दिमाग हमारा, कब्जा धन्नासेठों और नेताओं का
चैतन्य नागर
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बरसों पहले, मोबाइल फ़ोन आने के बाद, जब मैं किसी नर्सिंग होम के बाहर दवा कंपनियों के नुमाइंदों को बैग उठाये, प्रतीक्षारत देखता था, नवजात शिशुओं के लिए टीके वगैरह लेकर, तो सोचता था कि किसी दिन मोबाइल कंपनियां भी अपने सेल्स प्रतिनिधियों को ऐसे ही नर्सिंग होम के बाहर तैनात कर देंगी और वे बचपन से ही, मोबाइल फोन्स की लाइफ टाइम वैलिडिटी वगैरह जैसी स्कीमें लेकर तैयार रहेंगे।
बाद में मैंने कल्पना की कि यह भी तो हो सकता है कि ऐसे चिप बन जाएं कि मोबाइल फ़ोन की कोई उपयोगिता ही न रहे और चिप बनाने वाली कंपनियां अलग अलग स्कीमों के साथ बच्चे के जन्म के समय ही उनके मस्तिष्क में चिप्स डालने के फायदे बताएं और फिर मोबाइल फ़ोन भी निरर्थक हो जाएं।
अब मुझे लगता है कि मैं हमेशा से बहुत कल्पनाशील रहा हूं। हाल ही में 29 जनवरी को एलॉन मस्क द्वारा पोस्ट किए गए एक ट्वीट के अनुसार उनकी कंपनी न्यूरालिंक ने किसी व्यक्ति में ‘ब्रेन-रीडिंग’ डिवाइस (मस्तिष्क को पढने वाला चिप) प्रत्यारोपित किया है।
शारीरिक रूप से असमर्थ लोग, लकवाग्रस्त लोग इस चिप की मदद से सिर्फ सोच कर ही अपने कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर सकेंगे। ‘चल मेरे कम्प्यूटर’, वे सोचेंगे। और कम्प्यूटर चालू हो जायेगा। यह तो है इस चिप का घोषित मकसद। पर हकीकत क्या है?
बीसीआई (ब्रेन टू कम्प्यूटर इंटरफ़ेस) चिप मस्तिष्क की गतिविधि को रिकॉर्ड और डिकोड करता है| नयूरालिंक ऐसा ही चिप है। ब्रेन में लगे चिप से इसका सीधा संबंध कंप्यूटर से हो जाता है। इसका घोषित उद्देश्य गंभीर पक्षाघात से पीड़ित व्यक्ति को सिर्फ विचार के माध्यम से कंप्यूटर, कृत्रिम अंग, व्हीलचेयर या अन्य उपकरण को नियंत्रित करने की सक्षमता प्रदान करना है।
पर ऐसे कई काम हैं जिसके लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। ज़ाहिर है अभी इसकी घोषणा नहीं की जा सकती। न्यूरालिंक के अलावा ऐसे ही कुछ अन्य चिप्स पर काम चल रहा है और पहले ही लोगों पर इनका परीक्षण किया जा चुका है।
न्यूरो टेक्नोलॉजी शोधकर्ता न्यूरालिंक के मानव परीक्षण को लेकर उत्साहित तो हैं, पर सतर्क भी हैं। नीदरलैंड में यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर यूट्रेक्ट के एक न्यूरोसाइंटिस्ट और अंतरराष्ट्रीय बीसीआई सोसायटी के अध्यक्ष मारिस्का वैनस्टीनसेल ने कहा है, “मुझे यह उम्मीद है कि वे साबित कर देंगे कि यह सुरक्षित है। और यह मस्तिष्क के संकेतों को मापने में प्रभावी है– अल्पकालिक और दीर्घकालिक तौर पर भी।
अभी भी विस्तृत जानकारी उपलब्ध न होने से निराशा बनी हुई है। मस्क के ट्वीट के अलावा इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है कि परीक्षण शुरू हो गया है। परीक्षण पर सार्वजनिक जानकारी का मुख्य स्रोत एक अध्ययन विवरणिका है जो लोगों को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करती है।
ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के न्यूरो इंजीनियर टिम डेनिसन कहते हैं कि इसमें विस्तृत जानकारी का अभाव है जैसे कि प्रत्यारोपण कहां किया जा रहा है और परीक्षण के सटीक परिणामों का आकलन कैसे किया जाएगा। कई लोगों ने आरोप लगाए हैं कि न्यूरालिंक के परीक्षण के समय करीब नौ बंदरों की मौत हुई है। यह गलत और अनैतिक है।
परीक्षण क्लिनिकल ट्रायल जीओवी पर पंजीकृत नहीं है, जो यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ का एक ऑनलाइन भंडार है। कई विश्वविद्यालयों के लिए आवश्यक है कि शोधकर्ता अध्ययन प्रतिभागियों के नामांकन से पहले इस प्रकार के भंडार में किसी परीक्षण और उसके प्रोटोकॉल को पंजीकृत करें।
इसके अतिरिक्त, कई चिकित्सा पत्रिकाएं ऐसे पंजीकरण को परिणामों के प्रकाशन की शर्तें निर्धारित करती हैं। ये नैदानिक परीक्षणों के लिए स्वेच्छा से काम करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए डिज़ाइन किए गए सिद्धांतों को ध्यान में रखते हैं।
न्यूरालिंक ने, जिसका मुख्यालय फ़्रेमोंट, कैलिफ़ोर्निया में है, ‘नेचर’ पत्रिका के अनुरोध का जवाब नहीं दिया कि उसने साइट के साथ परीक्षण पंजीकृत क्यों नहीं किया है। ‘नेचर’ यह जांच कर रही है कि न्यूरालिंक के प्रत्यारोपण अन्य बीसीआई प्रौद्योगिकियों की तुलना में कैसे काम करते हैं; यह परीक्षण बीसीआई और शोधकर्ताओं की चिंताओं को कैसे संबोधित करेगा।
एक बड़ा सवाल यह भी है कि चिप अन्य बीसीआई से किस प्रकार भिन्न है? साल्ट लेक सिटी, यूटा में ब्लैकरॉक न्यूरोटेक की तरह न्यूरालिंक भी व्यक्तिगत न्यूरॉन्स की गतिविधि को ध्यान में रखता है। इसके लिए मस्तिष्क में प्रवेश करने वाले इलेक्ट्रोड की आवश्यकता होती है। अन्य कंपनियाँ ऐसे इलेक्ट्रोड विकसित कर रही हैं जो मस्तिष्क की सतह पर बैठते हैं– जिनमें से कुछ बाद में आसानी से हटाए जा सकते हैं– न्यूरॉन्स द्वारा उत्पादित औसत संकेतों को रिकॉर्ड करने के लिए।
सिंक्रोन सिस्टम की तरह न्यूरालिंक पूरी तरह से प्रत्यारोपित और वायरलेस है। यह बीसीआई के लिए पहला मामला है जो व्यक्तिगत न्यूरॉन्स से रिकॉर्ड करता है। पहले ऐसी प्रणालियों को खोपड़ी में एक पोर्ट के माध्यम से कंप्यूटर से भौतिक रूप से जोड़ा जाता था। इससे संक्रमण का खतरा पैदा होता है और इसका उपयोग सीमित हो जाता है।
कंपनी के अध्ययन विवरणिका के अनुसार, न्यूरालिंक चिप में 64 लचीले पॉलिमर धागे हैं, जो मस्तिष्क गतिविधि को रिकॉर्ड करने के लिए 1,024 साइटें प्रदान करते हैं। यह ब्लैकरॉक न्यूरोटेक के बीसीआई से काफी आगे है, जो मनुष्यों में लंबे समय तक प्रत्यारोपित किया जाने वाला एकमात्र अन्य न्यूरॉन रिकॉर्डिंग सिस्टम है।
इसलिए न्यूरालिंक डिवाइस मस्तिष्क-मशीन संचार की बैंडविड्थ को बढ़ा सकता है– हालांकि कुछ उपयोगकर्ताओं ने कई ब्लैकरॉक डिवाइस लगाए हैं। न्यूरालिंक अपने धागों के लचीलेपन का दावा करता है और कहता है कि वह उन्हें मस्तिष्क में डालने के लिए वह एक रोबोट भी विकसित कर रहा है।
डेनिसन का कहना है कि यह सब बहुत रोमांचक है। अब यह देखना है कि सुरक्षा, सिग्नल गुणवत्ता और टिकाऊपन के मामले में कौन सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है। वे कहते हैं, ”हम सभी को मरीजों की भलाई के लिए लंबी योजना बनाने की जरूरत है।”
न्यूरालिंक मानव परीक्षण से वैज्ञानिक क्या सीखेंगे? न्यूरालिंक ने अपने परीक्षण के लक्ष्यों के बारे में बहुत कम जानकारी जारी की है और साक्षात्कार के लिए नेचर के अनुरोध का जवाब नहीं दिया है। लेकिन विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस स्तर पर सुरक्षा सर्वोपरि होगी। डेनिसन कहते हैं, इसमें डिवाइस के तत्काल प्रभाव का निरीक्षण करना शामिल है- “कोई स्ट्रोक नहीं, कोई रक्तस्राव नहीं, कोई वाहिका क्षति नहीं, ऐसा कुछ भी”।
न्यूरालिंक के अध्ययन विवरणिका में कहा गया है कि स्वयंसेवकों पर पांच साल तक नज़र रखी जाएगी। यह यह भी इंगित करता है कि परीक्षण डिवाइस की कार्यक्षमता का आकलन करेगा, स्वयंसेवक कंप्यूटर को नियंत्रित करने और अनुभव पर प्रतिक्रिया देने के लिए सप्ताह में कम से कम दो बार इसका उपयोग करेंगे।
वैनस्टीनसेल यह जानना चाहेंगे कि क्या समय के साथ पता लगाए गए न्यूरोनल संकेतों की गुणवत्ता कम हो जाती है, जो मौजूदा उपकरणों में आम है। वह कहती हैं, ”आप आरोपण के बाद आसानी से इलेक्ट्रोड नहीं बदल पाएंगे।”
“अगर, अब से एक महीने में, वे सुंदर डिकोडिंग परिणाम प्रदर्शित करते हैं। लेकिन मैं दीर्घकालिक परिणाम देखना चाहूँगा।” डेनिसन यह जानने के लिए भी उत्सुक हैं कि गैर-प्रयोगशाला सेटिंग्स में उपयोग किया जा सकने वाला वायरलेस सिस्टम कैसा प्रदर्शन करता है।
न्यूरालिंक बीसीआई के बारे में वैज्ञानिकों की क्या चिंताएं हैं? अब जबकि मानव परीक्षण शुरू हो गया है, स्वयंसेवकों की सुरक्षा और भलाई एक अहम सवाल है। परीक्षण को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) द्वारा अनुमोदित किया गया था, जिसने न्यूरालिंक के पहले के आवेदन को खारिज कर दिया था।
लेकिन कुछ शोधकर्ता इस बात से परेशान हैं कि परीक्षण क्लिनिकलट्रायल्स जीओवी पर सूचीबद्ध नहीं है। डेनिसन कहते हैं, “मेरी धारणा यह होगी कि एफडीए और न्यूरालिंक कुछ हद तक नियमों का पालन कर रहे हैं।” “लेकिन हमारे पास प्रोटोकॉल नहीं है। इसलिए हम यह नहीं जानते।”
कोलंबस, ओहियो में स्थित बीसीआई पायनियर्स कोएलिशन के सह-संस्थापक इयान बर्कहार्ट एक गोताखोरी दुर्घटना में गर्दन टूटने के बाद लकवाग्रस्त हो गए थे और उन्होंने अपने मस्तिष्क में ब्लैकरॉक ऐरे को प्रत्यारोपित करके 7.5 साल बिताए।
वह इस बात से उत्साहित है कि न्यूरालिंक क्या हासिल कर सकता है। लेकिन, उनका कहना है, ”हर कोई इस पर अटकलें लगाए, इसके बजाय बेहतर है कि वे कितनी जानकारी जारी कर रहे हैं। विशेषकर उन रोगियों के लिए जो अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए इस प्रकार की तकनीक का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
बड़ा सवाल यह भी है कि जब मानव मस्तिष्क सिर्फ कुछ सोच कर कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर सकेगा तो फिर क्या कम्प्यूटर भी उसका इस्तेमाल नहीं कर पायेगा? ऐसी हालत में क्या बड़े उद्योगपति और राजनेता अपने फायदे के लिए व्यक्ति के दिमाग का उपयोग अपने फायदे के लिए नहीं करेंगे? अभी भी सोशल मीडिया का उपयोग करके राजनेता यह अंदाजा लगा लेते हैं कि उनकी लाइक्स और डिसलाइक्स उनके रुझानों को किस हद तक दर्शाती हैं।
क्या आपको लगता है कि दुनिया का सबसे अमीर इंसान एलॉन मस्क अपने न्यूरालिंक का उपयोग सिर्फ परोपकार के लिए करेगा? अपने व्यावसायिक फायदे को भूल जायेगा? यह बहुत बड़ी गलती होगी। इस तरह की किसी भी चिप का उपयोग आगे चल कर राजनीतिक दल और उद्योगपति अपने वोट्स जीतने और अपने सामान को अधिक से अधिक लोगों को बेचने के लिए करेंगे।
इस बात पर यदि किसी को ज़रा सा भी संदेह है तो वे अक्षम्य होने की हद तक मासूम, अज्ञानी और मूर्ख है| किसी के मस्तिष्क में चिप लगाकर उसे अपने नियंत्रण में रखना सिर्फ और सिर्फ राजनेताओं और उद्योगपतियों के लिए फायदेमंद हो सकता है। कैसे? इस सवाल को आपकी समझ और कल्पनाशीलता पर छोड़ा जा रहा है।
(चैतन्य नागर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
साभार-जनचौक