जगदीश्वर चतुर्वेदी
मोदी सरकार आने के बाद की सबसे बुरी घटना है लिबरल विश्वविद्यालय के आदर्श प्रतीक जेएनयू का अंत । यह सच है वहां के लिबरल चरित्र को बचाने के लिए वामपंथी-लोकतांत्रिक ताकतें संघर्ष कर रही हैं। मोदी सरकार और आरएसएस का प्रचार है कि जेएनयू वामपंथी, राष्ट्रविरोधी है, अलोकतांत्रिक है। जबकि वास्तविकता यह है जेएनयू इनमें से कुछ भी नहीं है। वह लिबरल विश्वविद्यालय है। इसके विपरीत देश के बाकी विश्वविद्यालयों का चरित्र पूरी तरह लिबरल नहीं बन पाया है। वहां अनुदार और सामंती विचारधाराओं का शिक्षकों-छात्रों और प्रशासन में वर्चस्व है। लेकिन जेएनयू में प्रशासन से लेकर छात्र जीवन तक लिबरल विचारधारा का वर्चस्व है, इसने लिबरल छात्र-शिक्षक और प्रशासनिक व्यवस्था को जन्म दिया। इस लिबरल माहौल को नष्ट करने में जहां आरएसएस-मोदी सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है वहीं दूसरी ओर जेएनयू के छात्र आंदोलन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के शक्तिशाली संगठन के उदय की भी भूमिका है।
लोकतंत्र, विवेक और आनंद का सौंदर्यलोक जेएनयू-2
सवाल यह है जेएनयू में अभाविप का उदय किन कारणों और परिस्थितियों में हुआ ॽ इस संगठन के उदय और विकास में एसएफआई के पराभव की बड़ी भूमिका है। एसएफआई का छात्रों में जिस गति से अलगाव बढ़ा है, उसी गति से इस संगठन की राजनीतिक शक्ति में इजाफा हुआ है। यह एक सच है एसएफआई के पराभव में अनेक कारणों की भूमिका है। सांगठनिक तौर पर छात्रों के बीच में जीवंत और पहलकदमी से भरी उपस्थिति के अभाव ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की, इसके अलावा सांगठनिक कमजोरियां भी रही हैं, साथ ही समानांतर वाम छात्र संगठन के तौर पर आइसा के उदय और विकास ने एसएफआई को बहुत कमजोर बना दिया। इस समूची प्रक्रिया में आइसा ने एसएफआई के ही जनाधार को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया। राजनीतिक तौर पर नंदीग्राम की घटना ने एसएफआई को भारी क्षति पहुँचायी, रही-सही कसर प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति पद के चुनाव लड़ने के प्रश्न ने संगठन को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। माकपा ने मुखर्जी को समर्थन दिया। वहीं पर जेएनयू इकाई इसके खिलाफ थी, फलतः एसएफआई की जेएनयू इकाई को भंग कर दिया गया। इन सबसे भिन्न जो कारण था वह यह कि विगत 20 सालों में जिस तरह का युवा वर्ग जेएनयू में आया, उस पर नव्य-उदारीकरण और आरएसएस का गहरा असर था। यही वो परिप्रेक्ष्य है जिसने कैम्पस में संघ की राजनीति का आधार तैयार किया।
लो
कतंत्र, विवेक और आनंद का सौंदर्यलोक जेएनयू-1
इसके समानांतर जेएनयू का बड़े पैमाने विस्तार हुआ, विशालकाय कैम्पस, विभाग और तकरीबन 6 हजार से अधिक विद्यार्थी। कैंपस में आइसा ने रेडीकल राजनीति दी, अनेक बार चुनाव जीते। लेकिन आइसा की मुश्किल यह है कि उसमें आरएसएस को रोकने की राजनीतिक क्षमता का अभाव है। दिलचस्प है जिन इलाकों में रेडीकल आइसा जैसे संगठन हैं वे मूलतः वाम संगठनों के ही जनाधार को खाते हैं। वे स्वतंत्र तौर पर अपना विकास तो करते हैं लेकिन प्रतिक्रियावादी संगठनों को समानान्तर तौर पर विकसित होने से रोक नहीं पाते।
उल्लेखनीय है जेएनयू के विस्तार, नव्य-उदारीकरण के व्यापक प्रसार के दौर में आइसा जैसे रेडीकल संगठनों की राजनीतिक शक्ति का विकास हुआ। परंपरागत वाम-लोकतांत्रिक संगठन अपने को ग्लोबलाइजेशन विरोधी जंग का मजबूत सिपाही सिद्ध करने में असमर्थ रहे। इसकी तुलना में आइसा अधिक रेडीकल नजर आता है। इसने छात्रों में आइसा के विस्तार की संभावनाओं को जन्म दिया। देश में जहां एक ओर नव्य-उदारीकरण का विकास हुआ, वहीं अनेक विश्वविद्यालयों में आइसा का विकास हुआ। संयोग की बात है आइसा और भूमंडलीकरण समानांतर चलते हैं, माओवादी-नक्सल राजनीति इसके समानांतर आदिवासियों-खेत मजदूरों आदि में अपना जनाधार बनाती है। वहीं दूसरी ओर कैम्पस से लेकर लोकसभा तक आरएसएस –भाजपा और उनसे जुड़े संगठनों का विकास होता है।
कहने का आशय यह कि नव्य उदारीकरण के विकास और प्रतिवाद के द्वंद्व के गर्भ से वाम रेडीकल और हिंदुत्ववादी विचारधारा का समानांतर विकास हुआ, दोनों ने भूमंडलीकरण का ऊपर से विरोध किया लेकिन सार रूप में वे इसके बाई-प्रोडक्ट हैं। आइसा ने ’ क्रांति’ और अ.भा.वि.परिषद ने ‘ हिंदुत्व’ और ‘राष्ट्रवाद’ को मूल थीम बनाकर छात्रों में काम किया। इसका परिणाम यह निकला कि विभिन्न वि.वि. परिसरों में इन दोनों के प्रति आकर्षण पैदा हुआ, परंपरागत वाम छात्र हतोत्साहित हुए, सांगठनिक तौर पर कमजोर हुए। इन दोनों किस्म के वैचारिक ध्रुवीकरण ने छात्रों के लोकतांत्रिक अकादमिक अधिकारों और शिक्षा में मूलगामी परिवर्तन के मुद्दों को हाशिए पर डाल दिया, अकादमिक जगत में भूमंडलीकरण, नव्य-आर्थिक उदारतावाद, क्रांति, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ये पांच विषय छाए रहे। इन सबके कारण शिक्षा की समस्याएं केन्द्र से खिसक गयीं।
इसके अलावा शिक्षा का निजीकरण बड़े पैमाने पर कई स्तरों पर हुआ। केन्द्र और राज्य सरकारों ने सचेत रूप से सरकारी स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालयों की उपेक्षा की नीति लागू की, संसाधन जुटाने और पेशेवर शिक्षकों के मामले में गलत फैसले लिए इसके कारण प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक समूचा शिक्षा का ढांचा क्रमशः खोखला होता चला गया। इसके समानान्तर ट्यूशन, कोचिंग सेंटर, प्राइवेट स्कूल, प्राइवेट कॉलेज- विश्वविद्यालय आदि का व्यापक नैटवर्क उभरकर सामने आया, इंजीनियरिंग से लेकर बिजनेस मैनेजमेंट आदि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश और लाभ के अवसर खुले। इसने शिक्षित बेकारों की फौज खड़ी कर दी।
आज स्थिति यह है कि सरकारी और निजी शिक्षा के सवालों पर कोई आंदोलन नहीं है। पहले यह धारणा थी कि इंजीनियरिंग की पढाई करने वाले अभिजन होते हैं लेकिन आज माहौल बदला हुआ है। मध्यवर्ग, निम्न-मध्यवर्ग, मंझोले किसानों के बच्चे बड़ी संख्या में निजी कॉलेजों में पढ़ने जा रहे हैं,देश में अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की बाढ़ आ गई है। बच्चों के ऊपर पढ़ाई का इस कदर दवाब है कि वे कुछ भी नया करने के लिए समय नहीं निकाल पाते। स्कूलों में किताबों का बोझ, होमवर्क का बोझ, ट्यूशन आदि के चलते बच्चे तकरीबन 12-14 घंटे रोज व्यस्त रहते हैं। यही बच्चा आगे जब कॉलेजों में पढ़ने जाता है तो वहां समय पर कक्षाएं नहीं होतीं, पुराने किस्म के पाठ्यक्रम हैं, गैर-पेशेवर, अकुशल शिक्षक हैं, जिनसे वह दो चार होता है। इस सबका दुष्परिणाम यह निकला है कि कॉलेज- विश्वविद्यालयों से डिग्रीधारी, नम्बरधारी छात्रों का जन्म हो रहा है। ये वे छात्र हैं जो डिग्रीधारी हैं, लेकिन देश-राज्य-विदेश, अपने सामयिक परिदृश्य आदि से जुड़े बुनियादी सवालों के बारे में कोई समझ नहीं रखते। इस सबके कारण शिक्षा जगत में व्यापक भ्रष्टाचार का जन्म हुआ है। एक ऐसे शिक्षा विरोधी माहौल का निर्माण हुआ है जिसमें शिक्षा के अलावा सब कुछ है। फलतःऔसत शिक्षक, औसत छात्र और औसत से भी निचले स्तर का अकादमिक परिवेश पैदा हुआ है। इसके समानान्तर अकादमिक चौर्य कर्म में हर स्तर पर इजाफा हुआ है। इससे हरेक विश्वविद्यालय प्रभावित है।
सामान्य तौर पर यह मानते हैं कि जिस तरह की अर्थव्यवस्था होती है उसकी संगति में वैसी ही शिक्षा व्यवस्था भी होती, लेकिन भारत में यह स्थिति नजर नहीं आती, यहां पर शिक्षा पर गैर-पूंजीवादी, सामंती दवाब कुछ अधिक हैं। हमारे यहां उत्पादन संबंधों से शिक्षा का जितना संबंध है उससे ज्यादा अनुत्पादक संबंधों से उसका रिश्ता है। फलतःशिक्षा में जीवन में डिग्री अर्थहीनता, व्यर्थताबोध, लंपटगिरी आदि का व्यापक विकास हुआ है। शिक्षा लक्ष्यहीन होकर रह गयी है। शिक्षा प्राफ्त युवाओं में बहुत कम संख्या में युवकों को डिग्री के अनुरूप नौकरी मिल पाती है, बाकी को तो अनिच्छित नौकरी करनी पड़ती है अथवा बेकारी का सामना करना पड़ता है। इसने शिक्षा में नए किस्म की समस्याओं और सांस्कृतिक संकट को जन्म दिया है। यही वो बृहत्तर परिवेश है जिसमें जेएनयू जैसे राष्ट्रीय महत्व के विश्वविद्यालय के उदार चरित्र पर खुलकर हमले हो रहे हैं और उसके बुनियादी लिबरल चरित्र को नष्ट किया जा रहा है। सवाल यह है क्या लिबरल जेएनयू को पुनः प्राप्त कर सकते हैं ॽ
जेएनयू की 'स्प्रि
ट' का स्रोत हैं छात्र। छात्रों की एकता, सहनशीलता, मि
तव्ययता, अनौपचारि
कता, बौद्धि
कता आदि
के सामने सभी नतमस्तरक होते हैं। जेएनयू की पहचान जी.पार्थसारथी, नायडुम्मा, मुनीस रजा, जीएस भल्ला या नामवर सिंह के साथ जिस चीज से बनती है वह है ''छात्र स्प्रिट'। यह सारी दुनि
या में कहीं पर भी देखने को नहीं मि
लेगी। जेएनयू की 'छात्र स्प्रिट' का आधार न वाम वि
चारधारा है न दक्षि
णपंथी वि
चारधारा है। बल्कि लोकतांत्रि
क अकादमि
क वातावरण, वि
चारधारात्मक वैवि
ध्य है।लोकतांत्रि
क छात्र राजनीति
इसकी आत्मा है। जेएनयू के वातावरण और 'छात्र स्प्रिट' को नि
र्मि
त करने में अनेक वि
चारधाराओं की सक्रि
य भूमि
का रही है। जेएनयू का अकादमि
क वातावरण वि
चारधाराओं के संगम से बना है। जेएनयू में आपको एक नहीं अनेक वि
चारधाराओं के अध्ययन-अध्यापन और सार्वजनि
क वि
मर्श का अवसर मि
लता है । इस अर्थ में जेएनयू वि
चारधाराओं का वि
श्वनवि
द्यालय है। सि
र्फ वाम वि
चारधारा का वि
श्ववि
द्यालय नहीं है। फर्क इतना है कि
अन्य वि
श्ववि
द्यालयों में वि
चारधाराओं के अध्ययन -अध्यापन को लेकर इस तरह का खुलापन, सहि
ष्णुता और लोकतांत्रि
क भाव नहीं है जि
स तरह का यहां पर है।
जेएनयू की 'छात्र स्प्रिट' के अनेक नजारे हमारी आंखों से गुजरे हैं। आज भी इस 'छात्र स्प्रिट' को आप व्यंजि
त होते देख सकते हैं। मुझे मई 1983 का ऐति
हासि
क क्षण याद आ रहा है। यह क्षण कई अर्थों में छात्र राजनीति
के सभी पुराने मानक तोड़ता है और नए मानकों को जन्म देता है। यह वह ऐति
हासि
क क्षण है जि
समें जेएनयू अपना समस्त पुराना कलेवर त्यागकर नया कलेवर धारण करता है। छात्रों में अभूतपूर्व एकता, अभूतपूर्व भूल और अभूतपूर्व क्षति
के दर्शन एक ही साथ होते।
जेएनयू की अभूतपूर्व क्षति
के लि
ए सि
र्फ उस समय के छात्रसंघ के नेतृत्व को दोष देना सही नहीं होगा। मई 1983 की जेएनयू की तबाही के लि
ए छात्र बहाना भर थे। असल खेल तो प्रशासकों ने खेला था। उस खेल में अधि
कांश नामी गि
रामी शि
क्षकों ने प्रशासन का समर्थन कि
या था। एकमात्र जीपी देशपाण्डेय , प्रभात पटनायक, सुदीप्ति
कवि
राज, उत्सा पटनायक और पुष्पेश पंत ने खुलेआम छात्रों का पक्ष लि
या था, प्रशासकों के खि
लाफ आवाज उठायी थी। बाकी सब शिक्षक 'बदलो' ,' बदलो' कर रहे थे। मई 83 की घटना के साथ जेएनयू की समस्त पुरानी ऐति
हासि
क मान्यताएं,धारणाएं, वि
श्वास, संस्कार,आदतें, राजनीति
क मान्यताएं, प्रशासनि
क नजरि
या, प्रशासकीय नीति
यां सब कुछ धराशायी हो गए । मई 83 की घटना को बहाना बनाकर जेएनयू को सुनि
योजि
त ढ़ंग से प्रशासकों और केन्द्र सरकार ने तोड़ा। इस कार्य में लोकल प्रशासकों से लेकर केन्द्रीय शि
क्षा मंत्रालय तक सभी का हाथ था। छात्र आंदोलन को तो महज बहाने के रूप में इस्तेमाल कि
या गया। मई छात्र आंदोलन नहीं होता तब भी जेएनयू में बुनि
यादी परि
वर्तन आते। मई 83 के भयानक दमन के बाद भी 'छात्र स्प्रिट' खत्म नहीं हुई । सारे प्रशासकीय और नीति
गत परि
वर्तनों को लाने का बुनि
यादी लक्ष्य था 'छात्र स्प्रिट' को नष्ट करना। छात्रों ने कभी भी यह लक्ष्य हासि
ल करने नहीं दि
या।मई 83 के भयानक उत्पीड़न और दमन के बावजूद छात्रों की एकता, भाईचारा, राजनीति
क सहि
ष्णुता और बंधुत्व बना रहा। उल्लेखनीय है मई 83 में मैं वहां की राजनीति
का अनि
वार्य हि
स्सा
था। जेएनयू की स्टूडेण्ट फेडरेशन ऑफ इण्डिया की जेएनयू यूनि
ट का अध्यक्ष और दि
ल्ली राज्य का उपाध्यक्ष था।
बाद में सन् 1984 -85 के छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष बनने वाला जेएनयू का पहला हि
न्दी भाषी छात्र था। मैं हि
न्दी के अलावा कोई भाषा नहीं जानता था। अंग्रेजी एकदम नहीं जानता था। जबकि
जेएनयू में उस समय 70 प्रति
शत से ज्यादा छात्र गैर हिंदीभाषी इलाकों से पढ़ने आते थे। हि
न्दी में पीएचडी कर रहा था। उस समय हि
न्दी वि
भाग का छात्र राजनीति
में यह सबसे बड़ा योगदान था। मेरे गुरुजन और हि
न्दी वाले दोस्त अभी तक इस तथ्य और सत्य को समझ नहीं पाए हैं। वे यह भी नहीं समझ पाए हैं कि
जेएनयू कि
सी व्यक्ति का बनाया नहीं है, कुछ व्यक्तियों का भी बनाया नहीं है। वह प्रोफेसरों का भी बनाया नहीं है। जेएनयू को बनाया है छात्र स्प्रिट ने। कि
सी महापंडि
त ने जेएनयू नहीं बनाया। जेएनयू में व्यक्ति नहीं 'स्प्रिट' महत्वपूर्ण है। कर्मण्यता और छात्रसेवा महत्वपूर्ण है।
जेएनयू 'छात्र स्प्रिट' की धुरी है लोकतांत्रिक कर्मण्यता। जो छात्रों के लि
ए काम करेगा उसे वे प्यार करते हैं। वे राजनीति
पर ध्यान पीछे देते हैं कर्मण्यता पर ध्यान पहले देते हैं। अकर्मण्य होने पर वे कि
सी भी धाकड़ नेता को घूल चटा सकते हैं। छात्रों के बीच कौन कि
तना समय देता है, उनकी तकलीफों में कौन कि
तना ध्यान देता है,कि
तना समय उनकी सुख दुखभरी जिंदगी शेयर करता है। इन चीजों को जेएनयू के छात्र पहचानते हैं। कोई बढ़ि
या नेता हो लेकि
न छात्रों के बीच में नहीं छात्रसंघ के दफतर में क्लर्क की तरह बैठा रहे। छात्रसंघ की कार्रवाईयों को ही महत्व दे। सार्वजनि
क तौर पर कम मि
ले या लोगों में कम घुले मि
ले तो ऐसे नेता को जेएनयू के छात्र पसंद नहीं करते।
जेएनयू की 'छात्र स्प्रि ट' का अर्थ है छात्र कर्मण्यता। छात्र कर्मण्यता के अभाव में दूसरी बार जब प्रकाश कारात अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने गए तो आनंद कुमार के हाथों बुरी तरह हार गए। आनंद कुमार संभवत: पहले छात्रसंघ अध्यक्ष थे जो हि
न्दी में भी जेएनयू में भाषण देते थे। आनंद कुमार जीते इसी छात्र स्प्रिट के कारण। जबकि
उन दि
नों एसएफआई का संगठन बेहद मजबूत था। उनकी तुलना में समाजवादी उतने शक्तिशाली नहीं थे। प्रकाश कारात एसएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे। जनता से कटे रहने और यूनि
यन के दफतरी कामों में व्यस्त रहने के कारण आनंदकुमार से हार गए।
कि
सी शि
क्षक अथवा अकादमि
क प्रशासक या राजनेता को यह भ्रम नहीं होना चाहि
ए कि
वह जेएनयू की पहचान का नि
र्माता है। यदि
अकादमि
क प्रशासक जेएनयू की पहचान और शक्ति
के नि
यामक थे तो अनेक शि
क्षकों ने अन्यत्र शि
क्षा जगत में शि
क्षा प्रशासक की भूमि
का अदा की है। अनेक संस्थानों के नि
देशक,अध्यक्ष,कुलपति
,कुलाधि
पति
आदि
सब पदों पर जेएनयू के शि
क्षक आसीन हुए हैं। वे कहीं पर भी अपनी क्षमता से जेएनयू जैसी 'स्प्रिट' , 'जेएनयू जैसी संस्कृति
' जेएनयू जैसा छात्रसंघ आदि
क्यों नहीं बना पाए ? दूसरी बात यह कि
जेएनयू जैसी 'छात्र स्प्रिट' वामशासि
त राज्यों पश्चिम बंगाल,केरल और त्रि
पुरा में वाम छात्र संगठन क्यों नहीं पैदा कर पाए ? कि
सी कम्युनि
स्ट देश ( अब पराभव हो चुका है) अथवा कि
सी वि
कसि
त पूंजीवादी मुल्क के आदर्श वि
श्ववि
द्यालयों में ऐसी 'छात्र स्प्रिट' क्यों नहीं देखी गयी ?
जेएनयू की वि
शि
ष्टता है 'छात्रस्प्रिट' यह एकदम वि
लक्षण फि
नोमि
ना है। यह साधारण छात्र एकता नहीं है। छात्र कर्मण्यता है। यह छात्रों के सुख दुख, हंसी, खुशी, वि
मर्श, वि
षाद, अकादमि
क शेयरिंग और आनंद की मि
ट्टी से बनी है। ऐसी मि
ली जुली मि
ट्टी आपको सारी दुनि
या में कहीं नहीं मि
लेगी। इसी अर्थ में जेएनयू सबसे न्यारा है। उसके छात्र भी न्यारे हैं। छात्र स्प्रिट का एक और विरल अनुभव साझा करना चाहूँगा।वह है इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जेएनयू के छात्रों की ऐतिहासिक भूमिका। हत्या के दिन बौद्धि
कों के चेहरे गम और दहशत में डूबे हुए थे। चारों ओर बेचैनी थी ।सब सवाल कर रहे थे कैसे हुआ,कौन लोग थे, जि
न्होंने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदि
रा गांधी की हत्या की। हत्या, क्यों की ॽइत्यादि
सवालों को लगातार जेएनयू के छात्र -शि
क्षक और कर्मचारी छात्रसंघ के दफ्तर में आकर पूछ रहे थे। मैंने तीन -चार दि
न पहले ही छात्रसंघ अध्यक्ष का पद संभाला था,अभी हम लोग सही तरीके से यूनि
यन का दफतर भी ठीक नहीं कर पाए थे।
चुनाव की थकान दूर करने में सभी छात्र व्यस्त थे कि
अचानक 31 अक्टू्बर 1984 को सुबह 11 बजे के करीब खबर आई प्रधानमंत्री श्रीमती इंदि
रा गांधी की हत्या कर दी गयी है। सारे कैंपस का वातावरण गमगीन हो गया । लोग परेशान थे। मैं समझ नहीं पा रहा था क्या करूँ ? उसी रात को पेरि
यार होस्टल में शोकसभा हुई जि
समें सैंकड़ों छात्रों और शि
क्षकों ने शि
रकत की और सभी ने शोक व्यक्त कि
या। श्रीमती गांधी की हत्या के तुरंत बाद ही अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। कि
सी ने अफवाह उड़ा दी कि
यूनि
यन वाले मि
ठाई बांट रहे थे। जबकि
सच यह नहीं था। छात्रसंघ की तरफ से हमने शोक वार्ता और हत्या की निंदा का बयान जारी कर दि
या था। इसके बावजूद अफवाहें शांत होने का नाम नहीं ले रही थीं। चारों ओर छात्र-छात्राओं को सतर्क कर दि
या गया और कैम्पस में चौकसी बढ़ा दी गयी। कैंपस में दुष्ट तत्व भी थे। वे हमेशा तनाव और असुरक्षा के वातावरण में झंझट पैदा करने और राजनीति
क बदला लेने की फि
राक में रहते थे। खैर, छात्रों की चौकसी, राजनीति
क मुस्तै
दी और दूरदर्शि
ता
ने कैम्पस को संभावि
त संकट से बचा लि
या।
दि
ल्ली और देश के वि
भि
न्न इलाकों में हत्यारे गि
रोहों ने सि
खों की संपत्ति और जानोमाल पर हमले शुरू कर दि
ए थे। ये हमले इतने भयावह थे कि
आज उनके बारे में जब भी सोचता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। श्रीमती गांधी की हत्या के बाद हत्यारे गि
रोहों का नेतृत्व कौन लोग कर रहे थे, आज इसे दि
ल्ली का बच्चा बच्चा जानता है। इनमें कुछ लोग अभी जिंदा हैं
और कुछ लोग मर चुके हैं। यहां कि
सी भी दल और नेता का नाम लेना जरूरी नहीं है। कई हजार सि
ख औरतें वि
धवा बना दी गयीं। हजारों सि
खों को घरों में घुसकर कत्ल कि
या गया। कई हजार घर जला दि
ए गए। घर जलाने वाले कौन थे , कैसे आए थे, इसके वि
वरण और ब्यौरे आज भी कि
सी भी पीड़ि
त के मुँह से दि
ल्ली के जनसंहार पीड़ि
त इलाके में जाकर सुन सकते हैं। अनेक पीडि़ित अभी भी जिंदा हैं।
श्रीमती गांधी की हत्या और सि
ख जनसंहार ने सारे देश को स्तब्ध कर दि
या। इस हत्याकांड ने देश में साम्प्रदायि
कता की लहर पैदा की। जि
स दि
न हत्या हुई उसी रात जेएनयू में छात्रसंघ की शोकसभा थी और उसमें सभी छात्र संगठनों के प्रति
नि
धि
यों के अलावा सैंकड़ो छात्रों और शि
क्षकों ने भी भाग लि
या था। सभी संगठनों के लोगों ने श्रीमती गांधी की हत्या की तीखे शब्दों में निंदा की और सबकी एक ही राय थी कि
हमें जेएनयू कैंपस में कोई दुर्घटना नहीं होने देनी है। कैंपस में चौकसी बढ़ा दी गयी।
देश के वि
भि
न्न इलाकों में सि
खों के ऊपर हमले हो रहे थे, उनके घर, दुकान संपत्ति आदि
को नष्ट कि
या जा रहा था। पास के मुनीरका, आर के पुरम आदि
इलाकों में भी आगजनी और लूटपाट की घटनाएं हो रही थीं। दूर के जनकपुरी, मंगोलपुरी, साउथ एक्सटेंशन आदि
में हिंसाचार जारी था। सि
खों के घर जलाए जा रहे थे। सि
खों को जिंदा जलाया जा रहा था। ट्रकों में पेट्रोल, डीजल आदि
लेकर हथि
यारबंद गि
रोह हमले करते घूम रहे थे। हत्यारे गि
रोहों ने कई बार जेएनयू में भी प्रवेश करने की कोशि
श की लेकि
न छात्रों ने उन्हें घुसने नहीं दि
या। जेएनयू से दो कि
लोमीटर की दूरी पर ही हरि
कि
शनसिंह पब्लिक स्कूल में सि
ख कर्मचारि
यों और शि
क्षकों की तरफ से अचानक संदेश मि
ला कि
जान खतरे में है कि
सी तरह बचा लो। आर. के. पुरम से कि
सी सरदार परि
वार का एक शि
क्षक के यहां फोन आया हत्यारे गि
रोह स्कूल में आग लगा रहे हैं। उन्होंने सारे स्कूल को जला दि
या था। अनेक सि
ख परि
वार बाथरूम और पायखाने में बंद पड़े थे। ये सभी स्कूल के कर्मी और शि
क्षक थे। शि
क्षक के यहां से संदेश मेरे पास आया कि
कुछ करो। सारे कैंपस में कहीं पर कोई हथि
यार नहीं था। वि
चारों की जंग लड़ने वाले हथि
यारों के हमलों के सामने नि
हत्थे थे।
देर रात एक बजे वि
चार आया सोशल साइंस की नयी बि
ल्डिंग के पास कोई इमारत बन रही थी वहां पर जो लोहे के सरि
या पड़े थे वे मंगाए गए और जेएनयू में चौतरफा लोहे की छड़ों के सहारे नि
गरानी और चौकसी का काम शुरू हुआ। कि
सी तरह दो तीन मोटर साइकि
ल और शि
क्षकों की दो कारें जुगाड़ करके हरकि
शन पब्लिक स्कूल में पायखाने में बंद पड़े लोगों को जान जोखि
म में डालकर कैंपस लाया गया, इस आपरेशन को कैंपस में छुपाकर कि
या गया था क्योंकि
कैंपस में भी शरारती तत्व थे जो इस मौके पर हमला कर सकते थे। सतलज होस्टल, जि
समें मैं रहता था ,उसके कॉमन रूम में इनलोगों को पहली रात टि
काया गया। बाद में सभी परि
वारों को अलग अलग शि
क्षकों के घरों पर टि
काया गया। यह सारी परेशानी चल ही रही थी कि
मुझे याद आया जेएनयू में उस समय एक सरदार रजि
स्ट्रार था। डर था कोई शरारती तत्व उस पर हमला न कर दे। प्रो अगवानी उस समय रेक्टर थे और कैंपस में सबसे अ-लोकप्रिय व्यक्ति
थे। उनके लि
ए भी खतरा था। मेरा डर सही साबि
त हुआ। मैं जब रजि
स्ट्रार के घर गया तो मेरा सि
र शर्म से झुक गया। रजि
स्ट्रार साहब डर के मारे अपने बाल कटा चुके थे । जि
ससे कोई उन्हें सि
ख न समझे। उस समय देश में जगह-जगह सैंकड़ो सि
खों ने जान बचाने के लि
ए अपने बाल कटवा लि
ए थे। जि
ससे उन पर हमले न हों। डाउन कैंपस में एक छोटी दुकान थी जि
से एक सरदार चलाता था, चि
न्ता हुई कहीं उस दुकान पर तो हमला नहीं कर दि
या। जाकर देखा तो होश उड़ गए शरारती लोगों ने सरदार की दुकान में लाग लगा दी थी। मैंने रजि
स्ट्रार साहब से कहा आपने बाल कटाकर अच्छा नहीं कि
या आप चि
न्ता न करें, हम सब आपके साथ हैं। यही बात प्रो. अगवानी से भी जाकर कही तो उनके मन में भरोसा पैदा हुआ। कैंपस में सारे छात्र परेशान थे, उनके पास दि
ल्ली के वि
भि
न्न इलाकों से खबरें आ रही थीं, और जि
सके पास जो भी नई खबर आती, हम तुरंत कोई न कोई रास्ता नि
कालने में जुट जाते।
याद आ रहा है जि
स समय आरकेपुरम में सि
ख परि
वारों के घरों में चुन-चुनकर आग लगाई जा रही थी उसी समय दो लड़के जेएनयू से घटनास्थल पर मोटर साइकि
ल से भेजे गए, हमने ठीक कि
या था और कुछ न हो सके तो कम से कम पानी की बाल्टी से आग बुझाने का काम करो। यह जोखि
म का काम था। आर.के.पुरम में जि
न घरों में आग लगाई गयी थी वहां पानी की बाल्टी का जमकर इस्तेमाल कि
या गया। हत्यारे गि
रोह आग लगा रहे थे जेएनयू के छात्र पीछे से जाकर आग बुझा रहे थे। पुलि
स का दूर-दूर तक कहीं पता नहीं था।
कैंपस में चौकसी और मीटिंगें चल रही थीं। आसपास के इलाकों में जेएनयू के बहादुर छात्र अपनी पहलकदमी पर आग बुझाने का काम कर रहे थे। सारा कैंपस इस आयोजन में शामि
ल था। श्रीमती गांधी का अंति
म संस्कार होते ही उसके बाद वाले दि
न हमने दि
ल्ली में शांति
मार्च नि
कालने का फैसला लि
या। मैंने दि
ल्ली के पुलि
स अधि
कारि
यों से प्रदर्शन के लि
ए अनुमति
मांगी उन्होंने अनुमति
नहीं दी। हमने प्रदर्शन में जेएनयू के शि
क्षक और कर्मचारी सभी को बुलाया था । जेएनयू के अब तक के इति
हास
का यह सबसे बड़ा शांति
मार्च था। इसमें जेएनयू के सारे कर्मचारी, छात्र और सैंकड़ों शि
क्षक शामि
ल हुए। ऐसे शि
क्षकों ने इस मार्च में हि
स्सा लि
या था जि
न्होंने अपने जीवन में कभी कि
सी भी जुलूस में हि
स्सा नहीं लि
या था, मुझे अच्छी तरह याद है वि
ज्ञान के सबसे बड़े वि
द्वान् शि
वतोष मुखर्जी अपनी पत्नी के साथ जुलूस में आए थे, वे दोनों पर्यावरण वि
ज्ञान स्कूल में प्रोफेसर थे, वे कलकत्ता वि
श्ववि
द्यालय के संस्थापक आशुतोष मुखर्जी के परिवारीजन थे।
जुलूस में तकरीबन सात हजार लोग कैंपस से नि
कले थे, बगैर पुलि
स की अनुमति
के हमने शांति
जुलूस नि
काला, मैंने शि
क्षक संघ के महासचिव कुरैशी साहब को झूठ कह दि
या कि
प्रदर्शन की अनुमति
ले ली है। मैं जानता था अवैध जुलूस में जेएनयू के शिक्षक शामि
ल नहीं होंगे। मेरा झूठ पकड़ा गया पुलि
स के बड़े अधि
कारि
यों ने आर.के.पुरम सैक्टर 1 पर जुलूस रोक दि
या और कहा आपके पास प्रदर्शन की अनुमति
नहीं है। आपको गि
रफतार करते हैं। मैंने पुलि
स ऑफिसर को कहा तुम जानते नहीं हो इस जुलूस में बहुत बड़े बडे़ लोग हैं वे तुम्हारी वर्दी उतरवा देंगे। उनके गांधी परि
वार से गहरे रि
श्ते हैं। अफसर डर गया बोला मैं आपको छोडूँगा नहीं मैंने कहा जुलूस खत्म हो जाए तब पकड़कर ले जाना मुझे आपत्ति
नहीं है।
इस तरह आर.के.पुरम से पुलि
स का दल-बल हमारे साथ चलने लगा और यह जुलूस जि
स इलाके से गुजरा वहां के बाशिंदे सैंकड़ों की तादाद में शामि
ल होते चले गए । जुलूस में शामि
ल लोगों के सीने पर काले बि
ल्ले लगे थे, शांति
के पोस्टर हाथ में थे। उस जुलूस का देश के सभी माध्यमों के अलावा दुनि
या के सभी माध्यमों में व्यापक कवरेज आया। इंदिरा की हत्या और सिख नरसंहार के खिलाफ यह देश का पहला वि
शाल शांति
मार्च था। जुलूस जब कैंपस में लौट आया तो अपना समापन भाषण देने के बाद मैंने सबको बताया कि
यह जुलूस हमने पुलि
स की अनुमति
के बि
ना नि
काला था और ये पुलि
स वाले मुझे पकड़कर ले जाना चाहते हैं। वहां मौजूद सभी लोगों ने प्रति
वाद में कहा था छात्रसंघ अध्यक्ष को पकड़ोगे तो हम सबको गि
रफतार करना होगा। अंत में पुलि
सबल मुझे गि
रफतार कि
ए बि
ना चला गया। मामला इससे और भी आगे बढ़ गया।
लोगों ने सि
ख जनसंहार से पीडि
त परि
वारों की शरणार्थी शि
वि
रों में जाकर सहायता करने का प्रस्ताव दि
या। इसके बाद जेएनयू के सभी छात्र शहर से सहायता राशि
जुटाने के काम में जुट गए। प्रति
दि
न सैंकड़ों छात्र-छात्राओं की टोलि
यां कैंपस से बाहर जाकर घर-घर सामग्री संकलन के लि
ए जाती थीं और लाखों रुपये का सामान एकत्रि
त करके लाती थीं। यह सामान पीड़ि
तों के कैम्प में बांटा गया। सहायता कार्य के लि
ए शरणार्थी कैम्प भी चुन लि
या गया। बाद में पीड़ि
त परि
वारों के घर जाकर जेएनयू छात्रसंघ और शि
क्षक संघ के लोगों ने सहायता सामग्री के रूप में घरेलू काम के सभी बर्तनों से लेकर बि
स्तर और पन्द्रह दि
नों का राशन प्रत्येक घर में पहुँचाया। इस कार्य में हमारी दि
ल्ली वि
श्ववि
द्यालय के शि
क्षकों ने खास तौर पर मदद की।
मैं भूल नहीं सकता दि
ल्ली वि
श्ववि
द्यालय के प्रो. जहूर सि
द्दीकी साहब की सक्रि
यता को। उस समय हम सब नहीं जानते थे कि
क्या कर रहे हैं, सभी भेद भुलाकर सि
खों की सेवा और साम्प्रदायि
क सद्भाव का जो कार्य जेएनयू के छात्रों -शिक्षकों और कर्मचारियों ने कि
या था वह हि
न्दुस्तान के छात्र आंदोलन की अवि
स्मरणीय घटना है। यह काम चल ही रहा था कि
पश्चिम बंगाल के सात वि
श्ववि
द्यालयों के छात्रसंघों के द्वारा इकट्ठा की गई सहायता राशि
लेकर तत्कालीन सांसद नेपालदेव भट्टाचार्य मेरे पास पहुँचे कि
यह बंगाल की मदद राशि
है। कि
सी तरह इसे पीड़ि
त परि
वारों तक पहुँचा दो। वि
पत्ति की उस घड़ी में पश्चि
म बंगाल के छात्र सबसे पहले आगे आए। हमने उस राशि
के जरि
ए जरूरी सामान और राशन खरीदकर पीड़ि
त परि
वारों तक पहुँचाया। इसका हमें सुपरि
णाम भी मि
ला अचानक जेएनयू के छात्रों को धन्यवाद देने प्रसि
द्ध सि
ख संत और अकालीदल के प्रधान संत स्व. हरचंद सिंह लोंगोवाल, हि
न्दी के प्रसि
द्ध लेखक सरदार महीप सिंह और पूर्व राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला के साथ जेएनयू कैम्पस आए। संत लोंगोवाल ने झेलम लॉन में सार्वजनि
क सभा को सम्बोधि
त कि
या, उन्होंने कहा अकालीदल की राष्ट्रीय कार्यकारि
णी ने जेएनयू समुदाय खासकर छात्रों को सि
ख जनसंहार के समय साम्प्रदायि
क सद्भाव और पीडि़ित सि
ख परि
वारों की मदद करने, सि
खों की जान बचाने के लि
ए धन्यवाद भेजा है। सि
ख
जनसंहार की घड़ी में सि
खों की जानोमाल की रक्षा में आपने जो भूमिका अदा की है उसके लि
ए हम आपके ऋणी हैं। सि
खों की मदद करने के लि
ए उन्होंने जेएनयू समुदाय का धन्यवाद कि
या। हमारे सबके लि
ए संत लोंगोवाल का आना सबसे बड़ा पुरस्कार था। सारे छात्र उनके भाषण से प्रभावि
त हुए थे।
(लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय कोलकाता में हिंदी के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं।)