September 16, 2024 |

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22 साल की उम्र में मैट्रिक परीक्षा पास की थी सरदार पटेल ने

Sachchi Baten

लौह पुरुष के स्मृति दिवस पर विशेष

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सरदार पटेल ने डिस्ट्रिक्ट प्लीडर की परीक्षा में किया था टॉप

 

राजेश पटेल


आज 15 दिसंबर को सरदार पटेल की पुण्यतिथि है। आज शुक्रवार है। संयोग देखिए कि 1950 में भी 15 दिसंबर को शुक्रवार ही था। देश के लिए उनके योगदान को सभी जानते हैं। वह पढ़ाई में बहुत तेज थे, इसके बावजूद हाईस्कूल की परीक्षा उन्होंने 22 साल की उम्र में पास की। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। इस हिसाब से अधिकतम 1890 में ही मैट्रिक हो जाना चाहिए था, लेकिन हुआ 1897 में।

इसके कारण के पीछे न जाकर उनके जीवन के कुछ अनुछुए पहलुओं की चर्चा समीचीन होगी। उनके पास कॉलेज जाने का अनुभव न होने के बावजूद कानून की डिग्री 36 महीने के बजाए 30 माह में ही ले ली।

दरअसल सरदार पटेल की स्कूली शिक्षा देर से हुई। पढ़ाई में वे काफी तेज थे। शिक्षक भी उनकी बौद्धिक क्षमताओं से बेहद प्रभावित रहते थे। लेकिन कुछ कारणों से 10वीं की परीक्षा उन्होंने काफी देर से दी। जब वे 22 साल के हो गए, तब जाकर उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास की।

डिस्ट्रिक्ट प्लीडर की परीक्षा में रहे अव्वल
सरदार पटेल की घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। आमदनी का एकमात्र जरिया खेती ही थी। इससे परिवार में आर्थिक संकट बना रहता था। इसलिए नियमित कॉलेज जा पाना उनके लिए संभव नहीं हो सका। वे घर पर ही डिस्ट्रिक्ट प्लीडर की परीक्षा की तैयारी करने लगे। इस परीक्षा में वे अव्वल रहे।

36 साल की उम्र में वकालत की पढ़ाई के लिए गए इंग्लैंड
देर से शिक्षा हासिल करने के चलते 36 साल की उम्र में वे वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए। वकालत की डिग्री हासिल करने में तीन साल का समय लगता था, लेकिन कॉलेज में पढ़ाई करने का अनुभव नहीं होने के बावजूद उन्होंने 30 महीने में ही वकालत की डिग्री ले ली।

पहले बड़े भाई को भेजा इंग्लैंड
सरदार पटेल साल 1905 में ही इंग्लैंड चले जाते, लेकिन पोस्टमैन ने गलती से पासपोर्ट और टिकट उनके बड़े भाई विठ्ठल भाई को दे दिया, क्योंकि अंग्रेजी में संक्षेप में उनके नाम एक जैसे ही लिखे जाते थे। इसके बाद बड़े होने के कारण विट्ठल भाई ने इग्लैंड जाने का दावा किया। सरदार पटेल ने उनकी बात मान ली और अपनी जगह उन्हें भेजा। दोनों भाइयों का शुरुआती नाम वीजे पटेल था।

भारतीय सिविल सेवा के संरक्षक

सरदार पटेल ही अंग्रेजी राज की स्टील फ्रेम कही जाने वाली इंडियन सिविल सर्विस की निरंतरता को कायम रखने वाले निर्णायक व्यक्ति थे। उल्लेखनीय है कि आधुनिक भारत ने अंग्रेजों की औपनिवेशिक विरासत के रूप में नगर उन्मुख विकास, केंद्रीयकृत योजना और राज के स्टील फ्रेम यानी सिविल सेवा के स्वरूप को बनाए रखा।

अनुभव के आधार पर पटेल ने दो स्तरों पर काम करने का निर्णय लिया। पहला, इंडियन सिविल सर्विस (आइसीएस) के भारतीय सदस्यों का विश्वास जीतना और दूसरा, आइसीएस के उत्तराधिकारी के रूप में नई सेवा के निर्माण का आदेश देना- भारतीय प्रशासनिक सेवा। इन दोनों के दो भिन्न उपयोग थे, आइसीएस का काम था- उत्तराधिकारियों (कांग्रेस) की ओर सत्ता का हस्तांतरण लागू करना और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) का काम था- स्वतंत्रता के बाद, प्रशासनिक एकता के जरिये इतने विशाल देश को जोड़ कर रखना।

अपने काम से बेहद लगाव था सरदार को

सरदार पटेल ने जिंदगी में सबकुछ मेहनत से हासिल किया था, इसलिए अपने काम के प्रति उनको बेहद प्यार था। एक ऐसा वाकया है जब वह कोर्ट में बहस कर रहे थे और तभी उन्हें उनकी पत्नी की मौत की खबर मिली। बात 1909 की है, जब उनकी पत्नी मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थी। इलाज के दौरान उनकी पत्नी झावेर बा का निधन हो गया। एक व्यक्ति ने कोर्ट में बहस कर रहे पटेल को पर्ची पर लिखकर यह दुखद खबर दी। उन्होंने उसे पढ़ा और पर्ची जेब में रखते हुए बहस जारी रखी। वह केस जीत गए और फिर सबको बताया कि उनकी पत्नी का निधन हो गया है।

सबसे दुःख की बात यह है कि 1950 में निधन होने के बाद 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया। ऐसे महापुरुष के प्रति इतनी बेरुखी क्यों। यह बात समझ में नहीं आती। जबकि साढ़े पांच सौ रियासतों को मिलाकर भारत संघ का निर्माण सिर्फ उनके ही बूते की बात थी। उन्होंने किया भी।

 


Sachchi Baten

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