूंजी, मानव संसाधन, इंफ्रास्ट्रक्चर और चौथा मैन्युफैक्चरिंग टेक्नॉलजी। चूंकि इंदिरा ने इस सपने में पूरा दम-खम लगा दिया था इसलिए पहली तीन चीजें तो भारत को हासिल हो गई, लेकिन चौथी और अहम चीज जो भारत को नहीं मिल रही थी वो थी मैन्युफैक्चरिंग टेक्नॉलजी।भारत ने इस तकनीक के लिए कई देशों में हाजिरी दी, लेकिन ज्यादातर जगहों से निराशा मिली। पहला तो अमेरिकी दबाव, दूसरा कोई भी देश इस नए वंडर को भारत के साथ शेयर नहीं करना चाहता था, तीसरा चूंकि ये इंडस्ट्री दुनिया में अभी फल-फूल ही रही थी इसलिए इसके खिलाड़ी भी चुनिंदा थे। लिहाजा भारत के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं था।
5000 nanometers के साथ शुरू किया ICs प्रोडक्शन
बावजूद इसके भारत ने अपने टैलेंट के दम पर कोशिश जारी रखी और भारत ने पहले फेज में 5 माइक्रॉन लेवल यानी कि 5000 nanometers के आईसी (Integrated circuits) बनाने में सफलता पाई। यहां 5000 nanometers का मतलब ICs के आकार से है। दूसरे फेज में इस प्लांट ने और कामयाबी पाई और सर्किट के साइज को और भी छोटा कर दिया और 0.8 माइक्रॉन लेवल यानी कि 800 nanometers के सर्किट बनाने में कामयाब हो गया। ध्यान रखें कि सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में ये ट्रेंड है कि ट्रांजिस्टर के साइज को अधिक से अधिक छोटा किया जाए। एक्सपर्ट के मुताबिक इसका ये फायदा होता है कि चिप का परफॉर्मेंस बढ़ता है, एनर्जी की खपत कम होती है और कीमतें भी मुफीद रहती हैं। इसे Moore's law कहते हैं।बता दें कि आज के हिसाब से ये काफी बड़े इंटिग्रेटेड सर्किट हैं। इस इंडस्ट्री की दिग्गज कंपनी IBM ने हाल में जो चिप बनाई है वो मात्र 2 नैनोमीटर साइज का है। विशेषज्ञ बताते हैं कि 1985-86 के लिहाज से भारत की ये तरक्की कम नहीं थी और भारत तब इस इंडस्ट्री की कटिंग एज टेक्नॉलजी से मात्र एक ही पीढ़ी पीछे था। और उम्मीद जताई जा रही थी कि आने वाले दस सालों में भारत इस गैप को कवर कर लेगा।
एक रहस्यमयी आग और पूरा जल गया सेमीकंडक्टर प्लांट
सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में भारत की उम्मीदें अभी अंगड़ाई ले ही रही थीं। साल 1989 का आया और तारीख थी 7 फरवरी। इस दिन कुछ रहस्यमय ढंग से हुआ। मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर कॉम्पलेक्स लिमिटेड में न जानें कहां से एक ऐसी आग लगी, जिसमें सब कुछ खाक हो गया। इस आग की लपटें बड़ी भयानक तरीके से विनाशक थी। इस आग में सेमीकंडक्टर प्लांट पूरी तरह से जल गया। यहां प्रोडक्शन शुरू हुए 5 ही साल हुए थे और सबकुछ बेहद निराशाजनक तरीके से स्वाहा हो गया। सारी मशीनें जलकर राख हो गईं। एक आकलन के अनुसार उस समय इस आग से 75 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। आज के हिसाब से ये रकम अरबों में है।जब सेमीकंडक्टर यूनिट में आग लगने की घटना होती है तो यहां से जहरीली गैस और लपटें निकलती हैं। एक्सपर्ट के अनुसार ऐसी स्थिति में यहां से हाईड्रोजन क्लोराइड, हाइड्रोजन ब्रोमाइड और सल्फर डाई ऑक्साइड जैसे खतरनाक गैसों का उत्सर्जन होता है। भारत के सेमीकंडक्टर सपने के लिए ये बेहद निराश करने वाली खबर थी। इंदिरा तो तब नहीं रही थीं लेकिन भारत की वैज्ञानिक प्रगति को लेकर देखे गए उनके सपने पर ये घटना बड़ा प्रहार था।
साजिश का एंगल और IB की एंट्री
इस आग का कारण हमेशा संदेहों के घेरे में रहा। पंजाब के अखबार द ट्रिब्यून अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि आग की वजह पता लगाने के लिए भारत की खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की टीम प्लांट पहुंची लेकिन इसकी जांच में भी कुछ ठोस निकलकर सामने नहीं आ सका। एक्सपर्ट के अनुसार सेमीकंडक्टर प्लांट में आग लगने की आशंका होती है क्योंकि वहां हाई टेम्प्रेचर में प्रोसेसिंग का काम होता है। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में साइलेन, हाइड्रोजन और मिथेन जैसी गैस का इस्तेमाल होता है। यहां जरा सी चूक आग की घटना को आमंत्रण दे सकती है। हालांकि जांच एजेंसियों को इस आग के पीछे साजिश की कोई ठोस वजह नहीं मिली। लेकिन 1989 का वर्ष भारत की आतंरिक सुरक्षा के लिहाज से काफी संवेदनशील समय था। 1984 में इंदिरा की हत्या हो चुकी थी, और 1989 में पंजाब में आतंकवाद चरम पर था। यही वो साल था जब जम्मू-कश्मीर में टेररिज्म सिर उठा रहा था। यही वो समय था जब पश्चिमी देश भारत के साथ किसी तरह की तकनीक शेयर नहीं करना चाह रहे थे। 1984 में पहले परमाणु परीक्षण के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा था।
8 साल बाद शुरू हो पाया प्लांट...लेकिन
इस आग से नुकसान इतना व्यापक था कि इससे उबरने में 8 वर्ष लग गए और फिर 1997 में इस प्लांट को चालू किया जा सके। लेकिन तबतक सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री छलांग लगा चुकी थी। जिस तकनीक पर भारत काम कर रहा था वो पुरानी हो गई थी। इंडस्ट्री की तकनीक, वर्ल्ड मार्केट और टैलेंट का झुकाव पूरी तरह से बदल चुका था। घटना के बाद तत्कालीन विज्ञान और तकनीकी राज्यमंत्री के आर नारायणन ने कहा था कि प्लांट को फिर से शुरू किया जाएगा। लेकिन भारत की लालफीताशाही, नौकरशाही की बाधाएं और कई सारे कारणों की वजह से ऐसा न हो सका। वर्ष 2000 में सरकार इसके कुछ हिस्से को निजी क्षेत्रों को बेचना चाह रही थी लेकिन शर्तों पर बात नहीं बन पाई और मामला लटक गया। आखिरकार साल 2006 में इस कंपनी का पुनर्गठन किया गया और इसे अनुसंधान और विकास केंद्र बना दिया गया। इसे अंतरिक्ष मंत्रालय के तहत कर दिया गया और इस सेंटर को 'सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला' Semiconductor Laboratory बना दिया गया।