यूपी की 50 से ज्यादा सीटों को प्रभावित करेंगे सहयोगी दलों के नाराज कार्यकर्ता
राजेश पटेल
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भाजपा का घमंड अब साफ दिखने लगा है। लोकसभा सीटों के बंटवारे में सहयोगी दलों के साथ उसका रवैया यही बताता है। सहयोगी दलों के नेता अभी खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन, अंदरखाने मंथन तेज हो गया है। कुछ नेता अनदेखी के इस दर्द को लेकर घुट रहे हैं तो कुछ का दर्द जुबां पर भी आ जा रहा है। इस समय जो हालात हैं, वहीं यदि कायम रहे तो यूपी से भारतीय जनता पार्टी को 40 सीटों तक रोक सकते हैं। फिर तो दिल्ली बहूत दूर हो जाएगी।
भारतीय जनता पार्टी की ओर करीब-करीब स्पष्ट है कि पुराने सहयोगी अपना दल एस को दो सीटें, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को एक तथा राष्ट्रीय निषाद पार्टी को भी एक सीट से ज्यादा नहीं मिलेगी। वहीं, हाल ही में एनडीए में शामिल हुए राष्ट्रीय लोकदल को दो सीटें दी गई हैं।
वाराणसी, जौनपुर, मछलीशहर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, रायबरेली, कौशाम्बी, फतेहपुर, फूलपुर, प्रयागराज, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, गोरखपुर, कुशीनगर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, कन्नौज, कानपुर, झांसी, जालौन, पीलीभीत, लखीमपुर-खीरी, बहराइच, अयोध्या, बस्ती, संत कबीरनगर आदि सीटें ऐसी हैं, जिन पर भाजपा को जीत दिलाने में सहयोगी दलों की भूमिका अहम होगी। यह कहें कि यदि सहयोगी दलों के कार्यकर्ता अपना हाथ खींच लें तो भाजपा को दिन में ही तारे नजर आने लगेंगे तो यह गलत नहीं होगा।
अपना दल सोनेलाल की वजह से भारतीय जनता पार्टी को करीब 40 सीटों पर, राष्ट्रीय निषाद पार्टी के कारण 4 सीटों तथा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के सहयोग से पांच-छह सीटों पर विजय मिलती है। लेकिन टिकट देने की बात है तो अपना दल एस को मात्र दो तथा निषाद पार्टी और सुभासपा को एक-एक सीट तक ही समेटना चाहती है।
अपना दल सोनेलाल की बात करें तो इसे 2014 से ही भारतीय जनता पार्टी हर लोकसभा चुनाव में मात्र दो-दो सीट दे रही है। दोनों सीटों पर अपना दल एस की जीत भी हो रही है। एक सीट से स्वयं पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल चुनाव लड़ती हैं। निश्चित रूप से अपना दल को हर लोकसभा चुनाव में 100 फीसद परिणाम लाने में भाजपा का बड़ा सहयोग होता है। लेकिन दो सीटों के बदले भारतीय जनता पार्टी कितनी सीटों पर अपना दल एस के सहयोग से जीतती है, उसको पता है। यही स्थिति सुभासपा और निषाद पार्टी के साथ भी है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अपना दल सोनेलाल पांच सीटों की मांग कर रहा है। यह भी सुनने को मिल रहा है कि तीन सीटों तक बात बन सकती है। सुभासपा और राष्ट्रीय निषाद पार्टी भी दो-दो सीटों की मांग कर रही है। भाजपा ने साफ मना कर दिया।
जानकारों का कहना है कि यदि भाजपा का यही रवैया रहा तो औरों की क्या बात की जाए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बनारस सीट पर जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। किसी तरह से जीत भले मिल जाए, लेकिन इसका अंतर कम होना तय है। यदि मोदी की जीत का अंतर कम होगा तो पूरी दुनिया में उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता को दरकच लगेगी।
प्रतापगढ़ में तो भाजपा के घोषित उम्मीदवार मौजूदा सांसद संगमलाल गुप्ता की हार अभी से दिखने लगी है। वहां पर करीब साढ़े तीन लाख कुर्मी, करीब सवा लाख गड़ेरिया के साथ भारी संख्या में यादव और मुसलमानों के साथ अन्य पिछड़ी जातियों का वोट उनको नहीं के बराबर मिलेगा। ब्राह्मण और राजपूत समाज से भी विरोध के स्वर उठ रहे हैं। रही-सही कसर अपना दल एस के कार्यकर्ता पूरी कर देंगे। इनको दर्द है कि पांच साल के दौरान संगम लाल ने उनको कभी तवज्जो नहीं दी।
इसी तरह से बनारस है। सीटों के बंटवारे में अपना दल एस को सम्मान देने से मोदी के संसदीय सीट के साथ पड़ोसी जिला चंदौली, भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर, प्रयागराज, फूलपुर, आजमगढ़ आदि जिलों के कुर्मी समाज में भारी नाराजगी है। इस नाराजगी को दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की ओर से सार्थक पहल नहीं की गई तो परिणाम प्रभावित होगा।
अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री अनुप्रिया पटेल और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल का इस मुद्दे पर अभी तक कोई अधिकृत बयान तो नहीं आया, लेकिन पार्टी के अंदर मंथन चल रहा है। देखना है कि इस मंथन से क्या निकल कर आता है।
खासकर अपना दल एस की बात करें तो इसकी उपेक्षा से न सिर्फ उत्तर प्रदेश की 50 सीटों पर भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, वरन छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी चुनौती मिलेगी।
ये हैं अपना दल एस के प्रभाव वाली सीटें
मुरादाबाद, रामपुर, बुलंदशहर, बदायूं, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, खीरी, सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, उन्नाव, मोहनलालगंज, लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फर्रूखाबाद, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, फूलपुर, प्रयागराज, बाराबंकी, अयोध्या, अंबेडकर नगर, बरहाइच, कैसरगंज, श्रावस्ती, गोंडा, बस्ती, संतकबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर, चंदौली, वाराणसी, भदोही। मिर्जापुर और सोनभद्र सीट तो अपना दल एस की ही है।
उपरोक्त सीटों पर अनुप्रिया पटेल के आवाहन पर कुर्मी सहित अन्य पिछड़ा, दलित और मुसलमान समाज के लोग भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान करते हैं। एनडीए में मुस्लिम समाज का विधायक चेहरा भी अपना दल एस के ही पास है। रामपुर की स्वार सीट से। इसकी वजह से रामपुर, मुरादाबाद में मुसलमानों का अच्छा-खासा वोट भाजपा को मिल सकता है, लेकिन सहयोगी दलों को हाशिए पर ऱखेंगे तो फिर इस पर संशय हो जाएगा। मंत्रीमंडल विस्तार भी अपना दल एस को इग्नोर किया गया।
“हम अपनी ही मर्जी चलाएंगे। आप हमारी कृपा से हो। हम आपसे नहीं।” भाजपा की यही नीति और सहयोगियों पर धौंस उत्तर प्रदेश से दिल्ली के रास्ते में बड़ी बाधा बन सकती है। हालांकि अभी समय है। भाजपा पहले डराती है, न डरने पर खुद डर जाती है। जिन निर्णयों को लेकर कहा जाता था कि इसे तो पलटा ही नहीं जा सकता, उनको भी पलटते देखा गया है। राजनीति में संभावनाएं कभी मरती नहीं। कभी भी कुछ भी हो सकता है।
(राजेश पटेल सच्ची बातें डॉट कॉम के प्रधान संपादक हैं।)