त्वरित टिप्पणी
राहुल गांधी के खिलाफ रची गई यह शर्मनाक साजिश भाजपा की गुजरात लॉबी के गले की फांस बन गई
राजीव कुमार ओझा
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सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरनेम मानहानि मामले में राहुल गांधी की याचिका पर आया फैसला न्याय के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा। इस मामले मे गुजरात की निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक मे चली कार्रवाई और हाईकोर्ट का रुख ऐसा था, जैसे वह पर्दे के पीछे किसी अदृश्य रिमोट कंट्रोल से संचालित हो।
मेरिट पर यदि पूर्णेश मोदी की याचिका पर सुनवाई की गई होती, तब वह निचली अदालत में ही खारिज हो जानी चाहिए थी। दुर्भाग्यवश एक ऐसी याचिका को गुजरात की निचली अदालत ने पोषणीय माना, जो तथ्यात्मक दृष्टि से पोषणीय नहीं थी और पूर्वाग्रह ग्रस्त मानसिकता से मानहानि के मामले में अधिकतम दो साल की सजा सुना दी।
गुजरात मॉडल न्यू इंडिया में देश की संवैधानिक संस्थाओं और न्यायपालिका के बदले चरित्र के आलोक में यह तय था कि राहुल गांधी को गुजरात की किसी अदालत से न्याय नहीं मिलने वाला है। गुजरात हाईकोर्ट का फैसला और इस मामले मे की गई अप्रासंगिक टिप्पणियों से यह ध्वनित हो रहा था, मानो पहले से लिखी गई पटकथा को गुजरात हाईकोर्ट ने मुहरबंंद की हो। मसलन गुजरात हाईकोर्ट की यह टिप्पणी कि राहुल गांधी के खिलाफ विनायक दामोदर सावरकर के नाती ने भी मानहानि का मुकदमा कर रखा है।
देशवासियों को यह विश्वास था कि एक सियासी साजिश के तहत लोकसभा में विपक्ष की सबसे मुखर,सबसे ताकतवर राहुल गांधी की आवाज से घबराई गुजरात लॉबी की साजिश का पोस्टमार्टम देश की सर्वोच्च अदालत जरूर करेगी और राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से न्याय जरूर मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मानहानि याचिका दायर करने वाले भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी के वकील की दलील की सुप्रीम कोर्ट ने धज्जियां उड़ा दीं। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अधिकतम दो साल की सजा क्यों सुनाई? उसका आधार क्या है? यह नहीं बताया है।
हाईकोर्ट का फैसला भी अजीबो गरीब है। सुप्रीम कोर्ट मे यह तथ्य उजागर हुआ कि इस मामले में जिस एक मात्र गवाह की गवाही ली गई, वह स्वतंत्र गवाह नहीं था। वह भारतीय जनता पार्टी का पदाधिकारी था। राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट मेंं यह खुलासा किया कि जिस भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि की याचिका दायर की है, वह मोदी है ही नहीं।वह दरअसल पूर्णेश मोध है।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने याचिका के अंतिम निपटारे तक गुजरात हाईकोर्ट द्वारा राहुल गांधी को दी गई अधिकतम दो साल की सजा पर रोक लगा दी है। इस फैसले के माध्यम से देशवासियों को यह भरोसा दिया है कि सियासी साजिश के टूल किट की तरह कानून का दरुपयोग होने, निचली अदालतों द्वारा पूर्वाग्रह से प्रेरित फैसले करने पर सुप्रीम कोर्ट धृतराष्ट्र की भूमिका मे नहीं रह सकता।
गौरतलब है कि सड़क से संसद तक अडाणी-मोदी के रिश्तों, नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरों के समय अडाणी को ठेके दिलवाने के लिए वहां की सरकारों पर दबाव डालने, सेल कंपनियों के माध्यम से विदेश से अडाणी की कंपनियों मे 20 हजार करोड़ के संदिग्ध निवेश के मुद्दे पर मोदी और मोदी सरकार पर हमलावर राहुल गांधी को संसद से बाहर करने की साजिश रच कर राहुल गांधी के खिलाफ गुजरात के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी से राहुल गांधी के खिलाफ कर्नाटक के कोलार की एक रैली मे दिए गए भाषण के आधार पर गुजरात के सूरत की निचली अदालत मे मानहानि का मुकदमा कराया गया। गुजरात की निचली अदालत, जिला न्यायाधीश और हाईकोर्ट के फैसले पर गौर करें, तब यह संदेह पैदा होता है कि मानो गुजरात का न्यायिक तंत्र राहुल गांधी के खिलाफ रची गई सियासी साजिश मे संलिप्त था।
राहुल गांधी के खिलाफ सूरत की निचली अदालत का फैसला आने के कुछ ही घंटों के भीतर लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला ने राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त करने का फैसला सुना कर यही सिद्ध किया था कि जो कुछ हुआ है, उसकी पटकथा पहले से लिखी जा चुकी थी।अब वही ओम बिरला अपने पद की गरिमा को कलंकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाली के लिए ” फैसले का अध्ययन करने, कोई समय सीमा तय न होने ” जैसी हास्यास्पद बातें कर रहे हैं।
राहुल गांधी के खिलाफ रची गई यह शर्मनाक साजिश भाजपा की गुजरात लॉबी के गले की फांस बन गई। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी का नया अवतार गुजरात लॉबी को कड़ी चुनौती दे रहा है। संसद की सदस्यता जाने के बाद राहुल गांधी ने सहज भाव से कहा था कि ” मेरी संसद सदस्यता छीन लो, मुझे जेल मे बंद कर दो। मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं सवाल पूछता रहूंगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक पहले आत्मविश्वास से भरे राहुल गांधी ने यह साफ कर दिया था कि ” मैं माफी नहीं मांगूंगा।”
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भाजपा की गुजरात लॉबी को बेनकाब किया है और राहुल गांधी के सामने उसे बौना साबित किया है। सुप्रीम कोर्ट की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उसने गुजरात की अदालती अंधेरगर्दी को दुरुस्त किया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करने के लिए देश की निचली अदालतों के लिए एक गाइड लाइन जारी करनी होगी, ताकि भविष्य मे गुजरात की अदालतों जैसी हिमाकत देश की कोई निचली अदालत, किसी प्रदेश की हाईकोर्ट न कर सके।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार व मिर्जापुर जनपद के ऐतिहासिक स्थल चुनार के निवासी हैं।