मैट्रिक एवं इंटर के लिए भोजपुरी में लिखी जा रही भौतिकी की किताब
हाईस्कूल व इंटर के बच्चे अब भोजपुरी में भी भौतिकी की पढ़ाई कर सकेंगे। भौतिकी ओलंपियाड में चार बार गोल्ड मेडल जीतने वाले डॉ. प्रमेंद्र रंजन सिंह मैट्रिक और इंटर के लिए किताब भोजपुरी भाषा में लिख रहे हैं।
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। भौतिकी की पढ़ाई भोजपुरी में। सहसा विश्वास नहीं होता है, लेकिन सच मानिए बिहार के सिवान जिले के नारायण महाविद्यालय गोरेयाकोठी के प्राचार्य डॉ. प्रमेंद्र रंजन सिंह मैट्रिक और इंटर के लिए इस किताब को लगभग लिख चुके हैं। ये भौतिकी के अंतरराष्ट्रीय ओलंपियाड में तीन तथा एशियन ओलंपियाड में एक बार गोल्ड मेडल भारत को दिला चुके हैं। नारायण महाविद्यालय जेपी विश्वविद्यालय सारण छपरा से संबद्ध है।
उनका मानना है कि इसके माध्यम से बच्चे विज्ञान के गूढ़ रहस्य को आसानी से समझ सकेंगे। भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने भर की देर है। जैसे ही इसे शामिल कर लिया जाएगा, भोजपुरी भाषा भाषी इलाकों के स्कूलों और कॉलेजों में इसे पढ़ाने की छूट मिल जाएगी।
डॉ. प्रमेंद्र रंजन सिंह ने बताया कि पढ़ने की और पढ़ाने की भाषा अलग-अलग होती है। पढ़ने की भाषा वह है, जो आसानी से समझ में आ जाए। पढ़ाने की भाषा वह है, जो पढ़ने वालों की समझ में आसानी से आए। मतलब यह कि हमें अपनी मातृभाषा में जितनी आसानी से चीजें समझ में आ जाती हैं, वह किसी और भाषा के माध्यम से नहीं।
अक्सर देखा गया है कि बच्चे विज्ञान पढ़ने से भागते हैं। इसका मुख्य कारण इसके शब्दों का समझ में नहीं आना है। इसलिए सोचा कि यदि विज्ञान की किताबें भोजपुरी में हों तो इस इलाके के बच्चों को आसानी से समझ में आएगी। लिहाजा 2011 में ही सरल भौतिकी नामक किताब को लिखना शुरू कर दिया। अब पूरी हो चुकी है। छपने के लिए जाने वाली है।
किताब मैट्रिक के लिए अलग और इंटर के लिए अलग है। उन्होंने उदाहरण दिया कि रेड आइग्राम बनाने के लिए बच्चों से कहा जाए तो ज्यादातर को समझ में नहीं आएगी। इसी को यदि किरण आरेख कहा जाए तो शायद सभी समझ लेंगे।
अब रिफ्लेक्शन, रिफ्रेक्शन और डिफ्रेक्शन को ही लें। इनकी हिंदी क्रमश: परावर्तन, वर्तन और बिंबवर्तन है। ये तीनों शब्द में तत्सम वर्त है। वर्त का अर्थ झुकाव होता है। जैसे आर्यावर्त। मतलब जिधर आर्यों का झुकाव हुआ, वह आर्यावर्त है। इसी तरह से परावर्तन, वर्तन और बिंबवर्तन को भी समझाने से बच्चों को आसानी से समझ में आ जाएगी।
इसी तरह से हर अध्याय को स्थानीय भाषा के माध्यम से पारिभाषित किया गया है, ताकि बच्चे भौतिकी को आसानी से समझें। उन्होंने बताया कि यूजीसी ने भी स्थानीय भाषाओं पर जोर दिया है। यह अहम पहल है।
डॉ. सिंह ने मैक्सिको में 2008, वियतनाम के हनोई में 2009, क्रोशिया में 2010, संघाई में 2012 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय तथा 2015 में मुंबई में आयोजित एशियन भौतिकी ओलंपियाड में गोल्ड मेडल भारत के लिए जीता है।
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