इतिहास खुद लिखना होगा, नहीं तो पीढ़ियां भुला देंगी-4
मुक्तिवाहिनी के आह्वान पर कांतिकारी तेवर अपनाए मुगल बादशाह ने
मेरठ सदर थाना के कोतवाल धन सिंह गुर्जर दिल्ली की ओर कूच किए क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। 10 मई 1857 को ही उनकी टीम मुक्तिवाहिनी ने मेरठ से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया था। अगले दिन क्रांतिनायक कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में मुक्तिवाहिनी ने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया था। गदर की कमान उनके हाथों में सौंप दी।
पहले तो बादशाह बहादुरशाह जफर ने इनकार किया, मगर फिर सभी क्रांतिकारियों के आग्रह पर अंग्रेजों के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिया। उस दौर में मुगल सल्तनत अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। मुगल बादशाह नाम के बादशाह थे। लेकिन मुगल बादशाह का प्रभाव पूरे हिंदुस्तान में होने के कारण क्रांतिकारियों ने उनको ही कमान सौंप देना उचित समझा।
बदले में मेरठ की क्रांति के जनक कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने अपने असाधारण नेतृत्व कौशल का परिचय दिया व अपने जोशीले भाषण व नारों से मुक्तिवाहिनी में ऐसा जोश भरा कि मेरठ से दिल्ली तक हर बाधा को पार करके अंग्रेजी राज की धज्जियां उड़ाते व गुलामी की बेड़ियों को तोड़ते-फेंकते चले गए। ब्रितानी भारत में औपनिवेशिक अंधेरे को क्रांति की मशाल से रौशन करके कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने अनुकरणीय वीरता व नायकत्व का परिचय दिया।
बाद में अंग्रेजों ने बगावती तेवर अपने लोगों पर बहुत ही बर्बरतापूर्ण व अमानवीय कार्रवाई की। कोतवाल धन सिंह गुर्जर को पकड़ लिया। उनको मेरठ के किसी चौराहे पर चार जुलाई 1857 को दिनदहाड़े फांसी पर लटका दिया। लोगों में दहशत फैलाने के लिए कई दिनों तक शव को पेड़ से लटकने दिया।
इतने से संतोष नहीं हुआ तो अंग्रेजों ने कोतवाल धन सिंह गुर्जर के गांव पांचली पर हमला किया। तोपों से पूरे गांव को उड़ा दिया गया। इस हमले में 40 लोग बचे रह गए थे। इनको उसी जले हुए गांव में ही फांसी पर चढ़ा दिया गया। पूरा गांव तबाह हो गया। बाद में पेट में पल रहे बच्चों को लेकर मायके में रह रहीं माताओं ने आकर गांव को फिर से बसाया। अंग्रेजों की ज्यादती के किस्से आज भी पांचली गांव के लोगों की जुबान पर है। साथ ही कोतवाल धन सिंह गुर्जर की वीरता की गाथा को भी सम्मान के साथ सुनाते हैं।…जारी
(‘1857 के क्रांतिनायक कोतवाल धन सिंह गुर्जर’ पुस्तक से।)