विचारणीय : समाज को वापस लौटाना क्यों महत्वपूर्ण है और इसने अतीत में समाज को कैसे आकार दिया है?

-डॉ. ओम शंकर
सफलता की नैतिक ज़िम्मेदारी
सफलता कभी अकेली नहीं मिलती। यह सिर्फ किसी व्यक्ति की मेहनत का परिणाम नहीं होती, बल्कि इसके पीछे माता-पिता के त्याग, समाज का सहयोग, सरकारी नीतियों और संस्थागत समर्थन का भी बड़ा योगदान होता है। माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा के लिए हर संभव बलिदान देते हैं, करदाता शिक्षण संस्थानों को बनाए रखने में योगदान देते हैं, और सरकार नीतियाँ बनाकर अवसर उपलब्ध कराती है। ऐसे में, सफल व्यक्ति का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह इस सहयोग को पहचाने, उसकी कद्र करे और समाज को वापस लौटाने का प्रयास करें।
सफलता का सच्चा अर्थ
सफलता का सही अर्थ तभी होता है जब वह केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित न रहकर दूसरों के लिए भी उपयोगी हो। प्रत्येक सफल व्यक्ति अपने पूर्वजों, शिक्षकों और समाज द्वारा निर्मित आधार पर खड़ा होता है। इसलिए, जो ज्ञान, संसाधन और अवसर उसे मिले हैं, उनका उपयोग समाज के उत्थान में करना ही उसका असली कर्तव्य है।
कैसे समाज को वापस लौटाने से अतीत में समाज को आकार मिला?
इतिहास गवाह है कि जब भी सफल व्यक्तियों ने समाज को कुछ लौटाने का प्रयास किया, तब-तब सभ्यताएँ फली-फूली। प्राचीन दार्शनिकों और शासकों से लेकर आधुनिक समाज सुधारकों तक, जिन्होंने अपनी सफलता को समाज की भलाई के लिए समर्पित किया, वे हमेशा एक अमिट विरासत छोड़ गए।
1. सामाजिक प्रगति में ज्ञान साझा करने की भूमिका
शिक्षा और ज्ञान साझा करना हमेशा से सामाजिक विकास की रीढ़ रहा है। कई महान विद्वानों, धार्मिक गुरुओं, वैज्ञानिकों और नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि उनकी खोजों और शिक्षाओं का लाभ पूरे समाज को मिले।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम – भारत के मिसाइल मैन, जिन्होंने अपनी वैज्ञानिक सफलता को केवल तकनीकी विकास तक सीमित नहीं रखा, बल्कि युवाओं को शिक्षित और प्रेरित करने में अपना जीवन समर्पित किया। उनकी शिक्षाएँ आज भी करोड़ों युवाओं का मार्गदर्शन कर रही हैं।
गुरु नानक देव जी – उन्होंने जाति-पाति और धार्मिक भेदभाव को समाप्त करने का संदेश दिया और "नाम जपो, किरत करो, वंड छको" (ईश्वर का स्मरण करो, मेहनत करो और बाँटकर खाओ) का संदेश देकर समाज में समानता और सहयोग की भावना को मजबूत किया।
संत रविदास – उन्होंने भेदभाव और ऊँच-नीच के खिलाफ आवाज़ उठाई और सामाजिक समरसता का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देती हैं।
स्वामी विवेकानंद – उन्होंने शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया, जिससे समाज के वंचित वर्गों को अपने अधिकारों की पहचान करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।
2. सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वाले समाज सुधारक
कई सफल व्यक्तियों ने अपने प्रभाव का उपयोग सामाजिक अन्याय को मिटाने और समाज को अधिक समतामूलक बनाने के लिए किया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर – उन्होंने सामाजिक भेदभाव सहकर भी अपने ज्ञान और सफलता का उपयोग दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए किया। उन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया और शिक्षा एवं सामाजिक न्याय के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए।
बी.पी. मंडल – उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों के माध्यम से सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से ओबीसी समुदायों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिला, जिससे समाज में समानता की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा।
ज्योतिराव फुले – उन्होंने महिलाओं और दलितों की शिक्षा के लिए संघर्ष किया और समाज में फैले जातिवाद व अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने पहली कन्या पाठशाला की स्थापना कर महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया।
पेरियार ई.वी. रामासामी – उन्होंने ब्राह्मणवादी वर्चस्व और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। आत्मसम्मान आंदोलन के माध्यम से उन्होंने निचली जातियों को जागरूक किया और समानता की लड़ाई लड़ी।
3. उद्योगपतियों और समाज सेवा के माध्यम से योगदान
वे उद्योगपति और व्यवसायी, जिन्होंने समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझा, उन्होंने केवल उद्योगों का विकास नहीं किया, बल्कि समाज को भी समृद्ध किया।
जमशेदजी टाटा – टाटा समूह के संस्थापक, जिन्होंने केवल उद्योग स्थापित नहीं किए, बल्कि भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) जैसी शिक्षण संस्थाएँ भी स्थापित कीं, जिससे देश में वैज्ञानिक उन्नति संभव हुई।
एंड्रयू कार्नेगी – अमेरिका के एक स्वनिर्मित स्टील उद्योगपति, जिन्होंने अपनी अधिकांश संपत्ति सार्वजनिक पुस्तकालयों और शिक्षा को दान कर दी, जिससे पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रसार हुआ।
4. जनता के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा और नेता
इतिहास उन्हीं नेताओं को याद रखता है जिन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग व्यक्तिगत महिमा के बजाय समाज की भलाई के लिए किया।
महात्मा गांधी – एक शिक्षित बैरिस्टर होते हुए भी उन्होंने आरामदायक जीवन त्यागकर भारत को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष किया। उनका अहिंसा का आंदोलन पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बना।
नेल्सन मंडेला – उन्होंने रंगभेद के खिलाफ दशकों तक संघर्ष किया और दक्षिण अफ्रीका को समानता और मेल-मिलाप की राह पर ले गए।
आज के समय में समाज को वापस कैसे लौटाया जा सकता है?
1. अहंकार से बचें – सफलता का उपयोग अपनी प्रशंसा के बजाय समाज सुधार में करें।
2. ज्ञान और अनुभव साझा करें – युवाओं को मार्गदर्शन देकर उनके भविष्य को संवारें।
3. निर्धनों की मदद करें – गरीबों और पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ने का अवसर दें।
4. सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ें – जाति, धर्म और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कार्य करें।
5. शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करें – स्कूलों, अस्पतालों और रोजगार सृजन में योगदान दें।
6. एक जिम्मेदार नागरिक बनें – ईमानदारी से कर चुकाएँ, नागरिक कर्तव्यों का पालन करें, और नीतिगत सुधारों की माँग करें।
निष्कर्ष: सफलता की वास्तविक परिभाषा
सफलता केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह इस बात से आँकी जानी चाहिए कि वह समाज को कितना लाभ पहुँचाती है। वे लोग जो अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी को समझते हैं और समाज की बेहतरी के लिए योगदान देते हैं, वही सच्चे मायनों में सफल होते हैं।
प्राचीन दार्शनिकों से लेकर आधुनिक उद्योगपतियों तक, समाज सुधारकों से लेकर धार्मिक गुरुओं तक—इतिहास गवाह है कि जब सफल व्यक्तियों ने समाज को कुछ लौटाने का प्रयास किया, तब समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा।
भविष्य भी इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपनी सफलता को केवल अपने तक सीमित रखते हैं या इसे दूसरों के लिए एक सीढ़ी के रूप में उपयोग करते हैं।
"सफलता का असली मूल्य वही समझ सकता है, जिसने अपने संघर्ष की तपिश को महसूस किया हो। सच्ची सफलता वह होती है, जो दूसरों के लिए भी रास्ते खोल सके।"
(प्रो. डॉ. ओम शंकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी BHU IMS में हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं।)
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