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राजनीति : वक्फ़ बिल- मुसलमान-नीतीश कुमार ( 2)

Sachchi Baten Sun, Apr 6, 2025

-डॉ. बीएन सिंह

अब प्रश्न यह है कि नीतीश कुमार ने वक्फ़ बिल का समर्थन क्यूं किया ?

नीतीश कुमार ने वक्फ़ (संशोधन) बिल का समर्थन क्यों किया, इसका कोई एक स्पष्ट जवाब नहीं है, क्योंकि यह निर्णय उनकी राजनीतिक रणनीति, गठबंधन की मजबूरियों और बिहार के सियासी समीकरणों का मिश्रण हो सकता है।

वक्फ बिल पर नीतीश कुमार ने सरकार का समर्थन किया है! इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है! नीतीश कुमार ने कभी भी मेनस्ट्रीम लिबरल पोलिटिकल एसथेटिक्स में खुद को फिट करने का कोई प्रयास नहीं किया है।

बकौल क्रांति संभव जी के अनुसार बिहार में नीतीश कुमार की सफलता का राज यही रहा कि वे अपने को मेनस्ट्रीम लिबरल पोलिटिकल एसथेटिक्स से दूर रखा।

समाजिक न्याय, उदारता और सेकुलरिज्म की मेनस्ट्रीम पोलटिकल एसथेटिक्स की बुनावट का लाभ सिर्फ आगे की पंक्ति में खड़े वर्ग को मिला है!

समाजिक न्याय की राजनीति में दलित पिछड़े वर्ग में आगे खड़ी जातियाँ अपने पीछे छूटे वर्ग का ख्याल नहीं रख पाईं! नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति में इसी छूटे पिछड़े वर्ग का ख्याल रखा ।

इसके फलस्वरूप आरक्षण में उपवर्गीकरण और प्रतिनिधित्व में टोकनिज्म का दौर आ गया!

सोशल जस्टिस की मेनस्ट्रीम पोलिटकल एसथेटिक्स में अपने प्रतिनिधित्व को गायब होते देखकर इस राजनीति में पीछे छूटे अतिपिछड़े वर्गों ने हीं टोकनिज्म का समर्थन किया! जिसका लाभ अंततः भाजपा को खूब मिला है।

बिहार में सेकुलरिज्म की पॉलिटिक्स तो सोशल जस्टिस की राजनीति से भी कमजोर रही है! सेकुलरिज्म की पॉलिटिक्स ने पिछड़ी जाति के अल्पसंख्यक और महिलाओं के प्रतिनिधित्व को कभी जगह हीं नहीं दिया! सांप्रदायिक दंगा और लिंचिंग खत्म हो जाय तो यह राजनीति भरभराकर ढह जाएगी।

बिहार में नीतीश कुमार दंगा-लिंचिंग नहीं होने देते, तो अल्पसंख्यक डरते हुए इकट्ठे होकर एक जगह वोट नहीं करते हैं! इसलिए बिहार में सेकुलरिज्म की राजनीति करने वाले दल चुनाव परिणाम के दिन हांफते रहते हैं! क्योंकि वहां समाज में नफरत नहीं है, इसलिए धार्मिक अल्पसंख्यक को मोहब्बत की दुकान के बजाय न्याय के साथ प्रगति का रास्ता दिखाई देता है। नीतीश कुमार ने सेकुलरिज्म की राजनीति को पीछे रखकर न्याय और प्रगति का रास्ता चुना। इससे कोई इंकार नही कर सकता कि नीतीश कुमार के राज में बिहार ने प्रगति की।

बिहार की बात करें तो सेकुलरिज्म और समाजिक न्याय के सबसे बड़े लीडर लालू यादव ने सेकुलरिज्म की राजनीति के कोटे से सिर्फ अगड़ी जाति के अशराफ मुसलमानों को नेता बनाया! उनमें भी अधिकतर ज़मींदार, ठेकेदार और व्यापारी तक सीमित रहे! कमजोर पसमांदा मुसलमानों को लालू यादव से निराशा हुई।

दूसरी तरफ लालू यादव ने EWS आरक्षण का विरोध करके इन अगड़ी जाति के उच्च शिक्षित मुस्लिम युवाओं को नाराज भी किया। इधर तीन चुनावों से यह देखा जाता है कि अगड़ी जाति के अशराफ युवा चुनाव से 2 महीने पहले एक्टिव होकर लालूजी के खिलाफ माहौल बनाते हैं, सीधे विरोध नहीं करके हाथ घूमाकर कान पकड़ते हैं। कभी ओवैसी के लिए तो कभी मोदी द्वारा दिल्ली पुलिस के माध्यम से मुसलमानों के दमन के लिए बिहार के नेता पर नाराजगी जताते हैं। अंततः EWS का लाभ देने के लिए वे भाजपा और NDA को फायदा पहुंचा देते हैं।

वहीं नीतीश कुमार ने लालूजी की मेनस्ट्रीम सेकुलरिज्म की पोलिटिकल एसथेटिक्स को निष्प्रभावी करने के लिए सबसे पहले एक झटके में सभी पिछड़ी जाति के पसमान्दा मुसलमानों को अतिपिछड़ा वर्ग में रख दिया, जिसके कारण बहुसंख्यक पसमांदा मुस्लिम वर्ग को लाखों नौकरियां और हजारों राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल गया। सबसे ज्यादा लाभ मुस्लिम महिलाओं को मिला। फिर EWS आरक्षण आते ही उसको तुरंत लागू करके अशराफ मुसलमानों की नजर में खलनायक बनने से भी बच गए। इसी तरह के कई कारण हैं जो कि नीतीश कुमार के भाजपा के साथ रहने के बावजूद आम मुसलमानों का समर्थन कभी बंद नहीं हुआ। तीन महीने पहले हुए उपचुनावों में भी 35% मुसलमानों ने नीतीश कुमार को वोट किया है।

वक्फ बिल पर नीतीश कुमार के समर्थन के बहुत सारे कारण नहीं हैं। यह भी नहीं है कि यह वक्फ बिल लाकर भाजपा गरीब और मुस्लिम महिलाओं का विकास करना चाहती है। भाजपा तो टोकनिज्म की पॉलिटिक्स कर रही है। और टोकनिज्म की पॉलिटिक्स का समर्थन बिहार की पिछड़ी जाति के सभी मुस्लिम संगठनों ने किया है। ऑल इंडिया पसमन्दा मुस्लिम समाज भी इसका स्वागत कर रहा है! वक्फ बोर्ड में पसमन्दा कोटा देखकर पसमांदा भी इस अत्यंत अमीर बोर्ड के मेंबर बनने की आकांक्षा रखते हैं! महिला कोटा देखकर बौद्धिक मुस्लिम महिला समूह तो 2024 से ही इसे लागू करने की मांग कर रहा है।

फिर कोई भी सेक्युलर नेता जो इनके वोट पर ध्यान लगाकर 20 साल से काम कर रहा हो, वह इनकी आकांक्षाओं के विरोध में क्यों वोट करेगा? मेरा अनुभव व समझ यह है कि नीतीश कुमार अगर INDIA अलायन्स में होते तब भी इस बिल का विरोध नही करते, क्योंकि यही पसमंदा और महिला उनका कोर वोटर वर्ग है। इस बिल का समर्थन करने से नीतीश कुमार के मुस्लिम वोटर कंस्टीटूएंसी में कोई कमी नहीं आएगी।

इस सच को आपको मानना पड़ेगा कि जातीय वर्ग और धर्म की राजनीति के नाम पर कुछ जातियों के उच्च वर्ग के कुछ लोगों की दुकान चलती है। आप नहीं मानेंगे तो नहीं माने, लेकिन आपके जातीय वर्ग और धर्म में पीछे छूटे लोग यही मानते हैं। ऊपर से उनकी आबादी भी बहुसंख्यक है। मेनस्ट्रीम लिबरल्स के बीच यह सब कहना बहुत बदमानी भरा हो सकता है। क्योंकि यह कहकर आप उनके द्वारा बनाए उदारवादी राजनीतिक सौंदर्यशास्त्र में फिट नहीं बैठ रहे होंगे। लेकिन लोकतंत्र के इस दौर में यह राजनीतिक सौदर्यशास्त्र एक ढक्कन के सिवाय कुछ भी नहीं है, जो अपने नीचे खौलते हुए पानी के भगौने को ढकने का काम करता है! "

हालांकि, कुछ प्रमुख कारणों पर विचार किया जा सकता है जो इस फैसले के पीछे हो सकते हैं:

एनडीए गठबंधन के प्रति वफादारी:

नीतीश कुमार की पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू), वर्तमान में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) मुख्य शक्ति है।

2024 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, और नीतीश कुमार की 12 सांसदों वाली जेडीयू केंद्र में सरकार बनाने के लिए अहम सहयोगी बन गई। ऐसे में, वक्फ़ बिल जैसे महत्वपूर्ण विधेयक पर बीजेपी का साथ देना गठबंधन धर्म का हिस्सा हो सकता है।

नीतीश को शायद लगा कि गठबंधन से अलग होने या विरोध करने से उनकी सौदेबाजी की ताकत कम हो सकती है.

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी:

2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना है, और वक्फ़ बिल का समर्थन न करने से गठबंधन में दरार पड़ सकती थी, जो उनकी सत्ता की संभावनाओं को कमजोर कर सकता था।

साथ ही, उन्हें यह भी लग सकता है कि मुस्लिम वोट बैंक पहले ही उनके खिलाफ लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ओर झुका हुआ है, इसलिए इस समुदाय को नाराज करने का जोखिम उठाना उनके लिए बहुत बड़ा नुकसान नहीं होगा।

सुझावों को शामिल करने का आश्वासन:

जेडीयू ने वक्फ़ बिल का समर्थन करने से पहले कुछ शर्तें रखी थीं, जैसे कि बिल को पुरानी वक्फ़ संपत्तियों पर लागू न करना और पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर देना। बीजेपी ने इन सुझावों को मान लिया, जिसे नीतीश कुमार ने अपने समर्थन का आधार बनाया। जेडीयू नेता संजय झा ने कहा कि नीतीश कुमार ने मुस्लिम समुदाय के हितों को ध्यान में रखते हुए ये शर्तें रखी थीं, और उनका मानना है कि संशोधित बिल से कोई नुकसान नहीं होगा।

सेक्युलर छवि से रणनीतिक दूरी:

नीतीश कुमार लंबे समय से सेक्युलर राजनीति के पैरोकार रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी छवि गठबंधन की जरूरतों के हिसाब से बदलती दिखी है। वक्फ़ बिल का समर्थन करके वे बीजेपी के कोर वोटरों और हिंदुत्व समर्थकों को यह संदेश देना चाहते होंगे कि वे राष्ट्रीय हित में बड़े फैसले ले सकते हैं, जिससे गठबंधन के भीतर उनकी स्थिति मजबूत हो।

राजनीतिक दबाव और कुर्सी की चाह:

आलोचकों का मानना है कि नीतीश कुमार का मुख्य लक्ष्य सत्ता में बने रहना है। प्रशांत किशोर जैसे स्वयंभू राजनीतिक विश्लेषक कम नीतीश विरोधी ने कहा है कि नीतीश ने बीजेपी के दबाव में यह फैसला लिया, क्योंकि केंद्र में उनकी पार्टी की भूमिका सरकार की स्थिरता के लिए जरूरी है। इसे उनकी "कुर्सी बचाओ" नीति का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि, इस फैसले से नीतीश की पार्टी में भी असंतोष देखा गया। जेडीयू के कुछ मुस्लिम नेताओं, जैसे मोहम्मद कासिम और शाहनवाज मलिक, ने बिल के समर्थन के खिलाफ इस्तीफा दे दिया, जिससे उनकी सेक्युलर छवि को नुकसान पहुंचा है। मुस्लिम समुदाय और विपक्षी दलों ने इसे "धोखा" करार दिया है। फिर भी, नीतीश शायद यह मानते हैं कि गठबंधन की मजबूरी और सत्ता की राजनीति उनके इस कदम को जायज ठहराती है। अंततः, यह कहना मुश्किल है कि उनका निर्णय पूरी तरह से सैद्धांतिक था या अवसरवादी, लेकिन यह स्पष्ट है कि नीतीश ने अपने राजनीतिक हितों और गठबंधन की मजबूरियों को प्राथमिकता दी।

(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में प्रोफेसर रहे हैं।)

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