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गपशप : न जंग होगी न पीओके लेंगे! लेंगे सिर्फ यूपी-बिहार

हरिशंकर व्यास

इसलिए क्योंकि यदि युद्ध हो रहा होता तो उसकी कथित तैयारियों के बीच क्या सरकार जातिगत जनगणना कराने का फैसला करती? क्या प्रधानमंत्री मोदी तैयारियों की कमान अपने पास ऱखने की मैसेजिंग के बजाय सूत्रों से यह छपवाते कि प्रधानमंत्री ने सशस्त्र बलों को “पूरी अभियानगत छूट” दी है?  सेना ही जवाबी कार्रवाई का तरीका, लक्ष्य और समय तय करेगी। भला युद्ध (याकि परंपरागत लड़ाई जैसे 1965 की भारत-पाक लडाई, 1971 की बांग्लादेश लड़ाई या 1999 की सीमित कारगिल लड़ाई) होता तो प्रधानमंत्री मोदी खुद सेनापति के अंदाज में कमान लिए हुए नहीं दिखते? तीसरी अहम बात, जिस सिंधु नदी संधि का हल्ला बनाया है उसमें संधि को तोड़ने की घोषणा नहीं है, बल्कि उसे मुअतिल (The Indus Waters Treaty of 1960 will be held in abeyance…) भर किया है।

इसका अर्थ यह नहीं कि भारत कुछ नहीं करेगा। भारत पहलगाम की घटना का पाकिस्तान से बदला वैसे ही लेगा जैसे पुलवामा की घटना के बाद 2019 में पीओके के बालाकोट में ‘बदंर मारा गया’ के हवाई हमले किए थे। इस बार क्योंकि पाकिस्तान सतर्क है तो कुछ दूसरे तरीके से पाकिस्तान पर हमले का हल्ला होगा। जैसे पीओके के आतंकी अड्डों पर मिसाइल हमले का हल्ला! वैसी ही लड़ाई जैसे ईरान और इजराइल ने एक-दूसरे पर मिसाइलें दागी हैं। भारत की तरह पाकिस्तान में भी इस समय (खासकर सिंधु नदी संधि के प्रोपेगेंडा से) जैसा उन्माद है तो वह भी जवाब में मिसाइल दागे तो अनहोनी नहीं होगी। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसीम मुनीर ने घटना से पहले भड़काऊ बयान से अपने जो तेवर दिखाए हैं तो पाकिस्तानी सेना जवाबी मिसाइल या हवाई-ड्रोन हमलों से चूकेगी नहीं। इस्लामाबाद की शरीफ सरकार पर सेना पूरी तरह हावी है।

और इस सबके साथ झूठ, प्रोपेगेंडा की सोशल मीडिया पर बाढ़ पहले से ही आई हुई है। आज ही हल्ला था कि पाकिस्तान देखो, हमारे लड़ाकू विमान प्रेक्टिस कर रहे है! कुछ मिसाइल छूटी नहीं कि लोगों को उल्लू बनाने का दोनों तरफ हल्ला होगा। सोचें, सिंधु पानी की खबर आई नहीं कि पाकिस्तान के प्यासे मरने या पाक के सेना चीफ जनरल के भागने के यूट्यूब, पोस्ट चले हुए हैं!  उधर पाकिस्तान में प्रोपेगेंडा का आलम है कि भारत सरकार को ‘डॉन’ जैसे अखबार की वेबसाइट बंद करनी पड़ी है तो लड़ाई ले दे कर केवल जुबानी होनी है। न पाकिस्तान को सबक मिलना है। न आईएसआई या आतंकी चेहरे खत्म होने हैं!

भारत की कार्रवाई का पाकिस्तान इंतजार करता हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार की चुनाव सभा में आतंकियों को कल्पना से बड़ी सजा देने की जो बात कही है उससे पाकिस्तान पूरी तरह खबरदार है। पाकिस्तान का सेना चीफ भागा नहीं है, बल्कि इंतजार करता हुआ है।

मेरा मानना है अंत नतीजे में दोनों तरफ सोशल मीडिया से जुबानी महायुद्ध ही होगा। सोशल मीडिया की जुबानी लड़ाई में कोई भी इस वास्तविकता, इस रियलिटी पर विचार करता हुआ नहीं है कि भारत यदि पाकिस्तान से लड़ता है तो वह किस लक्ष्य से होगी? क्या आतंकी ठिकानों (जैसे 2019 में बालाकोट पर एयर स्ट्राइक) को खत्म करना? क्या पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को जीतना? या पाकिस्तान के टुकड़े करना? (जैसे 1971 में इंदिरा गांधी ने किया) या पाकिस्तान में घुस कर (जैसे 1965 में लालबहादुर शास्त्री की कमान में सेना का लाहौर, सियालकोट तक जाना) उसे उसकी औकात बताने का मकसद? याकि भारत की प्रतिष्ठा की असल बहाली और पाकिस्तान को तौबा कराने के मकसद में उस पर हमला?

पर ऐसा कुछ नहीं होना है। ले देकर बालाकोट से एक कदम आगे एक-दूसरे पर मिसाइलें दागने का तरीका जरूर संभव है।

हालांकि मेरा मानना है भारत के लिए सामरिक, भूराजनीतिक आदि कसौटियों में आज जितनी अनुकूल स्थितियां हैं वैसी 1947 के बाद कभी नहीं हुई। इसलिए सीधा, दो टूक लक्ष्य पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के इलाके का सीमित लक्ष्य बना भारत को वह सैनिक अभियान बनाना चाहिए, जिससे कश्मीर, पीओके का टंटा हमेशा के लिए खत्म हो। वहां से आतंकियों के लगातार आते दस्तों का सिलसिला खत्म हो!

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने तनाव की आड़ में अचानक, चुपचाप जाति जनगणना का फैसला किया है। क्यों? इसलिए कि बिहार जीतना है, यूपी जीतना है। तभी हिंदुओं को जातियों में बांटो याकि बांटो और राज करो से सत्ता का सतत लक्ष्य ही एकमेव टारगेट है। इसलिए न जंग होगी न पीओके लेंगे! मगर हां, बिहार और यूपी जरूर जीतेंगे! क्या नहीं!

(लेखक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक नया इंडिया के संस्थापक-प्रधान संपादक हैं।)