पर्यावरण संरक्षण
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कुछ अलग कहानी है विजयपुर पहाड़ी पर स्थापित विंध्य वाटिका की
-21 बीघा में में तीन हजार से ज्यादा फलदार व छायादार पौधे लहलहा रहे
-छानबे ब्लॉक के सभी 97 गांवों के प्रधानों ने लगाए हैं पौधे
-सभी गांवों की अलग-अलग नाम पट्टिका देती है पर्यावरण बचाने का संदेश
सुभाष ओझा, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। विंध्य धरा की निशानी है विंध्य वाटिका। छनवर की जवानी है विंध्य वाटिका। गंगा – जमुना की रवानी है विंध्य वाटिका। कुछ अलग कहानी है विंध्य वाटिका। जब कभी धरती मां के आंचल को हरीतिमा से आच्छादित करने का हौसला मन में हिलोरें ले रहा हो, तभी हकीकत के धरातल पर आकार लेती है विंध्य वाटिका।
छानबे क्षेत्र के विजयपुर गांव की पहाड़ी पर स्वामी स्वरूपानंद आश्रम के समीप 21 बीघा क्षेत्रफल में तीन हजार से भी अधिक फलदार एवं छायादार पौधे अपने आंगन में पुष्पित पल्लवित देख रही है विंध्य वाटिका। क्षेत्र के 97 गांवों की पट्टिका अलग-अलग प्लाट सभी गांवों के प्रधानों एवं उनकी टीम के हाथों लगाए गए पौधों की कतारें हैं विध्य वाटिका में।
जनप्रतिनिधियों एवं जनपद के अधिकारियों के हाथों लगाए गए फलदार पौधे। प्रत्येक पौधे के समीपस्थ उनके नामों की पट्टिका। प्रधान शहीदा बानो ने ही इस अनूठे बाग का नाम रखा विंध्य वाटिका। विंध्य धरा पर विंध्य वाटिका इससे बढ़िया भला और क्या नाम हो सकता है।
गैपुरा-लालगंज मार्ग से कमोबेश पांच सौ मीटर पूरब में हरी-भरी लहलहाती विंध्य वाटिका को निहार कर हर किसी का मन – मयूर आह्लादित हो जाता है। लंबे – चौड़े क्षेत्रफल में फैली इस वाटिका को देखकर प्रकृति व पर्यावरण प्रेमी अविभूत हो जाते हैं। बीते दिसंबर माह में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव अमरजीत सिन्हा के नेतृत्व में केंद्र सरकार की टीम ने विंध्य वाटिका का निरीक्षण किया था। मुख्य विकास अधिकारी श्रीलक्ष्मी बी एस सहित अन्य अधिकारियों ने समारोहपूर्वक आवभगत किया था।
केंद्रीय टीम ने विंध्य वाटिका को नेशनल लेवल पर लिस्टेड करने की बात कही थी। टीम लीडर ने यहां बेंच, पक्का चबूतरा, स्ट्रीट लाइट, पाथ-वे, इंटरलाकिंग खड़ंजा निर्माण, सबमरसिबल मोटर पंप लगवाने तथा विद्युत सुविधा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। मुख्य विकास अधिकारी ने एक पखवाड़े के अंदर स्टीमेट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। स्टीमेटट तो बन गया, किन्तु बजट व्यवस्था के अभाव में पांच माह बाद भी काम शुरू नहीं हो सका।
मई में ही पौधे मुरझाने लगे हैं। अभी जून बाकी है। और तो और, पौधों की सिंचाई के लिए एक अदद सबमरसिबल पंप तक नहीं लगवाया गया। पौधों की सुरक्षा के लिए दो मजदूरों को तैनात किया गया है। वे यहीं पर अपनी कुटिया बनाकर चौबीसो घंटे रखवाली करते हैं। उन्हें भी अपना हलक तर करने के लिए भटकना पड़ता है।
कहते हैं कि वादे हैं वादों का क्या। वक्त के साथ किए गए वायदों को शायद व्यवस्था के शरमाएदारों ने भुला दिया। ग्राम विकास अधिकारी सौम्या सिंह, प्रधान प्रतिनिधि गुलाम रसूल उर्फ लाला भाई, तकनीकी सहायक संतोष सिंह ने संकल्प जताया कि पौधों को सूखने नहीं दिया जाएगा। इसके लिए टैंकर के माध्यम से पानी लाकर पौधों की सिंचाई की जाएगी। प्रधान शहीदा बानो को मलाल इस बात का है कि वन विभाग की ओर से चिलबिल, खैर, करंजी जैसे जंगली पौधे ही उपलब्ध कराए जाते हैं।
उन्होंने अपनी ओर से आम, अमरूद, आवंला के पौधे लगवाए हैं। पौधों को मुरझाते देख वे मायूस हो जाती हैं। कहती हैं बड़े अरमानों से एक-एक पौधों का कारवां बनाया है। विंध्य वाटिका रूपी कारवां से एक भी पौधे का साथ छूटा तो दिल को जो ठेस लगेगी, उसे शब्दों में कह पाना मुश्किल होगा। काश विंध्य वाटिका हरी – भरी रहे। वह लहलहाती रहे। उसमें लगे फलों और फूलों की खुशबू से छनवर का आगंन महकता रहे।