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Social Justice : सामाजिक न्याय और मंडल आयोग की ऐतिहासिक भूमिका, ओबीसी जरूर पढ़ें इसे....

श्रद्धेय श्री बी पी मंडल साहब का भारतीय समाज में योगदान

-डॉ. ओम शंकर

यह लेख बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के सामाजिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक योगदान की विश्लेषणात्मक समीक्षा करता है। विशेष रूप से मंडल आयोग की भूमिका और उसकी रिपोर्ट के माध्यम से भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा के संस्थानीकरण को केंद्र में रखकर। यह मंडल की सोच, आयोग की प्रक्रिया, अनुशंसाओं और सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों का विस्तृत मूल्यांकन भी करता है।

भारतीय समाज ऐतिहासिक रूप से जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता से ग्रस्त रहा है। सामाजिक न्याय की अवधारणा भारतीय संविधान में समावेशिता, समानता और सामाजिक सशक्तिकरण का आधार बनकर उभरी। इस पृष्ठभूमि में मंडल साहब का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिन्होंने न केवल एक राजनीतिक नेता के रूप में कार्य किया, बल्कि एक सामाजिक चिन्तक और सुधारक के रूप में भी पिछड़े वर्गों की आवाज को स्वर दिया।

बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 को उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में हुआ। उनके जन्म से ठीक एक दिन पहले इसी शहर में उनके पिता, जो एक चिंतक, मनुवाद विरोधी, स्वाभिमानी, समाज सुधारक, जनेऊ आंदोलन के अग्रणी नेता, और इस देश में अग्रिम जमानत पाने वाले पहले व्यक्ति थी, की मौत हुई थी और उनकी चिता जाली थी। मतलब उनकी अपने पिता से कभी मुलाकात नहीं हुई थी। कुछ हीं सालों बाद उनकी माता जी भी गुजर गई। एक मां - बाप के बिना जिंदगी कैसे वो जिए होंगे, उसके बारे में आप खुद समझ सकते हैं।

वे एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी और राजनीतिज्ञ थे। 1967 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने, और यह उपलब्धि उन्हें पिछड़े वर्ग से आने वाले पहले मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास में स्थापित करती है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष किया और सामाजिक समानता को केंद्र में रखा।

जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में "सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों" की स्थिति की जांच और अनुशंसा हेतु एक आयोग गठित किया, जिसे मंडल आयोग कहा गया। इसका उद्देश्य उन वर्गों की पहचान करना था जिन्हें ऐतिहासिक रूप से सामाजिक भेदभाव, शिक्षा की कमी और आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा था।

मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें निम्नलिखित प्रमुख सिफारिशें थीं:

भारत की कुल जनसंख्या का 52% हिस्सा OBC श्रेणी में आता है।

OBC वर्ग को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण दिया जाए।

सामाजिक पिछड़ेपन के निर्धारण हेतु 11 व्यापक मानदंड निर्धारित किए गए, जिनमें जाति, शिक्षा स्तर, आवासीय स्थिति, जीवनशैली आदि शामिल थे।

1990 में प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की। इस निर्णय से देश में तीव्र विरोध और समर्थन दोनों उत्पन्न हुए। शहरी क्षेत्रों के छात्रों और उच्च जातियों ने इसका विरोध किया, जबकि ग्रामीण और पिछड़े वर्गों में सामाजिक चेतना की लहर दौड़ गई। इसने OBC राजनीति को एक नई दिशा दी और सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूती दी।

मंडल आयोग की सिफारिशों को लेकर दो पक्ष उभरे। इस देश के उच्च वर्गों ने जहां इसे "योग्यता के विरुद्ध" बताया, वहीं पिछड़ी जातियों ने इसे ऐतिहासिक शोषण के विरुद्ध न्यायिक हस्तक्षेप माना। इसने भारतीय लोकतंत्र में "समान अवसर बनाम सामाजिक पुनर्वितरण" की बहस को जन्म दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी केस में इसे वैध ठहराते हुए आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित की।

मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद भारत में OBC राजनीति ने एक निर्णायक मोड़ लिया। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ओबीसी नेताओं की एक नई पीढ़ी सामने आई, जिन्होंने अपनी जातीय पहचान के साथ सामाजिक न्याय की राजनीति को आगे बढ़ाया। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, और नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने 'मंडल राजनीति' को आधार बनाकर सत्ता में भागीदारी प्राप्त की। यह दौर जाति आधारित दलों के उदय, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतीकों की पुनर्व्याख्या, और पिछड़े वर्गों के आत्मगौरव के उभार का समय रहा। इससे भारत की राजनीतिक संस्कृति में बहुसंख्यक वंचित समुदायों की भागीदारी बढ़ी, और यह लोकतंत्र को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम सिद्ध हुआ।

बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल भारतीय समाज में सामाजिक न्याय के अग्रदूत थे। उन्होंने एक आयोग के माध्यम से भारत की बहुसंख्यक आबादी के ऐतिहासिक शोषण और वंचना को पहचान दिलाई। उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र में समावेशिता, समानता और अधिकार आधारित राजनीति की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध हुआ। आज भी मंडल आयोग की विरासत सामाजिक न्याय आंदोलनों का मूल आधार बनी हुई है।

(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हृदय रोग विभाग में अध्यक्ष (पूर्व) हैं।)

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