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सामाजिक एकजुटता : हेमंत पटेल की हत्या के विरोध में कुर्मी समाज की जुटान आज काशी में

राजेश पटेल, वाराणसी (सच्ची बातें)। धीर-गंभीर बैठे हनुमान को जब उनका बल याद कराया जाता है तो लंका दहन की प्रक्रिया होती है। तालाब में स्थित पानी में कंकड़ फेंका जाता है तो लहरें उत्पन्न होती हैं। शांत सागर में जब हलचल होती है तो ज्वार-भांटा आता है। इसी तरह से शांतिप्रिय किसान जाति कुर्मी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है तो सत्ता परिवर्तन की संभावना बढ़ जाती है।

गत 22 अप्रैल को बनारस के ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल के परिसर में उसके प्रबंधक ठाकुर आरबी सिंह के बेटे ठाकुर राज विजेंद्र सिंह उर्फ रवि सिंह द्वारा उसी स्कूल से इसी साल 12वीं की परीक्षा दे चुके हेमंत पटेल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। चूंकि आरोपित सीएम योगी आदित्यनाथ का सजातीय है और भाजपा का नेता है तो उसको बचाने की साजिशें भी हो रही हैं। इसके विरोध में सामाजिक संगठन सरदार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आरएस पटेल आह्वान पर 25 अप्रैल को शिवपुर में रायल ग्रीन गार्डेन नवलपुर परमानंदपुर में कुर्मी समाज की जुटान होनी है। इस कार्यक्रम को गैरराजनीतिक रखा गया है। इसे सिर्फ कुर्मी अस्मिता से जोड़ा गया है।

कुर्मी समुदाय के चिंतनशील व्यक्तित्व से निवेदन किया गया है कि जिस तरह से एक अधिवक्ता एड. कैलाश पटेल के पुत्र हेमंत पटेल की हत्या की गई यह अंदर से झकझोर देने वाली क्रूर घटना है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिला प्रशासन उक्त मामले की लीपा पोती कर रहा है। अगर आज हम आप चुप रहे तो कल हममें से किसी और का नंबर आयेगा।

कुर्मी समाज वैसे तो शांतिप्रिय तरीके से रहने में विश्वास करता है। खेती उसकी आजीविका का मुख्य माध्यम है। आजकल व्यवसाय की ओर भी झुकाव हुआ है। किसी को अनावश्यक परेशान करने में यकीन नहीं करता। किसी से थोड़ा-बहुत कहासुनी हो भी गई तो आपस में बैठकर सुलझा लिया जाता है। शायद यही कारण है कि अदालतों में कुर्मी समाज के मामले अन्य की अपेक्षा कम हैं।

लेकिन, जब उसके स्वाभिमान, जातीय अस्मिता पर चोट पहुंचाने की कोशिश की जाती है तो वह खूंखार भी हो जाता है। उदाहरण के तौर पर ददुआ पटेल का नाम लिया जा सकता है। राजनैतिक दृष्टि से इस समाज का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को ही मिल रहा है। इसके बावजूद कुर्मी के संवैधानिक हक और स्वाभिमान पर कुठाराघात लगातार जारी है। आखिर कब तक बर्दाश्त करेंगे। सरदार पटेल के वंशज हैं। 25 अप्रैल की जुटान में कुछ न कुछ निर्णय लिया जाना अवश्यंभावी है।

हां, इस जुटान की सूचना मात्र से भाजपा के पक्ष में कुर्मी समाज का वोट दिलवाकर खुद फायदा लेने वाले कुछ लोगों को पीड़ा अवश्य हो रही होगी। इसमें जाने से रोकने की कोशिशें भी की जा रही होंगी। लालच के साथ डराया-धमकाया भी जा रहा होगा। देखना है कि इस सबके बावजूद कुर्मी समाज के लोग कितनी संख्या में पहुंच कर मनुवादी और जातिवादी सत्ता के खिलाफ संकल्प लेकर हेमंत पटेल को न्याय दिलाने की पहल करते हैं।