मोदी जी ये क्या हो रहा है... : कहार संघ की पालकी ढोने में व्यस्त, आरक्षण डकारने के लिए ICAR में छुट्टी के दिन जारी हो गया नियुक्ति पत्र

राजेश पटेल
पूरा देश महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले, संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती और पिछड़ों के मसीहा मंडल कमीशन के अध्यक्ष बीपी मंडल की पुण्यतिथि मनाने में व्यस्त है। इसी बीच ICAR ( Indian Council of Agricultural Reseearch) जिसमें मेगा यूनिवर्सिटी चल रही है और यूजीसी के नियम से चलती है जिसमें 4 डीम्ड यूनिवर्सिटी चलती है ,छुट्टियों के दौरान आरक्षण के नियमों को ताक पर रख वैज्ञानिकों की नियुक्ति का खेल जारी है। छुट्टियों का समय इसलिए चुना कि विरोध की गुंजाइश न रहे।
डीम्ड यूनिवर्सिटी का नाम है आईसीएआर। फुल फार्म- इंडियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च। हिंदी नाम- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद। पूरा खेल समझने के लिए पूरी रिपोर्ट पढ़नी होगी। खासकर ओबीसी और एससी-एसटी के प्रबुद्ध वर्ग को। उन नेताओं को भी पढ़नी चाहिए, जो समाजिक न्याय की खाल ओढ़कर रंगुआ सियार बने हुए हैं।
विस्तार...
1975 में भारत के कृषि मंत्री जगजीवन राम (बाबूजी) थे। उन्होंने यूजीसी के नियमों के तहत संचालित सभी विश्वविद्यालयों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों के लिए एससी-एसटी आरक्षण को लागू करवा दिया था। मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद पिछड़ों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई। चूंकि आईसीएआर सोसायटी एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड एक सोसायटी है, सो 1993 में सोसायटी की बैठक की कार्यवाही में एक लाइन का प्रस्ताव लाकर रिजर्वेशन को बंद कर दिया गया। तभी से इस संस्थान में नियुक्तियों में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया जाता।
2023 में विज्ञापन संख्या 3 /2023 के माध्यम से कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग द्वारा 368 पदों की रिक्तियां निकाली गईं। इनमें 80 प्रधान वैज्ञानकों और सीनियर साइंटिस्ट्स के 288 पदों पर नियुक्तियां की जानी थीं। इस विज्ञापन में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इन सभी पदों को एकल बताते हु ओबीसी, एससी और एसटी के लिए आरक्षण की बात को ही खत्म कर दिया गया था। विज्ञापन में साफ-साफ शब्दों में लिखा गया था कि All the vacancies are un-reserved. इसके खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अक्टूबर 2024 में याचिका दायर की गई। सात महीने तक आईसीएआर का कोई प्रतिनिधि हाजिर नहीं हुआ। आईसीएआर ने अपना मुखौटा के रूप में कुछ लोगों को खड़ा कर माननीय दिल्ली हाई कोर्ट मआपत्ति दर्ज कराई कि यह मामला तो हाईकोर्ट का है ही नहीं। इसे कैट CAT में भेजा जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने इसे कैट के पास भेज दिया। कैट में इसकी सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तिथि मुकर्रर है। ओबीसी, एससी और एसटी के अप्लीकेंट इसका इंतजार ही कर रहे हैं कि 11 और 12 अप्रैल को छुट्टियों के दिन नियुक्ति पत्र जारी किए जाने लगे।
ओबीसी और एससी-एसटी का कितना हुआ नुकसान
यदि इन नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधानों का पालन किया जाता तो ओबीसी के 99-100 और एससी-एसटी को तकरीबन 79-80 सीटों पर नियुक्तियां मिल जातीं। यानि पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज की करीब 180 सीटों पर डाका डाला गया है। खास बात यह है कि इस विज्ञापन में साजिशन एक से ज्यादा पदों को भी एकल करके विज्ञापित किया गया है। प्रधान वैज्ञानिकों के 35 विषयों की भर्ती में 17 विषयों में एक से ज्यादा पद हैं। कुल एकल पद 18 तथा कुल एक से अधिक पद 62 हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिकों के 63 विषयों की भर्ती में 46 विषयों में एक से ज्यादा पद हैं। कुल एकल पद 17 ही हैं। एक से अधिक पद 271 हैं। चूंकि चयन समिति में सवर्णों का बोलबाला है, लिहाजा खुला खेल फर्रूखाबादी चल रहा है।
विपक्ष के विरोध के चलते तो मोदी ने लेटरल इंट्री वापस ले ली, यहां बदस्तूर जारी
2024 में जब यूपीएससी ने 45 पोस्ट के लिए लेटरल इंट्री के माध्यम से नियुक्ति करनी चाही तो विपक्षी नेताओं के साथ सरकार के कुछ सहयोगियों ने भी विरोध जताया था। नतीजा इस निर्णय को यूपीएससी ने तीन दिन के अंदर वापस ले लिया। यहां भी लेटरल इंट्री टाइप का ही मामला है। वरिष्ठ वैज्ञानिकों का भी रैंक केंद्र सरकार में अडर सेक्रेटरी के ही बराबर है। वही वेतनमान है। विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में यूजीसी की रोस्टर प्रणाली का भी विरोध हुआ तो उसमें सुधार करना पड़ा। सवाल उठता है कि आईसीएआर जब यूजीसी के नियमों के ही तहत चलता है तो यहां प्रधान तथा वरिष्ठ वैज्ञानिकों की सीधी भर्ती में आरक्षण क्यों नहीं।
मामले की सुनवाई 28 अप्रैल को कैट में होनी है तो नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों
इस मामले की सुनवाई कैट में इसी माह की 28 तारीख को होनी है तो इसके पहले नियुक्ति पत्र कैसे जारी कर दिया गया। 11 अप्रैल को महात्मा फुले की जयंती थी। 12 अप्रैल को महीने का दूसरा शनिवार। नियुक्ति पत्र जारी करने के लिए यही तारीखें क्यों चुनी गईं। दोनों दिन छुट्टी थी। एससी और एसटी के खिलाफ हो रही सुनियोजित साजिश की बू इसी से आ रही है।
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