रियल पालिटिक्स : विज्ञापन मामले में सिर्फ आप क्यों निशाने पर?
Sachchi Baten Tue, May 6, 2025

नया इंडियाः आम आदमी पार्टी एक बार फिर विज्ञापन के विवाद में फंसी है। असल में 2015 में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल की सरकार विज्ञापन को लेकर विवादों में रही है। विज्ञापन पर शीला दीक्षित की पूर्ववर्ती सरकार के मुकाबले कई गुना ज्यादा खर्च करने को लेकर केजरीवाल सरकार पर अनेक सवाल उठे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सवाल उठाया और एक मामले में तो कोर्ट ने यहां तक कहा कि सरकार के पास विज्ञापन पर खर्च करने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए हैं लेकिन बुनियादी ढांचे की परियोजना पर खर्च के मामले में सरकार पैसे का रोना रो रही है। असल में अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने दिल्ली की सरकार और आम आदमी पार्टी को एकाकार कर दिया। उन्होंने सरकार और सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किया। तभी दिल्ली सरकार की योजनाओं का प्रचार देश भर में किया गया। दिल्ली सरकार ने कई योजनाओं के प्रचार पर उस योजना राशि से ज्यादा खर्च किया।
अब सरकार से हटने के बाद पार्टी एक बार फिर विज्ञापन के विवाद में फंसी है। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन की शिकायत पर उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने केजरीवाल सरकार में विज्ञापन पर हुए खर्च की जांच के आदेश दिए हैं और साथ ही आम आदमी पार्टी से विज्ञापन पर हुए खर्च की वसूली के आदेश दिए हैं। शिकायत में कहा गया है कि केजरीवाल सरकार ने दूसरे राज्यों में विज्ञापन छपवाए और अपनी पार्टी का प्रचार किया, जो सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का उल्लंघन है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक आदेश दिया था कि सरकारी खर्च से ऐसा विज्ञापन नहीं छपना चाहिए, जो किसी पार्टी या किसी नेता का गुणगान करे। इसके बाद अप्रैल 2016 में एक कमेटी बनाई गई थी, जिसका काम इस पर निगरानी करना था कि सरकारी पैसे का गलत विज्ञापन देने में इस्तेमाल न किया जाए। अजय माकन की शिकायत है कि इस कमेटी ने जांच में पाया कि केजरीवाल सरकार ने 97 करोड़ रुपए से ज्यादा ऐसे विज्ञापनों पर खर्च किया, जिनसे पार्टी का प्रचार किया गया।
इस शिकायत के आधार पर उप राज्यपाल ने कहा है कि उस समय के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने गलत तरीके से इन पैसों का भुगतान किया। इसकी जांच और पैसे की वसूली के आदेश दिए गए हैं। अब सवाल है कि माकन या उप राज्यपाल की क्या शिकायत है? दूसरे राज्य में विज्ञापन छपवाना गलत है या उसमें किसी नेता का प्रचार करना गलत है? आखिर सारे विज्ञापनों में तो नेताओं की तस्वीरें होती ही हैं? क्या प्रधानमंत्री की तस्वीर वाले विज्ञापन से नरेंद्र मोदी का गुणगान नहीं होता है? क्या दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी तस्वीरें लगा कर विज्ञापन नहीं छपवा रहे हैं? यह तो इस नीति की स्थायी खामी है। इसी तरह सभी राज्य सरकारें दूसरे राज्यों में विज्ञापन छपवाती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के विज्ञापनों से दिल्ली की सड़कें भरी रहती हैं और अखबर भरे रहते हैं। यहां तक कि अमेरिका की ‘टाइम’ पत्रिका में भी उत्तर प्रदेश सरकार का विज्ञापन छपता है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें होती हैं। यह भी तो व्यक्ति और पार्टी का गुणगान ही है! किसी सरकार के दिए विज्ञापन का पैसा बाद में अगर पार्टी से वसूला जाने लगा तो पंडोरा बॉक्स खुलेगा। फिर तो सभी पार्टियों को पैसे चुकाने होंगे।
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