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डॉ. आंबेडकर : हेडगेवार ने सोचा था कि मनुस्मृति दहन करने वाला संघ के लिए भी कभी सम्माननीय बनेगा?

Sachchi Baten Mon, Apr 14, 2025

डॉ. बीएन सिंह

आज बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की जयंती है। लोगों मे होड़ लगी होगी जयंती मनाने की। उसमे भाजपा सबसे आगे है।

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने और मनुस्मृति को संविधान बनाने के उद्देश्यों के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना करने वाले केशव बलिराम हेडगेवार ने कभी सपने मे भी सोचा नही होगा कि एक दिन उन्हीं की विचारधारा का वाहक प्रधान मंत्री मनुस्मृति का सार्वजनिक दहन करने वाले अंबेडकर को महानायक बतायेगा। जो वर्ण व्यवस्था संघ के सपनों का खाद पानी है, उसकी जड़ों पर प्रहार करने वाले अंबेडकर अगर संघ के लिये सम्माननीय हो गये हैं तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यह परिवर्तन कैसे हुआ । यह परिवर्तन है या ढोंग।

जिस वक्त गुरु गोलवरकर मनु को " दुनिया का पहला कानून बनाने वाला" घोषित कर रहे थे उस समय अंबेडकर उसी वर्ण व्यवस्था को स्थापित करने वाले कानून के खिलाफ जंग छेड़े हुये थे।

जब संघ आजाद भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली , तिरंगे और संविधान को खारिज कर रहा था, तब संविधान लागू हो चुका था और अंबेडकर सभी नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों को भारतीय संविधान की मूल आत्मा बता रहे थे। जो अंबेडकर पूरे जीवन हिंदू धर्म मे व्याप्त जाती, वर्ण , छुआछूत और असमानता के खिलाफ लड़ते रहे , अंततः उस धर्म का ही त्याग कर दिया। उन्हें अब हिंदू राष्ट्र के अलंबरदारों द्वारा अपने नायक के रूप मे पेश करना किसी अजूबे से कम नही है।

यह अजूबा उस राजनीतिक होड़ का हिस्सा है जिसके तहत सभी दल खुद को अंबेडकर का असली वारिस साबित करने मे जुटे हैं।

एक तरफ मोदी संविधान दिवस मनाने की नयी नवेली रवायत के बीच संसद मे सविधान की महत्ता और अंबेडकर की तारीफ के पुल बाॅध रहे थे और दूसरी तरफ राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति या संविधान की शपथ लेने वाला सांसद भारतीय गणतंत्र को हिंदू राष्ट्र घोषित कर रहे थे। और संसद मे गृहमंत्री अंबेडकर को गाली दे रहा था कि, क्या अंबेडकर अंबेडकर चिल्ला रहे हो " इतने बार भगवान का नाम ले लेते तो स्वर्ग मिल जाता " क्या हमारा संविधान हिंदू या मुस्लिम, सिख या इसाई राष्ट्र आदि बनाने की इजाजत देता है।

अंबेडकर के समानता और न्याय के प्रयासों के कट्टर बिरोधी रहे आर एस एस और भा ज पा उन्हें अपना बनाने के दौड़ मे शामिल हैं ऐसे मे सवाल उठना लाजिमी है कि दलितों पिछड़ो के "मसीहा" जो संघ परिवार द्वारा सदैव तिरस्कृत और उपेक्षित थे उन्हे भा ज पा इतनी तरजीह क्यों दे रही है? क्या वीर सावरकर , मुखर्जी और अटल बिहारी का नायकत्व अब बौना साबित हो गया है। या फिर सरदार पटेल , गांधी को अपनाने वाली भा ज पा के

" नायक हड़प अभियान " का अगला निशाना पं. मदन मोहन मालवीय के बाद अंबेडकर हैं। आपको याद होगा पिॆछले वर्षों मे आर एस एस की तरफ से अंबेडकर की 125वीं जयंती पर अब तक का सबसे बड़ा आयोजन किया गया था । पांचजन्य और आर्गनाईजर ने अंबेडकर विशेषांक निकाले थे और उनको नायक के तौर पर पेश किया था । उनको राष्ट्रवादी बताया गया और मुश्लिम बिरोधी बताया गया।

मोदी ने कहा कि " डाक्टर अंबेडकर युगपुरूष हैं जो करोड़ो भारतीयों के दिलों मे बसते हैं। आइये हम सब देश को अंबडकर के सपनो का भारत बनाने के लिये प्रतिबद्ध करे। दूसरी तरफ संसद मे गृहमंत्री का अंबेडकर के प्रति घृणा का भाव देश देख रहा था ।

भा ज पा का अंबेडकर प्रेम नाटक नही तो और क्या है? एक तरफ घर वापसी, दूसरी तरफ वन्देमातरम् । भारत माता की जय बोलो आदि।

जिन्होने जीतेजी अंबेडकर का माखौल बनाया, उनसे बराबर दूरी बनाये रखी।उनका सदैव विरोध करते रहे। अब उनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिये और दलित शोषितों के बीच पैठ बनाने के लिये उनकी सोने की मूर्ति बनायी जा रही है। दलित पिछड़ो मे जो सत्ता के दलाल है जैसे चिराग पांड्य पुत्र राम विलास पासवान, जीतन राम माझी, अठावले , मेघवाल और उदित राज के द्वारा भा ज पा अंबेडकर का अपहरण करना चाहती है।

अंबेडकर हिंदू धर्म को ब्राह्मण धर्म कहते थे। और यहाॅ तक कहे कि जबतक हिंदू धर्म का संपूर्ण विनाश नहीं हो जाता तबतक समता, न्याय और बंधुत्व की बात बेमानी है। 1935 मे येवला के सम्मेलन मे एलान किया कि मै भले ही हिंदू पैदा हुआ हूॅ मगर हिंदू के तौर पर मरूॅगा नही , अंर 1956 मे अपने मौत के पहले बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। हिंदू राज के खतरे के खिलाफ अपने अनुयायियों को बार बार आगाह करते रहे।

आज उन्हीं अंबेडकर को आर एस एस और भा ज पा मोदी को आगे करके अपहरण अभियान मे लगी है।

अब सवाल यह है कि जिस संघ के सामने हिंदू राष्ट्र का स्पष्ट एजेंडा है उसे हिंदू व्यवस्था के घोर विरोधी अंबेडकर की जरूरत क्यों है?

अंबेडकर की लोकप्रियता ।अगर मूर्तियाॅ, निशानियाॅ, तस्विरों, पोस्टरों , किताबों , पर्चों जलसों आदि से महानता का पैमाना माना जाय तो ऐसा कोई नहीं जो बाबा साहब की बराबरी कर सके। एक ऐसा इंसान जिसको जानवरों का जूठा पानी भी नही पीने देते थे जो वो उनको अपनाने की होड़ मे सबसे आगे हैं। ये वही हैं जो वुद्ध को नहीं पचा सके। इनका लक्ष्य भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है।

दलितों के प्रतिनिधि के तौर पर संसद विधान सभाओं मे असली दलित प्रतिनिधि नही बल्कि चिराग पासवान , जीतन राम माझी , अठावले जैसे दलित दलाल जा रहे हैं। अंबेडकर ने गांधी की जान बचाने के लिये जो पूना पैक्ट किया वही आज दलितों के लिये नासूर बन गया है। दलितों के आरक्षित सीट पर सवर्णों के दलाल जैसे सोनकर, गोंड़? कोरी, मल्लाह आदि जातियां जो दलितो मे स्थान पा गयी हैं जिनकी संख्या दलितों में नगण्य है लेकिन आरक्षित सीट यही जीतते हैं क्योंकि सवर्ण जातियां चमार डोम मुसहर जाटव को अछूत और घृणा की नजरों देखती है। एक उदाहरण के तौर पर मै अपने गाॅव का प्रधान का चनाव का उदाहरण बताता हू। 1000 से ज्यादा चमार है। 1100 के लगभग सवर्ण है आपस मे कटुता है गुटबाजी भी है लेकिन दलितों सवाल पर भी सवर्ण एक हो जाते है। और प्रधान 1 घर वाला गोड़ होता है, आरक्षित सीट पर। यही उत्तर प्रदेश मे लोकसभा मे भी हुआ। आरक्षित सीट पर दलित नही , नकली दलित मल्लाह सोनकर गोड़ कोरी आदि सभी 17 सीटों पर सवर्णो के मदद से जीत गये। अतः समय आ गया है कि अंबेडकर पेरियार के रास्ते पर चलकर पुनः फिर से सेपरेट इलेक्टोरेट की बात को रखा जाय। नही तो दलितों के नाम पर दलित दलाल चुने जायेंगे।

(लेखक अंबेडकर पेरियार समानता मंच के राष्ट्रीय संयोजक तथा बीएचयू के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं।)

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