पहली बार उत्तर प्रदेश को बांटकर पूर्वांचल बनाने की मांग की थी गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने
गहमरी संसद में पूर्वांचल की दुर्दशा बताने लगे तो पीएम पं. जवाहर लाल नेहरू भावुक हो गए थे
बुंदेलखंड, हरित प्रदेश, पूर्वांचल, बुद्धालैंड, अवध प्रदेश, पुण्यांचल और पश्चिम प्रदेश के बाद अब उठी रामराज्य प्रदेश की मांग
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। उत्तर प्रदेश को बांटकर चार प्रदेश बनाने की मांग काफी पुरानी है। अभी तक बुंदेलखंड, हरित प्रदेश, पूर्वांचल, बुद्धालैंड, अवध प्रदेश, पुण्यांचल, पश्चिम प्रदेश तक की ही मांग की जाती रही है। अब एक नवगठित राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी ने रामराज्य प्रदेश की मांग कर डाली है। दरअसल लोकसभा का चुनाव नजदीक है। इसलिए यह मांग और जोर पकड़ रही है।
पहली बार कब हुई थी प्रदेश के बंटवारे की चर्चा
उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग को समझने के लिए नेहरू युग में जाना होगा। 7 जुलाई, 1952 को लोकसभा में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था,
‘मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात से सहमति रखता हूं कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा किया जाना चाहिए। इसे चार राज्यों में विभाजित किया जा सकता है। हालांकि मुझे संदेह है कि उत्तर प्रदेश के कुछ साथी मेरे विचार को शायद ही पसंद करेंगे। संभवत: मुझसे विपरीत राय रखने वाले साथी इसके लिए अन्य राज्यों के हिस्सों को शामिल करने की बात कहें। ‘
1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग बना। हालांकि इसने उत्तर प्रदेश के विभाजन की सिफारिश नहीं की। लेकिन आयोग के एक सदस्य इतिहासकार और राजनयिक केएम पणिक्कर ने उत्तर प्रदेश के विशाल आकार के कारण पैदा होने वाले असंतुलन को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने संकेत दिए थे कि भारतीय संविधान की सबसे बड़ी और मूलभूत कमजोरी किसी एक राज्य विशेष और शेष अन्य के बीच व्यापक असमानता का होना है।
उन्होंने एक नए राज्य आगरा के निर्माण का प्रस्ताव किया, जिसमें उत्तर प्रदेश के मेरठ, आगरा, रुहेलखंड और झांसी मंडल को शामिल करने की बात कही थी। उन्होंने मेरठ मंडल में देहरादून और रुहेलखंड मंडल में पीलीभीत को शामिल नहीं करने सुझाव दिया था। इसके अलावा उन्होंने भिंड के चार जिलों समेत विंध्य प्रदेश से दतिया, मुरैना, ग्वालियर और मध्य भारत के शिवपुरी को नए राज्य आगरा में शामिल करने की बात कही थी। हालांकि पुनर्गठन आयोग के अन्य सदस्यों एस फजल अली और एचएन कुंजरू ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया था।
1962 में गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने पूर्वांचल के दर्द को सुनाया तो पं. नेहरू भावुक हो गए
1962 में गाजीपुर के तत्कालीन सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में पूर्वांचल में व्याप्त गरीबी के बारे में बताते हुए कहा था कि पूर्वांचल के लोग गोबर से अनाज निकालकर खाने को मजबूर हैं। यह सुन प्रधानमंत्री नेहरू भावुक हो गए और पूर्वांचल के विकास को लेकर पटेल आयोग का गठन किया। आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी पर बात इससे आगे नहीं बढ़ सकी।
बसपा शासन काल में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा था
बीएसपी प्रमुख और यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) ने 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 21 नवंबर 2011 को विधानसभा में बिना चर्चा यह प्रस्ताव पारित करवा दिया था कि यूपी का चार राज्यों-अवध प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश (West UP) में बंटवारा होना चाहिए। मायावती खुद पश्चिमी यूपी से ही आती हैं।
उनकी सरकार ने यह प्रस्ताव केंद्र (यूपीए सरकार) को भेज दिया था। जिसे 19 दिसंबर 2011 को यूपीए सरकार में गृह सचिव रहे आरके सिंह ने कई स्पष्टीकरण मांगते हुए राज्य सरकार को वापस भेजवा दिया था।
इससे पहले वह 15 मार्च 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर यूपी को चार हिस्सों में बांटने की मांग उठा चुकी थीं। हालांकि, प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था।
सीएम योगी आदित्यनाथ भी बंटवारे की मांग कर चुके हैं
उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब तक सांसद थे, उनकी राजनीति का दायरा पूरी तरह से पूर्वांचल पर फोकस था। वह भी अलग राज्य की मांग कर चुके हैं। योगी ने राम जन्मभूमि का हवाला देते हुए पुण्यांचल राज्य की मांग की थी। 6 सितंबर 2013 को संसद में अलग पुण्यांचल राज्य बनाने की मांग को लेकर कहा था “ नेपाल से सटे होने के नाते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इसकी संवेदनशीलता और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में विकास के हर पैमाने पर पिछड़ेपन के मद्देनजर इस क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा मिले।”
पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह भी थे बंटवारे के पक्ष में
1950 में उत्तर प्रदेश बन गया। यह एक बड़ा राज्य है। सन 1953 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रहे और बाद में प्रधानमंत्री बने चौधरी चरण सिंह समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 97 विधायकों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश को पृथक राज्य बनाने की मांग की थी।
बुंदेलखंड की मांग भी काफी पुरानी
उत्तर प्रदेश के 7 और मध्य प्रदेश के छह जिलों में फैले बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित किए जाने की मांग करीब दो दशक से की जा रही है। इसके लिए कई संगठन काम कर रहे हैं। इनमें एक बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा भी है। लेकिन यह मांग कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाई। साल 2012 के विधानसभा चुनाव के समय बुंदेलखंड राज्य की मांग को लेकर अभिनेता राजा बुंदेला ने जोरदार अभियान चलाया था। बुंदेलखंड कांग्रेस बनाई और इसी मुद्दे पर चुनाव भी लड़ा था।
समाजवादी नेताओं की इस मुद्दे पर 1995 में गोरखपुर में हुई थी जुटान
वर्ष 1995 में समाजवादी विचारधारा के कुछ बड़े नेता गोरखपुर में एकत्र हुए और पूर्वांचल राज्य बनाओ मंच का गठन किया। इसमें मधुकर दिघे, मोहन सिंह, रामधारी शास्त्री, प्रभु नारायण सिंह, हरिकेवल प्रसाद कुशवाहा आदि विशेष रूप से शामिल रहे। बाद में कल्पनाथ राय व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी पूर्वांचल राज्य का मुद्दा उठाया। हालांकि, आज के समाजवादी प्रदेश तोड़ने के खिलाफ हैं।
पश्चिमी यूपी की मांग
नब्बे के दशक में कांग्रेस नेता निर्भय पाल शर्मा व इम्तियाज खां ने हरित प्रदेश का नाम देकर आंदोलन शुरू किया। आगरा, मथुरा, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद तथा बरेली मंडलों को मिलाकर प्रदेश बनाने की मांग की गई।
1991 में विधान परिषद सदस्य जयदीप सिंह बरार और तथा चौधरी अजित सिंह ने हरित प्रदेश की मांग को हवा दी। कल्याण सिंह की सरकार में हरित प्रदेश की मांग उठी, लेकिन उन्होंने भी मामले को लटकाए रखा। चौधरी अजित सिंह इस मामले को संसद तक ले गए, लेकिन वे आंदोलन को सड़कों तक नहीं ला सके। कुछ राजनैतिक कारणों से राष्ट्रीय लोकदल अब इस मसले पर मौन है।
पूर्वांचल सेना की बुद्धालैंड राज्य की मांग
पूर्वांचल सेना पूर्वांचल के 27 जिलों को मिलाकर बुद्धालैंड राज्य के निर्माण की मांग 2006 से ही कर रही है। इसके लिए सेना अपनी तैयारी कर रही है। आंदोलन को आमजन से जोड़ने के लिए ग्राम स्तर की समितियां बनाने की योजना पर काम हो रहा है।
अब रामराज्य प्रदेश की मांग
राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हेमंत चौधरी का मानना है कि बंटवारे के बिना उत्तर प्रदेश के हर क्षेत्र का समान विकास संभव नहीं है। क्योंकि यह एक बड़ा राज्य है। प्रदेश को विभाजित करके छोटा किया जाय, ताकि प्रदेश के हर कोने कोने का विकास सही तरीके से हो सके। इस अलग राज्य की राजधानी अयोध्या बने, तब सही मायने में रामराज्य की स्थापना होगी।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के 7 मंडल बस्ती, गोरखपुर, देवीपाटन, अयोध्या, आजमगढ़, वाराणसी और विंध्याचल मंडल जिसमें बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, अयोध्या, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर, अमेठी, आजमगढ़,बलिया, मऊ, वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही सहित 26 जनपद आते हैं। 147 विधानसभा की सीटें और 29 लोकसभा की सीटें आती हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिये उनकी पार्टी हर फोरम पर आवाज उठाएगी।
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