पोस्टकार्ड दिवस पर विशेषः पोस्टकार्ड का सफरनामा देखना है तो जाना होगा स्टील सिटी बोकारो व कोल नगरी धनबाद
-धनबाद के अमरेंद्र आनंद व बोकारो केे सतीश कुमार ने संजो कर रखे हैं हर तरह के पोस्टकार्ड
-एक हजार कीमत वाले पोस्टकार्ड भी हैं उनके संग्रह में
-भारत में पहले पोस्टकार्ड की कीमत चौथाई आना यानि एक पैसा थी
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। पहली अक्टूबर को पोस्टकार्ड दिवस है। दो अक्टूबर को गांधी जयंती। भारतीय ही नहींं, पूरे विश्व के जनमानस में रचने-बसने वाले इन दोनों का जन्म एक ही वर्ष में हुआ है। सिर्फ एक दिन आगे-पीछे। साल 1869 में। अंतर सिर्फ इतना है कि पोस्टकार्ड का जन्म आस्ट्रिया में हुआ और मोहनदास करमचंद गांधी का भारत में।
गौरतलब है कि डाकघरों में चार तरह के पोस्टकार्ड मिलते रहे हैं – मेघदूत पोस्टकार्ड, सामान्य पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड और कम्पटीशन पोस्टकार्ड। ये क्रमश : 25 पैसे, 50 पैसे, 6 रुपये और 10 रुपये में उपलब्ध हैं। कम्पटीशन पोस्टकार्ड फिलहाल बंद हो गया है। इन चारों पोस्टकार्ड की लंबाई 14 सेंटीमीटर और चौड़ाई 9 सेंटीमीटर होती है।
पोस्टकार्ड का इतिहास
पोस्टकार्ड का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रियाई प्रतिनिधि कोल्बेंस्टीनर के दिमाग में आया था, जिन्होंने इसके बारे में वीनर न्योस्टॉ में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एमैनुएल हर्मेन को बताया। एक दौर में पोस्टकार्ड खत भेजने का प्रमुख जरिया था। शादी-विवाह, शुभकामनाओं से लेकर मौत की खबरों तक को पोस्टकार्डों ने सहेजा है। तमाम राजनेताओं से लेकर साहित्यकार व आंदोलनकारियों ने भी पोस्टकार्ड का बखूबी प्रयोग किया है। पोस्टकार्ड एक अक्तूबर, 2023 को वैश्विक स्तर पर 154 साल का हो गया।
पोस्टकार्ड के संग्रहकर्ता
पोस्टकार्ड के जन्म से लेकर आज तक के सफर को कुछ संग्राहक संभाल कर रखे हुए हैं। इनमें झारखंड की कोयला नगरी धनबाद के आनंद हेरिटेज गैलरी के संस्थापक अमरेंद्र आनंद तथा स्टील सिटी बोकारो के सतीश कुमार प्रमुख हैं। ये लोग संग्राहकों से जुड़ी कई संंस्थाओं के सदस्य हैं तथा विभिन्न खिताबों से नवाजे गए हैं। इनके यहां संरक्षित पोस्टकार्ड सिर्फ कागज के टुकड़े नहीं हैंं, इतिहास का भी बोध कराते हैं।
सतीश कुमार के पास राजस्थान का एक पोस्टकार्ड है, जिसकी कीमत आज की तारीख में एक हजार रुपये हो गई है। इस पर किसी कलाकार ने घोड़ा की बहुत खूबसूरत पेंटिंग की है।
सतीश कुमार ने बताया कि पुराने पोस्टकार्ड पर पेंटिंग करना राजस्थान के लोगों का शौक है। प्रदर्शनियों में उनकी बोली लगती है। सतीश के संग्रह में बांग्लादेश के भी पोस्टकार्ड हैं।
अमरेंद्र आनंद के यहां पोस्टकार्ड की पूरी शृंखला है। शुरू से लेकर अब की। 1879 का पहला पोस्टकार्ड भी है। आजादी के बाद का पहला पोस्टकार्ड त्रिमूर्ति थीम का था। श्री आनंद ने बताया कि मेघदूत सिरीज के पोस्टकार्ड पर एक ओर किसी का प्रचार होता है। यह आज भी 25 पैसे में ही डाकघर से मिलता है।
श्री आनंद ने बताया कि 1897 में अकाल पड़ा था। उस समय दरभंगा स्टेट की ओर से जारी पोस्टकार्ड के माध्यम से ही अधिकारियों को राहत कार्य की प्रतिदिन की रिपोर्ट भेजने की व्यवस्था की गई थी। इसके एक तरफ कॉलम बने थे। जिसमें महिला मजदूर, पुरुष मजदूर, बच्चों आदि की हाजिरी व मजदूरी भी भरनी होती थी। यह अपने आप में पोस्टकार्ड ही था, सो सीधे पोस्टबॉक्स में डाल दिया जाता था, और रिपोर्ट शासक तक पहुंच जाती थी। यहां राजाओं ने भी अपने-अपने राज्य के अलग-अलग पोस्टकार्ड जारी किए थे। जिनको उनकी गैलरी में देखा जा सकता है।