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War between two countries : आधुनिक युग में युद्ध के कारण – एक विश्लेषणात्मक तथ्य

Sachchi Baten Thu, May 8, 2025

प्रो. (डॉ.) ओम शंकर

युद्ध, जहाँ एक ओर विनाश और त्रासदी का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह अक्सर रणनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक कारणों से प्रेरित होता है। आधुनिक काल में युद्ध केवल सीमाओं की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि सत्ता, संसाधन, विचारधारा और वैश्विक वर्चस्व के लिए लड़े जाते हैं।

1. भूराजनीतिक वर्चस्व की चाह (Geopolitical Dominance)

महाशक्तियाँ जैसे अमेरिका, रूस, चीन – अपने प्रभाव क्षेत्रों को बनाए रखने या बढ़ाने के लिए युद्ध का सहारा लेते हैं।

उदाहरण: यूक्रेन-रूस युद्ध, जहां रूस अपने पड़ोसी देश पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है और नाटो के विस्तार का विरोध करता है। चीन द्वारा भारत के विरूद्ध सीमित युद्ध छेड़कर मोदी जी से 4500 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन छीन लेना और बांग्लादेश द्वारा मोदी जी से भारत के 1700 गांव छीन लेना।

2. प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण (Control over Natural Resources)

तेल, गैस, जल, खनिज (जैसे लिथियम) जैसे संसाधनों के लिए युद्ध होते हैं।

उदाहरण: अमेरिका का इराक युद्ध (2003) द्वारा तेल संसाधनों तक पहुँच, और अफगानिस्तान युद्ध द्वारा सेमीकंडक्टर के लिए मिनिरल खदानों तक पहुंच और भारत के मणिपुर, झारखंड और छत्तीसगढ़ में जारी संघर्ष।

3. राष्ट्रीयता और पहचान आधारित टकराव (Ethno-nationalism and Identity Conflicts)

सत्ता पाने के लिए धर्म, नस्ल या भाषा के आधार पर देश में दक्षिणपंथी अथवा वामपंथी अलगाववादी संगठनों द्वारा आंदोलन या गृहयुद्ध करवाए जाते हैं।

उदाहरण: सीरिया में शिया-सुन्नी संघर्ष, अफ्रीका के विभिन्न जातीय संघर्ष और भारत में RSS - BJP द्वारा "बहुसंख्यक हिंदू खतरे में है" के नाम पर मुसलमानों के विरुद्ध नफरत फैलाना।

4. राजनीतिक लाभ और जन समर्थन प्राप्त करना (Rally-around-the-flag effect)

तानाशाह या अलोकप्रिय सरकारें देश के असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने व समर्थन पाने हेतु युद्ध शुरू करती हैं।

उदाहरण: वर्तमान में 75 साल के होने वाले मोदी जी और आर्थिक संकटों से घिरे शहवाज शरीफ अपने - अपने देशों में जनता के आंतरिक असंतोष से बचने के लिए युद्ध का सहारा ले रहे हैं।

5. आर्थिक संकट से ध्यान हटाना (Diverting from Economic Crisis) और मुक्ति पाना

युद्ध का माहौल जहां कमजोर आर्थिक संकट से जूझ रहे राष्ट्रों (जैसे वर्तमान में भारत और पाकिस्तानी सरकारों) ध्यान हटाता है और सैन्य उत्पादन में संलिप्त उनके मित्र राष्ट्रों के GDP को बढ़ता है और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाता है।

उदाहरण: विश्व युद्ध द्वितीय के दौरान अमेरिका में महामंदी का अंत।

6. आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ अभियान/युद्ध (War on Terror)

आतंकवादी संगठनों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर सैन्य कार्रवाई जो अक्सर किसी न किसी संबंधित राष्ट्र द्वारा प्रायोजित होती है।

उदाहरण: 9/11 के बाद अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान और इराक पर हमला, और वर्तमान में भारत - पाकिस्तान में जारी करवाई।

7. प्रॉक्सी वार और वैचारिक टकराव (Proxy Wars and Ideological Conflicts)

परमाणु हथियार सम्पन्न महाशक्तियाँ प्रत्यक्ष टकराव से बचते हुए, कमजोर और छोटे देशों के माध्यम से लड़ाई लड़ती हैं।

उदाहरण: सीरिया, यमन में ईरान और सऊदी अरब, अमेरिका और रूस की संलिप्तता। रूस यूक्रेन युद्ध में अमेरिका और यूरोपीय देशों की संलिप्तता।

8. हथियार उद्योग और सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ (Military-Industrial Complex)

हथियार निर्माता और रक्षा कंपनियाँ पूरी दुनिया में पहले चुनावों का फंडिंग करते हैं और उनके सहयोग से चुनी सरकारें चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रवाद के नाम पर हथियार खरीदने और युद्ध को बढ़ावा देती हैं ताकि उन कंपनियों को मुनाफा हो।

उदाहरण: अमेरिका में MIC का प्रभाव जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करता है।

9. तकनीकी परीक्षण और प्रदर्शन (Testing of New Military Technology)

नई तकनीक जैसे ड्रोन, साइबर हथियार, AI-आधारित हथियार युद्ध में परखे जाते हैं।

उदाहरण: इजराइल-गाजा और रूस यूक्रेन संघर्ष में ड्रोन और आयरन डोम का प्रयोग।

10. धार्मिक या सांस्कृतिक संघर्ष (Religious and Civilizational Conflicts)

धर्म आधारित वर्चस्व की लड़ाई जैसे इस्लामी देशों में जिहाद, भारत में दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा जारी क्षदम् धर्मयुद्ध, या "सभ्यता का संघर्ष"।

उदाहरण: मुस्लिम देशों में इस्लामिक स्टेट (ISIS) का उदय और उसके खिलाफ वैश्विक युद्ध। और भारत में RSS और उनसे जुड़े संगठनों का उदय।

अंत में मैं यही कहूंगा कि आधुनिक युग में युद्ध बहुआयामी कारणों से होते हैं। वे केवल सीमाओं की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक सत्ता, वैश्विक रणनीति, पूंजीवादी लालच और वैचारिक प्रभुत्व के साधन बन चुके हैं। आम जनता को इसके घातक परिणाम भुगतने पड़ते हैं, जबकि मुट्ठी भर शक्तिशाली वर्ग इससे लाभ कमाते हैं।

(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के हृदय रोग विभाग में प्रोफसर हैं। विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं।)