कृषि और किसान
शीत गृह जमुई में आलू भंडारण की अनुमति सरकार द्वारा न दिए जाने से किसान परेशान
आलू की खेती का रकबा घटा, कैसे होगी किसानों की आय दोगुनी
राजेश पटेल, चुनार (सच्ची बातें)। चुनार के पास जमुई में स्थित कोल्ड स्टोरेज का नाम पद्मावती शीत गृह हो या प्रकाश कोल्ड स्टोरेज। इसके मालिक सत्यप्रकाश सिंह हों या दिनेश प्रकाश सिंह। इससे किसानोंं को क्या फर्क पड़ता है। किसानों के लिए सिर्फ और सिर्फ एक शीत गृह, अंग्रेजी में कोल्ड स्टोरेज है। फर्क पड़ता है इसमें आलू के भंंडारण की अनुमति सरकार द्वारा न दिए जाने से।
इसके मालिकाना हक को लेकर दो भाइयोंं में विवाद तो वर्षों से चल रहा है। किसी किसान को कोई फर्क नहीं पड़ा। फर्क पड़ना शुरू हुआ वर्ष 2020 से। पद्मावती शीत गृह के नाम से लाइसेंस फीस जमा करने के बावजूद भंंडारण के लिए सरकार द्वारा लाइसेंस का नवीनीकरण ही नहींं किया गया। किसान अपने आलू को लेकर इधर-उधर भटकने लगे।
चुनार तहसील में इसके अलावा नरायनपुर और कछवा में एक-एक और शीतगृह हैं, लेकिन इन दोनों की क्षमता पद्मावती शीत गृह से काफी कम है। पद्मावती शीत गृह में आलू भंडारण की क्षमता एक लाख बोरी है। एक बोरी में 50 किलो आलू आता है। नरायनपुर में 40 हजार तथा कछवा में 30 हजार बोरी आलू भंडारण की क्षमता है।
लाइसेंंस को लेकर हाईकोर्ट ने क्या कहा है…
20 दिसंंबर 2018 को हाईकोर्ट ने लाइसेंस को लेकर जो कहा है, उसका सार यही है कि बिना लाइसेंंस के कोल्ड स्टोरेज चलाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। राज्य के संबंधित अधिकारी तो किसानों को हित को देखते हुए कोई अस्थाई व्यवस्था कर सकता है। बता दें कि 2018 मेंं मिर्जापुर के जिलाधिकारी अनुराग पटेल ने लाइसेंस नवीनीकरण लंबित रहने के कारण शीतगृह में ताला बंद करने का आदेश दिया था।। हालांकि किसानों के विरोध के कारण तालाबंदी नहीं हो सकी थी। जिलाधिकारी के इसी आदेश के खिलाफ दिनेश प्रकाश सिंह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दिनेश प्रकाश सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जिलाधिकारी के आदेश पर स्टे लगा दिया तथा किसानों के हित के मद्देनजर भंडारण के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की सलाह दी थी। देखिए फोटो…
डीएम ने मांगी थी शासकीय अधिवक्ता से विधिक सलाह
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद जिलाधिकारी ने जिला शासकीय अधिवक्ता (दिवानी) सोमेश्वर प्रसाद सिंह से विधिक सलाह मांगी थी। शासकीय अधिवक्ता ने कहा है कि प्रकाश कोल्ड स्टोरेज के मालिकाना हक को लेकर जिला न्यायाधीश के न्यायालय में वाद लंंबित है। ऐसी स्थिति में धारा 145 आइपीसी के तहत कोई भी कार्य किया जाना विधिसम्मत नहीं है। सिंंह ने कहा है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 20-12-2018 के अनुसार लाइसेंस प्राप्त किए बिना किसी भी कोल्ड स्टोरेज का संचालन नहीं हो सकता। किंंतु, पत्रावली में उलब्ध कागजात के अनुसार पद्मावती शीत गृह के नाम से लाइसेंस नवीनीकरण के लिए शुल्क कई वर्षों से जमा है। प्रकाश कोल्ड स्टोरेज के लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए कोई शुल्क जमा नहीं है। ऐसी स्थिति मेंं लाइसेंस के नवीनीकरण के अभाव में कोल्ड स्टोरेज का संचालन उच्च न्यायालय के आदेश के प्रकाश में विधि संगत नहीं है। उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में वैकल्पिक लाइसेंस प्रदान कर क्षेत्रीय किसानों के उत्पाद के दृष्टिगत निर्णय लिया जाना उचित होगा। देखिए फोटो…
किसान हित में निर्णय लेने को डीएम को मिली स्वतंत्रता
हाईकोर्ट ने किसानों के हित को सर्वोपरि रखा है। जिला शासकीय अधिवक्ता ने भी। इसके बावजूद पद्मावती शीत गृह (लाइसेंस फीस जमा) को लाइसेंंस निर्गत नहीं किया जा रहा है। इसीलिए इस शीत गृह में आलू का भंडारण नहीं हो पा रहा है। डीएम चाहें तो अपने विवेक से किसान हित को देखते हुए कोई निर्णय ले सकते हैं। दरअसल कोल्ड स्टोरेज एक्ट 1976 के अनुसार शीत गृह आलू भंडारण के लिए लाइसेंस आवश्यक है।
हजारों किसान करते थे आलू की खेती
जब इस कोल्ड स्टोरेज में आलू भंडारण होता था तो आसपास के इलाके मेंं हजारों किसान इसकी खेती करते थे। गंगापार कृयात मेंं भी आलू की खेती व्यापक पैमाने पर होती थी। अब भंडारण की समस्या होने के कारण आलू की खेती का रकबा घट गया है। एक अनुमान के मुताबिक पहले करीब दो लाख कुंतल आलू का उत्पादन होता था। अब 50 हजार कुंंतल भी नहीं। क्योंकि भंडारण की ही व्यवस्था नहीं है। ढाब,, कृयात से लेकर भगवत तक के वह सभी किसान परेशान हैं, जो आलू की खेती के शौकीन हैं। जो खेती करते भी हैंं, उनको भंडारण के लिए नरायनपुर या कछवा ले जाना पड़ता है। इससे उनपर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इन दोनों की क्षमता कम होने से पूरा भंडारण भी नहींं हो पाता, लिहाजा औने-पौनेे दाम में बेचना पड़ता है।
एक और संयोग
जनपद न्यायाधीश के यहां से मालिकाना हक के मुकदमे को कॉमर्शियल कोर्ट बनारस में ट्रांसफर कर दिया गया। इसे संयोग ही कहा जाएगी कि इस कोर्ट में 2021 में सुनवाई शुरू हुई तो जज का ट्रांसफर हो गया। इसी तरह से 2022 में जब मुकदमा अंतिम चरण में पहुंंचने ही वाला था, फिर जज का ट्रांसफर हो गया। यही स्थिति 2023 में भी रही। जैसे ही मुकदमा फैसला के स्तर पर पहुंचा, फिर जज का ट्रांसफर हो गया।