बौद्ध तीर्थ स्थल : विदेशों में बुद्ध के नाम बिना काम ही नहीं चलता, यहां के बौद्ध मंदिर का यह हाल, आप भी जानिए

कभी भी जमींदोज हो सकता है गोला का बौद्ध मंदिर
-झारखंड के गोला में स्थित है मंदिर, टीले के कटाव से मंदिर पर खतरा बढ़ा
संजय कृष्ण, रांची। झारखंड के रामगढ़ जिले के गोला में स्थित प्राचीन बौद्ध मंदिर कभी भी जमींदोज हो सकता है। राज्य सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं बना रही है लेकिन एक प्राचीन बौद्ध मंदिर खुद के जमींदोज होने का इंतजार कर रहा है। रांची से बोकारो जाते समय गोला के पास पर खेत में यह मंदिर खड़ा है। इसके चारों तरफ खेत है। खेत का विस्तार हो रहा है और टीला छोटा होता जा रहा है। अब मंदिर के चारों तरफ दो-तीन फीट की जमीन ही बची हुई है। मंदिर की एक दीवार को पेड़ ने अपने आगोश में ले लिया है। मंदिर के अंदर की हालत भी अत्यंत खराब है। चारों दीवारों पर दो-दो ताखाना बने हुए हैं। ताखाना सामान्य से बड़े हैं। हो सकता है, इनमें कोई प्रतिमा रही हो।
पहुंचने का कोई रास्ता नहीं
रामगढ़-बोकारो मार्ग एनएच 23 पर स्थिति इस मंदिर तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। सड़क से सौ फीट की दूरी पर यह खड़ा है और यहां खेतों के जरिए ही पहुंच सकते हैं। बारिश में स्थिति और भी खराब हो जाती है। सैकड़ों सालों से देखरेख के अभाव में दिनोंदिन जर्जर होता जा रहा है और यह कभी भी गिर सकता है। न जिला प्रशासन इसको लेकर गंभीर है न झारखंड सरकार का सांस्कृतिक निदेशालय। सालों से यहां पुरातत्व विभाग के सहायक निदेशक का पद खाली है।
खीरी मठ के नाम से भी पहचान
इस मंदिर की पहचान खीरी मठ के नाम से भी है। लोग कहते हैं कि मठवा टांड में स्थित इस मंदिर के नजदीक खीरी का पेड़ रहने के कारण लोग इसे खीरी मठ पुकारने लगे। पर, कुछ मानते हैं कि यहीं पर बुद्ध को सुजाता ने खीर खिलाया था और इस कारण इसे खीरी मठ कहा जाता है।
10वीं 12वीं शताब्दी का मंदिर
पुराविद् डॉ. हरेंद्र प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि 2002 में इस पर नजर पड़ी तो उस समय देखने से स्थापत्य शैली के आधार पर यह 10वीं-12वीं शताब्दी का मंदिर लगा था, जिसके सड़क की तरफ वाले पक्ष पर करीब 20-25 फीट की ऊंचाई पर एक प्लैक लगा था जिस पर भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध भगवान की मूर्ति लगी हुई थी। वहां बहुत ही घना वेजिटेशनल ग्रोथ हो चुका है शायद उसकी वजह से वह प्लैक अब गिर चुका है। इसके दूसरे फेस पर दो मछलियां बनी हुई थीं और उसके ऊपर जो छत्रावली बनी थी उसका आमलक मंदिर से गिरकर बगल में एक छोटे से गड्ढे में गिरा हुआ था, जो बरसात के टाइम में पानी के अंदर डूबा रहता है और जब पानी सूख जाता है तो वह फिर दिखाई देता है। लेकिन अब स्थिति बहुत खराब हो गई है।
दो करोड़ राशि हुई थी स्वीकृत
डॉ. सिन्हा ने बताया कि जब संस्कृति विभाग में था तब 14वें वित्त आयोग की राशि में से मैंने बैठक में अनुरोध करके दो करोड़ की राशि इस मंदिर के संरक्षण के लिए स्वीकृत कराई थी, ताकि इसका संरक्षण किया जा सके। लेकिन वह राशि कहां गई, इसका आज तक पता नहीं चला। झारखंड की यह एक प्रमुख धरोहर है। बौद्ध धर्म से जुड़ा होने के कारण यह एक महत्वपूर्ण स्थल बन सकता है।
इस मठ-मंदिर का संरक्षण बहुत जरूरी है। कई बार हमने सरकार और भारतीय पुरातत्व विभाग को भी पत्र लिखा, लेकिन कोई काम नहीं हुआ। यहां का अवलोकन करने से पता चलता है कि इसका जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण कई बार हुआ है। मंदिर दसवीं शताब्दी के आसपास बना होगा और 13वीं-14वीं शताब्दी में भी इसका निर्माण हुआ होगा। चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं। चारों तरफ की मिट्टी कटाव से जमींदोज होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। यदि यह ढह गया तो झारखंड का यह प्राचीन स्थल सदा-सदा के लिए खत्म हो जाएगा। इसका संरक्षण बहुत जरूरी है।
-डॉ. हरेंद्र प्रसाद सिन्हा, पुराविद्
(दैनिक जागरण से साभार)
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