तीसरी कड़ी : ‘बगही हर काम में अगही’, मोहम्मद से महादेव तथा जुम्मन से जमुना बनने की सच्ची कहानी पढ़िए
पतित पावनी गंगा व उसकी सहायक नदी जरगो के बीच बसा है बगही गांव। मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील का यह ढाब एरिया है। इस गांव के चरण को गंगा शायद इसीलिए हर साल बरसात में चूमती हैं कि यह उसके काबिल है। आजादी के आंदोलन से लेकर समाज सुधार कार्यों में अपना खून-पसीना बहाने वाले इस गांव को आज मॉडल गांव की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली है। इस गांव को मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल ने आदर्श सांसद ग्राम योजना के तहत गोद भी लिया है। पढ़िए इस गांव की खासियत की तीसरी कड़ी…
समाज व देश पर संकट के समय डटे रहे बगही के लोग
राजेश पटेल, बगही मिर्जापुर, (सच्ची बातें)। आदर्श गांव के बाद मॉडल गांव बने बगही द्वारा समाज सुधार की दिशा में किए गए या किए जा रहे कार्यों को लिपिबद्ध किया जाए तो शायद एक किताब बन जाएगी।
वर्ष 1948 में गांव का एक मुस्लिम परिवार हिंदू बनना चाहता था। इस परिपार में तीन पुरुष व तीन ही महिलाएं थीं। आर्य समाज बगही द्वारा गांव में ही इनके शुद्धीकरण का कार्य संपन्न कराया गया। इसका नेतृत्व बनारस के जेपी चौधरी ने किया था। उनको शुद्ध कर एक नाम मोहम्मद से महादेव तथा दूसरे का जुम्मन से जमुना रखा गया। इसी तरह से अन्य सदस्यों के भी नाम बदले गए थे।
हरियाणा को पंजाबी राज्य बनाने के विरोध में जेल यात्रा की बगही के लोगों ने
1956 में भारत में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जा रहा था। उस समय पंजाब और हरियाणा को पंजाबी राज्य बनाया गया। चूंकि हरियाणा हिंदी भाषी राज्य है, सो इसका विरोध शुरू हो गया। सरकार पर इस विरोध का कोई असर नहीं हुआ तो आर्य प्रादेशिक सभा ने हिंदी रक्षा आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन में बगही से बैजनाथ सिंह शुक्ल, राजननारायण सिंह, विक्रमा सिंह गांधी तथा राममूरत सिंह शामिल हुए। इनको अंबाला जेल में बंद कर दिया गया। जब हरियाणा अलग से हिंदी राज्य बना, तब ये लोग जेल से मुक्त हो सके।
धर्म, समाज व देश पर संकट के समय डटे रहे बगही के लोग
जब-जब देश, धर्म और समाज पर संकट आया, उसे बगही के लोगों ने अनुभव ही नहीं किया। अपितु आगे बढ़कर लड़ाई लड़ी। सहयोग किया। दुर्भिक्ष हो, बाढ़, भूकंप या देश के अस्तित्व पर संकट आया हो, बगही कभी पीछे नहीं रहा। 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था तो उस समय संभवतः देश में पहली रैली निकालकर जनता को जागृत किया और सरकार की मदद के लिए चंदा वसूला। बाद में भी सरकार द्वारा मांगे जाने पर लोगों ने खुले हाथ से दान दिया।
कहानी एक बंगली युवक व मुस्लिम युवती की शादी की
वर्ष 1965 में एक बंगाली युवक मुस्लिम युवती के साथ शादी करना चाहता था। अपने विवाह के लिए दोनों कई स्थानों पर भटके, पर कहीं सफलता नहीं मिली। दोनों भटकते-भटकते चुनार बस स्टैंड पर आ गए। वहां अपनी शादी को लेकर कुछ लोगों से बात की तो उनको बगही के जयकुमार सिंह से संपर्क करने की सलाह दी गई। जयकुमार सिंह उसे जोड़े को तांगे पर बैठाकर बगही ले आए। आर्य समाज बगही के मंंत्री से सारी बात बताई। तुरंत शादी का इंतजाम किया। आर्यसमाज मंदिर में शादी हुई। इसमें गांव के कई पुरुष व महिलाएं शामिल हुईं। कई लोगों ने कन्यादान किया। चंदा वसूलकर उनको गृहस्थी के सामान दिए गए। शादी के प्रमाण पत्र के साथ उनकी विदाई की गई।
1959 में आर्य समाज बगही का वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा था। उसी समय गांव की बेटियों की शिक्षा पर चर्चा हुई। उसी उत्सव में आर्य कन्या विद्यालय का प्रस्ताव आया। उस अपील से विद्यालय के लिए जमीन से लेकर धन तक की व्यवस्था हो गई और आर्य कन्या विद्यालय शुरू हो गया। यह विद्यालय निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
जारी…
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