September 16, 2024 |

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एक लाख बुजुर्ग एक मंच पर, आखिर इनका उद्देश्य क्या है ? पढ़िए…

Sachchi Baten

अनुभव की खदान सोशल मीडिया पर…

फेसबुक पर वरिष्ठ नागरिक मंच के माध्यम से साझा कर रहे हैं अपने अनुभव

इस उम्र में कोई खुश रहने के कारण की तलाश में है तो कोई इसे बता रहा है

राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। आपकी उम्र 60 पार हो गई है। वरिष्ठ नागरिक senior citizens की श्रेणी में आ चुके हैं। इस दौरान तरह-तरह की बीमारियों के साथ ही कुछ चिंताएं भी घेर लेती हैं। इन सबके बीच भी आप खुश रहना चाहते हैं तो वरिष्ठ नागरिक मंच senior citizens forum नामक फेसबुक पेज सहायक हो सकता है। इस समय इसके सदस्यों की संख्या एक लाख पहुंचने वाली है। यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके क्रिएटर अशोक कुमार पांडेय हैं।

फोरम ने इसका उद्देश्य कुछ इस तरह से साझा किया है- वृद्धावस्था में ज़िंदगी एक नए मोड़ पर आ पहुँचती है। तनख़्वाह आनी बंद हो जाती है। दवाई दारू के खर्चे बढ़ जाते हैं । शरीर के अंग धीरे धीरे शिथिल होने लगते हैं। ख़र्चों के लिए, या तो पेंशन या आपकी जमा पूँजी काम आती है। बच्चे दूर जा कर अपना अलग आशियाना बना लेते हैं। अकेलापन घर कर लेता है। इस बदली हुई ज़िंदगी के कई आयाम हैं, जिन्हें हमें समझना ज़रूरी है । आइए हम एक दूसरे से जानकरियाँ साझा करें। हमारी परेशनियाँ भी साझा कर सकते हैं और मिल कर एक दूसरे के अनुभव से उन का हल ज़रूर मिलेगा।

इस ग्रुप के सदस्य देश के अलग-अलग प्रदेशों के हैं। लगता है कि पूरा भारत ही एक मंच पर आ गया है। इस मंच को अनुभवों की खदान कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा। हंसी-मजाक, देश के अलग-अलग स्थानों की फोटो सहित जानकारी, स्वास्थ्य सलाह सहित तमाम जानकारियां साझा की जा रही हैं, जिनकी इस उम्र में बेहद आवश्यकता है। स्वस्थ रहने के लिए दिनचर्या भी साझा की जा रही है। ग्रुप में महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है।

हर क्षेत्र के लोग हैं। किसान से लेकर आईएएस, चौथा खंभा यानि पत्रकार, साहित्यकार, कवि, घरेलू महिलाएं, वकील आदि-आदि। यह फेसबुक पेज लोगों को इतना भा रहा है कि 60 वर्ष के एक-दो साल कम रहने पर ही कुछ लोग ज्वाइन कर ले रहे हैं।

इस ग्रुप में मजाक का एक उदाहरण- वरिष्ठ सदस्यों से एक सलाह चाहता हूं। आप सब को काफी काफी तजूर्बा होगा। विषय यह है। की सीनियर सिटीजन बनने के बाद भी पति-पत्नी दोनों में नोंक झोंक होती है। कृपया मार्गदर्शन करें।

जवाब भी एक से बढ़कर एक हैं-बहुत खुश नसीब हो। वरना कुछ को तो यह भी नसीब नहीं है। एक अन्य सज्जन लिकते हैं-वो तो जीवन का एक बहुत ही जरूरी हिस्सा है जी। हंसी तो तब आ गई, जब एक सदस्य ने जवाब दिया-सावधानी में बचाव है, कृपा सतर्क रहें 😍 और चुपचाप सुनते रहें🫡। 

जानकारी के लिहाज से एक सदस्य ने पोस्ट किया है कि बिना अपने शहर का नाम बताए कोई खासियत बताएं, जिससे उसे जाना जा सके।

जवाब आए हैं- देश का सबसे स्वच्छ शहर। गुलाबी नगरी। इत्र की खुशबू। गीता प्रेस। संगम। जय श्री महाकालेश्वर। पहले आप। बाबा भोलेनाथ की नगरी। गोलघर। कोचिंग सिटी। बुद्ध नगरी। बागेश्वर धाम। नजाकत। रसगुल्ला। ताजमहल। हवा महल। सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र। ताला नगरी। कोयला नगरी। महेंद्र सिंह धौनी। चाकू।  गोल्डेन टेंपल। जलियांवाला बाग। अमरूद।  झीलों की नगरी। देश का दिल। हर-हर महादेव। आदि-आदि। राजेश्वर कुमार शर्मा जी ने फोटो पोस्ट करते हुए लिखा है-हम दो भाई ,एक चौरासी का और एक पचहत्तर का कुल हुए १५९ का। ठीक है?

May be an image of 2 people and people smiling

जवाब पढ़कर दिमाग की बत्ती जल जाएगी-उम्र की बात नहीं है दोनों भाई साथ बैठे हैं, यही बहुत है । अपनत्व का प्रतीक है सर। भाई जैसा मित्र नहीं होता। एक सदस्य ने तो तगड़ा वाला मजाक कर दिया- यदि आपके गिलास सामने होते तो बढ़िया होता। बधाई हो बधाई हो जोड़ी बनी रहे।

एक सदस्य ने लिखा– विगत ३५ वर्षों से वाराणसी मे निवास कर रहा हूं। आयु ६२ वर्ष है। दो वर्ष पूर्व प्रशासनिक अधिकारी पद से सेवानिवृत्त ‌हुआ हूं।दो पुत्र एवं एक पुत्री है,सभी का विवाह हो चुका है। सभी बच्चे अपने परिवार के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। चार वर्ष पूर्व पत्नी का निधन हो गया। समय बिताने के लिए प्राइवेट जॉब करता हूं। अच्छे दोस्तो की तलाश है, जिनके साथ अपनी बाते साझा की जा सकें। जवाब में अन्य के साथ यह भी कमेंट आया-मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र वह स्वयं है, अर्थात् आत्म चिंतन

एक सदस्य ने लिखा- मेरी शासकीय सेवा एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में शुरू हुई थी। जिसमें मुझे ग्रामीण क्षेत्रों मे पेयजल आपूर्ति करने की व्यवस्था सौंपी गई थी। जल सेवा कार्य बहुत ही पुनीत कार्य समझते हुए जीवन भर करते रहे। शादी हो गई। पत्नी जी बहुत ही अच्छी मिली, मेरे कार्य में हमेशा सहयोग किया। कभी कभी ऐसा होता था कि हम उनको समय नहीं दे पाते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी हमसे इस बात की शिकायत नहीं की। और कभी किसी भी चीज की मांग नहीं करी। मेरे तीन बच्चे हैं। दो पुत्री और एक पुत्र। तीनों अपनी अपनी दुनिया में मस्त हैं। दो प्यारी प्यारी सी पोतियां हैं। जिनके साथ कब समय गुजर जाता है पता ही नहीं चलता। ईश्वर भक्ति और परिवार के साथ बेहद खुश हैं।
एक महिला सदस्य कविताएं लिखतीं हैं। उन्होंने अपनी एक कविता पोस्ट की है-
मैं और मेरे बच्चे
मैं हूं दादी और ये शैतान तीनों है मेरे पोता पोती,
मिलकर हम सब करते हैं बड़ी हंसी ठिठोली,
दादी कम मैं दोस्त ज्यादा हूं उनकी,
रिटायरमेंट के बाद बन गई हूं एटीएम उनकी।।
कभी लंच और कभी डिनर करती हूं उनके साथ,
तीनों ही हर पल मंडराते है मेरे आस पास,
कभी McD, कभी domino, कभी polka ले जाते,
खुद भी खाते पिज्जा बर्गर और मुझे भी खिलाते,
आइसक्रीम और पेस्ट्री के बिना इनकी पार्टी रहती अधूरी,
बड़ी खुशी होती है मुझको करके इनकी मांगें पूरी,
ये तीनों मुझको एटीएम कह कर बुलाते,
अपनी अपनी मांगे मुझसे पूरी करवाते,
मुझे भी इन पर खर्च करके आनंद है आता,
जीवन की इस संध्या बेला में इनका साथ बहुत है भाता।।
बेटे और बहु के साथ भी करती हूं बड़े मजे,
कभी हंसी ठिठोली और कभी हो जाते हैं झगड़े,
फिर भी हम सब इक दूजे के बिन रह नही पाते,
बड़े प्यारे बच्चे मेरे मैं हूं उनकी मां,
मुझ पर उनकी और उन पर मेरी सदा बनी रहे छांव।।

एक अन्य सदस्य ने-

प्रश्न उठता रहता है कि पुराने जमाने में बुजुर्गों को जो मान-सम्मान समाज में मिलता था, आज कल के बुजुर्गों को वैसा मान सम्मान क्यों नहीं मिल पा रहा है?
इसका एक मात्र जवाब है कि समय के साथ -साथ परिस्थितियां बदलती रहती हैं। पुराने जमाने में युवा पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच कोई विशेष फासला नहीं होता था। यह फासला हाल के दिनों में बढ़ा है। उस जमाने मे जानने का एक मात्र साधन अनुभव था। जीविकोपार्जन का साधन परम्परागत था ”ज्ञान भी परम्परागत चलता था। बढ़यी के बेटे को बढ़यीगीरी सीखने के लिए पिता पर निर्भर रहना पड़ता था।
पिता कला शिल्प कौशल के बारे में अधिक जानकार होता था। इसलिये बेटा कभी नहीं कहता था कि आप लोग पुरानी सभ्यता के लोग हो। इस लिये सभी पुरानी सभ्यताए बुजुर्गों का सम्मान करती आई है। अब उल्टा हो गया है। रोज रोज नये नये वैज्ञानिक खोज होते जा रहे है। नयी नयी तकनीकी का ज्ञान बढ़ते जा रहा है। पुरानी पीढी़ का ज्ञान नयी पीढ़ी को पंसद आता नहीं है और ‘आना भी नहीं चाहिये’। जो लोग जबरदस्ती अपना ज्ञान या राय अपने बच्चों पर थोपना चाहते है या थोपते रहते हैं। निश्चित रूप से मानसिक कष्ट पाते है’। दुखी रहते है ‘अपने को उपेक्षा का शिकार मानते हैंं।
सलाह यह है अपनी राय अपने पास रखेंं। स्वयं के साथ जीने की आदत डालें। स्वयं के साथ जीना ही स्वास्थ्य है। स्वयं के साथ जो जीता है वहीं स्वस्थ रहता है।
एक सज्जन ने तो मजाक-मजाक में इस ग्रुप से सावधान रहने की भी अपील कर दी है- सावधान, कृपया इस प्लेटफॉर्म पर अपने जोखिम पर आएं। सीनियर सिटिजन फोरम एक आनंददायक नशा है, एक बार लग जाने पर छूटेगा नहीं….
ग्रुप से जुड़ने के लिए https://www.facebook.com/groups/837885220695057/ लिंक ओपेन कर सकते हैं। 

 

 

 


Sachchi Baten

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1 Comment
  1. Dr Veerpal Arjak says

    Very nice article. I am joining the group

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