सिक्के का इतिहास
जानिए सोने-चांदी के सिक्के कब चलन में थे
अमरेंद्र आनंद
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भारत दुनिया के उन कुछ चुनिंदा देशों में से हैं, जिन्होंने सबसे पहले दुनिया को सिक्के दिखाए। छठी शताब्दी में महाजनपद काल में बनाने वाले सिक्कों को पुराण, कर्शपना या पना कहा जाता था।
इसमें गांधार, कुटाला, कुरु, पंचाल, शाक्या, सुरसेना और सुराष्ट्र शामिल हैं। इन सिक्कों का आकार अलग-अलग था और इन पर अलग-अलग चिह्न बने होते थे।
इसके बाद मौर्य साम्राज में चंद्रगुप्त मौर्य ने चांदी, सोने, तांबे और सीसे के सिक्के चलवाए। इस समय चांदी के सिक्के को रुप्यारूपा, सोने के सिक्के को स्वर्णरुपा, तांबे का सिक्के को ताश्वरुपा और सीसे के सिक्के को सीसारुपा कहा जाता था।
इसके बाद इंडो-ग्रीक कुषाण राजाओं ने सिक्कों पर तस्वीरें अंकित करने की शुरुआत की। यह परंपरा अगली आठ सदियों तक चलती रही। इससे प्रभावित होकर कई राजवंशों, और राज्यों ने अपने खुद के सिक्के बनाने शुरू कर दिए।
इन सिक्कों पर एक तरफ राजा की तस्वीर छपी होती थी और दूसरी तरफ उन देवताओं की, जिन्हें वो मानते थे। सबसे ज्यादा सोने के सिक्के जारी करने का श्रेय गुप्त साम्राज्य को दिया जाता है। इनके सिक्कों में संस्कृत में लिखा होता था।
12वीं शताब्दी में दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने सिक्कों से राजाओं की तस्वीरें हटा कर इस्लामी कैलिग्राफी में लिखना शुरू कर दिया। इस वक्त भी सोने, चांदी और तांबे के सिक्के लोगों के बीच थे। अब इन सिक्कों को ‘टंका’ कहा जाता था और कम मूल्य वाले सिक्कों को ‘जीतल’। इस वक्त मुद्रा का मापदंड तय होने लगा था। दिल्ली सल्तनत ने अलग-अलग मूल्य के सिक्कों को बाजार में उतारा।
(-लेखक प्रख्यात संग्राहक हैं। झारखंड के धनबाद में आनंद हेरिटेज गैलरी का संचालन करते हैं। इनके पास पौधों की भी ढेर सारी किस्में सुखी हैं।)
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