राजेश पटेल, रांची (सच्ची बातें) । वर्ष 1981 में रिलीज फिल्म ‘लावारिस‘ का एक गाना याद आ रहा है। जिसका कोई नहीं, उसका तो खुदा है यारो, मैं नहीं कहता किताबों में लिखा है यारो, जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारो, हां खुदा है यारो…।
रांची की मुक्ति नामक संस्था ऐसे लोगों के लिए खुदा या ईश्वर से कम नहीं है, जिनकी मौत के बाद शव लेने कोई अपना नहीं आता। झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में पड़े लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान के साथ यह संस्था वर्षों से कराती आ रही है।
इस संस्था द्वारा अब तक 1567 अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कराया जा चुका है। 11 जून रविवार को भी इसके द्वारा 33 अज्ञात शवों को सद्गति प्रदान की गई।
और तो और, कोरोना काल में इस संस्था से जुड़े लोगों ने यह पुनीत कार्य जारी रखा। कोरोना वायरस जैसी महामारी को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लगाए गए संपूर्ण लॉकडाउन में भी मुक्ति संस्था ने बहुत बड़ी मानवता दिखाई थी। लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष प्रवीण लोहिया ने सभी सदस्यों को घर में रहने के लिए और घर से ही दिवंगत लोगों कीआत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा था।
दरअसल रिम्स को उस दौरान शीत शव गृह की मरम्मत का कार्य करवाना था। इसलिए संस्था से अनुरोध किया गया था कि शवों का दाह संस्कार अगर सम्भव हो तो किया जाय। इसके बाद मुक्ति संस्था ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए शवों का अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार कार्यक्रम में मुक्ति संस्था के अध्यक्ष के अलावा रिम्स के चार कर्मी शामिल थे, जिन्होंने शवों की पैकिंग कर जुमार नदी तक पहुंचाया। नगर निगम की ओर से लकड़ी और मिट्टी तेल उपलब्ध कराया गया।
अध्यक्ष प्रवीण लोहिया कोरोना काल में जिस समय शवों को मुखाग्नि दे रहे थे, उस समय ऑनलाइन अरदास सम्पन्न कराया गया। उसके बाद अध्यक्ष ने मुखाग्नि भेंट की। अध्यक्ष प्रवीण लोहिया ने मुक्ति संस्था के सभी सदस्यों को घर पर ही रहने का अनुरोध किया था और अकेले ही कार्यक्रम करने गए। इसके बाद रिम्स के कर्मचारियों की मदद से कार्यक्रम सम्पन्न किया गया।
संस्था के अध्यक्ष युवा व्यवसायी प्रवीण लोहिया ने बताया कि वे नगर में विद्युत शवदाह गृह की स्थापना के लिए राज्यपाल से बीते अप्रैल में ही मुलाकात की थी। उन्होंने आश्वस्त किया है कि इसकी व्यवस्था कराई जाएगी।
लोहिया बताते हैं कि लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान के साथ कराया जाता है। रांची-रामगढ़ मार्ग पर जुमार नदी के किनारे सामूहित चिता लगाई जाती है। अंतिम अरदास पढ़ी जाती है। इसके बाद चिता को मुखाग्नि दी जाती है। उन्होंने बताया कि इस कार्य को वह और संस्था से जुड़े लोग पुण्य का काम मानते हैं। इसके लिए किसी से मदद नहीं ली जाती। हां नगर निगम लकड़ियों की व्यवस्था कर देता है।
इसमें संस्था से जुड़े रवि अग्रवाल, आदित्य राजगढ़िया, रतन अग्रवाल, आरके गांधी, दिनेश गावा, संदीप पपनेजा, आशीष भाटिया, आशुतोष अग्रवाल, सौरभ बथवाल, बलवीर जैन, मोती सिंह, नरेश प्रसाद, नवीन बजाज, विकाश सिंघानिया, नीरज खेतान, सुमित अग्रवाल, विकाश विजयवर्गीय, सीताराम कौशिक, राहुल जायसवाल, संजय अग्रवाल, राजा गोयनका हरीश नागपाल आदि का सहयोग रहता है।
सामूहिक दाह संस्कार के बाद पड़ने वाले मंगलवार को रांची मेन रोड स्थित हनुमान मंदिर पर भंडारा का आयोजन किया जाता है।
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