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Pahalgam Terror Atack : कश्मीर बदला है पर फिर दिल्ली से बिगड़ा है!

Sachchi Baten Mon, Apr 28, 2025

हरिशंकर व्यास

कश्मीर घाटी और कश्मीरियों का बदलना आंखों देखा है। साक्षात आज सामने है! क्या किसी ने सपने में कभी सोचा कि पुराने श्रीनगर, डाउनटाऊन श्रीनगर में आतंकी घटना के विरोध में लोग दुकानें बंद रखेंगे! पर वैसा हुआ। कश्मीर में बंद रहा। लाल चौक में बंद और प्रदर्शन हुआ। घाटी में लोग यह खबर सुन सदमे में थे कि पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों को मारा है! खुद पहलगाम में अगले दिन मुख्य सड़क पर लोगों ने घटना के खिलाफ बड़ी संख्या में प्रर्दशन किया! कोई आश्चर्य नहीं जो कश्मीरियों की इस प्रतिक्रिया से वह संगठन भी घबरा गया, जिसने छूटते ही हमले की जिम्मेवारी ली थी। घाटी से भाग कर आए पर्यटकों ने लाइव बताया है कि हमले के बाद कश्मीरियों, मुसलमानों ने उनकी हर संभव मदद की। इंसानियत दिखलाई। बेरूखी, नफरत की बजाय दुख, पीड़ा और हमदर्दी की संवेदना में माना कि बहुत बुरा हुआ! ऐसे ही श्रीनगर के अखबारों, मीडिया ने घटना की निंदा और भर्त्सना में कमी नहीं दिखाई। Pahalgam Terror Atack

क्या यह धंधा चौपट होने के स्वार्थ में था? या प्रशासन-सरकार के दबाव में था? ऐसा यदि कुछ मानें भी तो पुराने श्रीनगर में दुकानों का शटडाउन होना, जामा मस्जिद में जुमे की नमाज में मीर वाइज का एक मिनट का मौन रखवाना और आतंकी हमले की भर्त्सना के क्या अर्थ हैं? मेरे लिए, शेष भारत के लिए यह सब अविश्नसनीय सा है। दरअसल घाटी और घाटी के मुसलमानों की नीयत के साथ इस्लाम को ले कर हममें जैसी जो धारणा पैठी हुई है उसमें यह मानना, समझना आसान नहीं है कि जिंदगी की जरूरत भी जीना बदलवा सकती है। आबोहवा बदलवा सकती है। Pahalgam Terror Atack

घाटी व कश्मीरियों का बड़ा सत्य यह अनुभव है जो अनुच्छेद 370 हटने के बाद उन्होंने कुछ नया फील किया। लोगों की मनोदशा में, नई पीढ़ी, लड़के-लड़कियों, महिलाओं और उस पीढ़ी ने यह महसूस किया कि कुछ भी हो, अमन से सुकून की जिंदगी है। अमन है तो जिंदगी न केवल सामान्य और सहज होती है, बल्कि कमाई चौतरफा बढ़ती है। आबोहवा बदलती है। शहर बदलता है। श्रीनगर, स्मार्ट सिटी होता है। घाटी की पैदावार की बिक्री से लेकर शिक्षा, परिवहन सबमें बेहतरी मुमकिन है। पर्यटकों का सैलाब आ सकता है। रोजगार और कमाई के अवसर बढ़ सकते हैं। Pahalgam Terror Atack

मेरा मानना है कि 1987 के धांधली वाले विधानसभा चुनावों से घाटी की बरबादी के शुरू सफर से बनी कश्मीरी इमेज में नया मोड़ बनवाने वाली तारीख पांच अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 का हटना था। अब दूसरा मोड़ 22 अप्रैल 2025 को कश्मीरियों की प्रतिक्रिया का है। पहलगाम की घटना ने कश्मीरियों में जुगुप्सा, आतंकियों के प्रति तटस्थता, नाराजगी या गुस्सा या असहमति कुछ भी बनाई हो वह अनहोनी बात है। और इसे गहराई से समझने की जरूरत है। उसी अनुसार सरकार और प्रशासन को घाटी में लोगों को संभालना, हैंडल करना चाहिए।Pahalgam Terror Atack

पाकिस्तान से हमारी दुश्मनी, हिंदू बनाम मुस्लिम की राजनीति अपनी जगह चाहे जो पाले रखें लेकिन इसके तनाव और लड़ाई में घाटी की जमीनी मनोदशा को न समझना, उसकी केयर न करना, उसे पाकिस्तानी मनोदशा का मानना ढाक में तीन पात वाली स्थिति लौटाने वाली गलती होगी। Pahalgam Terror Atack

बेसिक दिक्कत मेरे, आपके और शेष भारत की घाटी और कश्मीरियों के प्रति बनी हुई धारणा और दिमाग में पैठी इमेज की है। यह अविश्वास है कि न कश्मीर बदला है और न कश्मीरी बदल सकते हैं। और अविश्वास का ताजा, खतरनाक बिंदु तब दिखा जब गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीनगर में सुरक्षा संबंधी बैठक में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को नहीं बैठाया! भला क्यों? क्या अब्दुल्ला और उनका परिवार भरोसेमंद नहीं है? क्या वे महज दिखावे के मुख्यमंत्री हैं? क्या वे आतंकियों के भेदिए, पाकिस्तानी एजेंट या अलगाववादी हैं? Pahalgam Terror Atack

स्वतंत्र भारत का दुर्भाग्य है, गंवारपने और मूर्खताओं की इंतहां है जो आईबी, रॉ जैसी खुफिया एजेंसियों से देश का प्रधानमंत्री हो या गृह मंत्री या गृह मंत्रालय के कश्मीर डेस्क के अफसर असुरक्षाओं में ऐसे जीते हैं कि एक आईबी चीफ बीएन मलिक ने पंडित नेहरू के कान भर कर शेख अब्दुल्ला को बरखास्त करवाया तो 1984 में आईबी चीफ एमके नारायणन ने फारूक अब्दुल्ला को बरखास्त करवाया। वही 2014 से मोदी सरकार को खुफिया प्रमुख अजित डोवाल घाटी के अब्दुल्ला और मेहबूबा को उसी निगाह, उसी समझ, उसी मनोवृत्त में समझाते हैं, जैसे उनके पूर्ववर्ती एमके नारायणन या बीएन मलिक समझाते थे। Pahalgam Terror Atack

दूसरे शब्दों में 1947 में भारत ने घाटी में जितने प्रयोग (सोचें, वीपी सिंह के समय मुफ्ती मोहम्मद देश के गृह मंत्री थे तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उमर अब्दुल्ला केंद्रीय मंत्री) किए हैं उस सबके अंत में ऐसी की तैसी दिल्ली की खुफियाई एजेंसियों द्वारा सत्तावान नेताओं के कान भरने, नेताओं को असुरक्षित बनाने, उनमें अविश्वास बनवाने तथा जमीनी लापरवाही व  ढिलाई से बरबाद हुए हैं। Pahalgam Terror Atack

बेसिक बात है कि अगस्त 2019 के बाद घाटी में वह हुआ जो घाटी के लोगों ने पर्यटकों को नए-नए इलाकों में घूमाने का सिलसिला बनवाया। एक जानकार के अनुसार पर्यटकों के सैलाब से पहलगाम इलाके में चार सौ नई प्रॉपर्टी का निर्माण हो रहा है! भीड़ के कारण ही टूरिस्ट ऑपरेटरों या होटल वालों ने पहलगाम के अगल-बगल की छोटी घाटियों में पर्यटकों को घुमाना शुरू किया।  क्या यह बात आईबी, रॉ, सेना, बीएसएफ, पुलिस या तमाम खुफिया एजेंसियों को नहीं जाना हुआ होना था? पर किसी को पता नहीं था! और आतंकी मजे से बैसरन घाटी में आए और पर्यटकों को मारा।

तो कौन दोषी?

मेरा मानना है कि शेष भारत के पर्यटकों को समझ आया कि कश्मीर बदल गया है, घूमने लायक हो गया है। एयरलाइंस, होटल मालिकों, कश्मीरियों को भी समझ आया कि बदले कश्मीर के अवसरों को भुनाओ मगर भारत की खुफिया एजेंसियों को समझ नहीं आया! अफसरों को समझ नहीं आया कि कश्मीर नया होता हुआ है तो उसको नई जिम्मेवारी, नई समझदारी और नएपन के साथ संभाला जाए! ज्यादा चौकस हुआ जाए। पाकिस्तानी घुसपैठियों, आतंकियों पर अधिक सख्त नजर रहे! नए कश्मीर की पहली निर्वाचित सरकार और प्रादेशिक पार्टियों को भरोसे में ले कर उन्हें मोटिविट करें ताकि वे अपने कार्यकर्ताओं से घर-घर संपर्क रखें। राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नेटवर्क और प्रशासनिक कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों तथा उनके मुखबिरों से सूचना लेने-देने का नया तंत्र बने। कश्मीर को किसी भी तरह का कोई अप्रत्याशित सदमा नहीं लगना चाहिए। Pahalgam Terror Atack

मगर ऐसी सोच ही नहीं थी। और मेरा मानना है कि वजह हमारा अविश्वास है कि न कश्मीरी बदल सकते हैं और न कश्मीर बदला है! आखिर क्यों कर ऐसा मेरा मानना है? दरअसल फरवरी में ‘ब्लूम्सबरी’ ने कश्मीर पर संभवतया पहली और अकेली एक भव्य कॉफी बुक ‘रीइमैजिनिंग जम्मू एंड कश्मीर: अ पिक्टोरियल जर्नी” प्रकाशित की है। Pahalgam Terror Atack

(‘Reimagining Jammu and Kashmir: A Pictorial Journey’ Hardcover– 20 February 2025 by Ashish Sharma (Author)- अमेजन पर किताब का लिंक है- https://www.amazon.in/Reimagining-Jammu-Kashmir-Pictorial- Journey/dp/9361319906)

इसका शीषर्क मेरे लिए और दिल्ली के आईआईसी अड्डे के अपने करीबी सुधीजनों के लिए भी सवाल पैदा करने वाला था। हमारा आशीष से सवाल था कि जो इलाका दशकों से हिंसा, भारत विरोध और खौफ की दिल-दिमाग में तस्वीर बनाए हुए है उसकी भला कैसे नई कल्पना कर सकते हैं? उसे कैसे बदला हुआ मानें? एक अंग्रेजीदां कला आलोचक ने अंग्रेजी में तल्खी से कहा, क्या बेहूदा बात, कश्मीर ‘रीइमैजिनिंग’ कैसे हो सकता है! वह तो खौफ में जीता हुआ है, दबिश में है। जोर-जबरदस्ती की दास्तां है! Pahalgam Terror Atack

यही देश और दिल्ली के बौद्धिकों, विदेशियों की भी आम राय है। तब विचार सकते हैं लुटियन दिल्ली की नौकरशाही में भी क्या बेसिक सोच होगी? जबकि आशीष की दलील है कि, ‘मेरा बचपन, मेरी पढ़ाई उसी लाल चौक में हुई है जो खौफ का एपीसेंटर था! मैंने बम फूटते देखे हैं, बगल में आतंकियों द्वारा संपादक को गोली मारते देखा है। और मैं फोटोग्राफर हूं तो मेरी आंखों देखी यादों में 2019 से पहले का लाल चौक है व घाटी है तो उसके बाद जो देखा है, जो शूट किया है वह मेरे लिए भी अकल्पनीय था और है। इसलिए तस्वीरें अब नया कश्मीर बताते हुए हैं तो वह मेरे लिए, सबके लिए ‘रीइमैजिनिंग’ ही है’! निश्चित ही इस कॉफी बुक में घाटी के जनजीवन, माहौल की नई फील के फोटो अद्भुत हैं। उनसे अपने आप विश्वास होता है कि घाटी कल्पना से अधिक नया हुआ है! सो उसे नजर लगनी ही थी। तभी आतंकियों ने पहली बार पर्यटकों को मारा! Pahalgam Terror Atack

इसलिए ‘रीइमैजिनिंग’ और कॉफी बुक सुकून भरे अद्भुत कश्मीर का दस्तावेज है तो उसको अब कश्मीरियों के लाइव चेहरे से जुबां भी मिलती हुई है। आतंकी घटना के बाद लाल चौक, श्रीनगर और घाटी में लोगों के लाइव चेहरों से अपने आप अहसास होता हुआ है कि वे पहलगाम की घटना से सदमे में हैं, हताश और निराश हैं। आशीष ने अपनी कॉफी बुक में पर्यटन, जनजीवन, हैंडिक्राफ्ट, खेती, विकास और लोगों की बेफिक्री को नए कश्मीर की मौजमस्ती में जैसा-जो शूट किया है उसका साक्ष्य यह जरूरत व डर पैदा करता हुआ है कि कही वे दिन फिर न लौट आएं जब श्रीनगर, लाल चौक और घाटी की तस्वीरें भूतहा थी। सभी जी रहे थे खौफ की जिंदगी और वीराना! Pahalgam Terror Atack (साभार नया इंडिया)

(लेखक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक नया इंडिया के संस्थापक-प्रधान संपादक हैं।)