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War : युद्ध किसके लिए वरदान और किसके लिए अभिशाप?

Sachchi Baten Thu, May 8, 2025

प्रो. डॉ. ओम शंकर

युद्ध कौन चाहता है, क्यों चाहता है, इससे किसको लाभ होता है और किसको हानि? अंधभक्त अथवा अभिजात्य वर्ग युद्ध क्यों चाहते हैं? क्या कोई व्यापारी हानि के लिए कोई धंधा कर सकता है कभी?

दुनिया में युद्ध कहीं भी हो, कोई उसमें जीतता और दूसरा उसमें हारता है। यह समझना मुश्किल नहीं कि युद्ध वो कभी नहीं चाहेगा जिनका उससे नुकसान होगा। युद्ध वही लोग चाहेंगे जिनको युद्ध से लाभ होगा। जैसे कि आपदा में अवसर तलाशने वाले चच्चा, उनके अज़ीज़ मित्रगण और इस देश में नफरत की फैक्ट्री चलाने वाले मामू लोग जिनको करोना और टिड्डियों में भी हिंदू-मुस्लिम दिखता है।

आज मैं वर्तमान में भारत - पाकिस्तान के बीच शुरू हुए युद्ध की स्थिति में एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करूंगा, जो यह दिखाएगा कि कोई भी युद्ध, कितना भी विनाशकारी और त्रासद क्यों न हो, कुछ व्यक्तियों, संस्थाओं और क्षेत्रों के लिए राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से लाभकारी होता है।

1. सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ (Military-Industrial Complex – MIC)

हर युद्ध में सैन्य उपकरणों की आवश्यकता होती है। ये उपकरण सभी देश नहीं बनाते हैं। जैसे कि भारत अपने युद्ध उपकरणों की खरीद अक्सर अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे देशों से करता है। युद्ध की स्थिति में इन देशों के रक्षा उद्योग से संबंधित कंपनिया भारत को ये उपकरण या तो सीधे बेचेंगे या फिर मोदी जी के मित्र पूंजीपतियों के साथ गठबंधन बनाकर। जैसे रफाल डील में भारत के अंबानी और फ्रांस के साथ महंगी डील हुई थी।

लाभार्थी:

हथियार निर्माता कंपनियाँ: जैसे Lockheed Martin, Raytheon, BAE Systems, और भारत में DRDO—इनको भारी मात्रा में रक्षा अनुबंधों से लाभ होता है।

निजी सैन्य कंपनियाँ: जैसे Blackwater (अब Academi)—युद्ध क्षेत्रों में सुरक्षा और लॉजिस्टिक्स सेवाओं से लाभ उठाती हैं।

मोदी जी जैसे राजनीतिज्ञ इससे चुनावी चंदा प्राप्त करते हैं और जीतने के बाद अपने देश की रक्षा परियोजनाओं में नीतिगत बदलाव के माध्यम से इन कंपनियों को लाभ पहुंचाते हैं।

तंत्र: युद्ध के कारण हथियारों, उपकरणों और सेवाओं की माँग बढ़ती है, जिससे हथियार बनाने वाली कंपनियों को आमदनी और प्रभाव बढ़ाने का मौका मिलता है।

2. अमेरिका, रूस, चीन जैसी वैश्विक महाशक्तियाँ युद्ध के माध्यम से—

क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखती हैं (जैसे मध्य पूर्व में अमेरिका)।

अपने ऊर्जा और खनिज संसाधनों (तेल, दुर्लभ खनिज) के भंडारण को बढ़ाती, सुरक्षित और संरक्षित करती हैं।

प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करती हैं (जैसे सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और यूक्रेन में जारी प्रॉक्सी युद्ध के परिणाम)।

भारत के पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देश चीन से सैन्य सहायता या राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

तंत्र: युद्ध को अक्सर दक्षिणपंथी/वामपंथी नफरतकरी सरकारों/संगठनों द्वारा जनता के समक्ष शक्ति प्रदर्शन, तथा सैनिकों को राष्ट्रवाद के नाम पर नियंत्रित करने के लिए एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है।

3. लाभार्थी: संसाधन और ऊर्जा कंपनियाँ

तेल और गैस कंपनियाँ: जैसे ExxonMobil, Aramco, Halliburton।

मित्र पूंजीपतियों की खनन कंपनियाँ: जैसे अफगानिस्तान में लिथियम और भारत के झारखंड/छत्तीसगढ़/नॉर्थ ईस्ट में रणनीतिक खनिजों तक अपनी पहुंच प्राप्त करती हैं।

तंत्र: मित्र पूंजीपतियों को युद्ध के बाद पुनर्निर्माण और अन्वेषण के ठेके मिलते हैं या शासन परिवर्तन के ज़रिए संसाधनों तक सीधी पहुँच मिलती है।

4. युद्ध से मुनाफा कमाने वाले व्यापारी

कमोडिटी व्यापारी: तेल, सोना, गेहूं की कीमतें युद्ध के दौरान बढ़ती हैं, जिससे सट्टेबाज लाभ उठाते हैं।

पुनर्निर्माण कंपनियाँ: युद्ध के बाद पुनर्निर्माण में भारी ठेके मिलते हैं (जैसे इराक में Bechtel)।

तंत्र: युद्ध से उत्पन्न अस्थिरता मित्र पूंजीपतियों को आर्थिक सट्टेबाजी और एकाधिकार नियंत्रण के लिए अवसर देती है।

5. राष्ट्रवादी और तानाशाही शासकों/संगठनों को लाभ

कमज़ोर शासक/नेता जनता को पुनः एकजुट करने और आंतरिक विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए युद्ध का प्रयोग करते हैं।

दक्षिणपंथी राजनीतिक दल/संगठनो द्वारा युद्धकालीन राष्ट्रवाद के माध्यम से ऊपजी आंधी में असहमति के आवाज़ों को कुचल देता है।

तंत्र: युद्ध "देशभक्ति" का आह्वान बन जाता है, लोकतंत्र व नागरिक स्वतंत्रताएँ हाशिए पर चली जाती हैं और बहुसंख्यक जनता को देशभक्ति का अफीम चटाकर गुलाम बना लिया जाता है। इसलिए ये नफरतकरी युद्ध चाहते हैं।

6. मीडिया और प्रचार तंत्र

लाभार्थी:

न्यूज़ कॉर्पोरेशन: युद्ध से टीवी की टी आर पी रेटिंग बढ़ती है, जिससे मित्र पूंजीपतियों के विज्ञापन राजस्व में वृद्धि होती है।

सरकारें: युद्ध को प्रचार और जनमत को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग करती हैं।

तंत्र: युद्ध की लगातार कवरेज "इन्फोटेनमेंट" का चक्र बनाती है और युद्ध को अक्सर महिमामंडित किया जाता है।

7. धार्मिक या वैचारिक चरमपंथियों को लाभ

युद्ध के दौरान आतंकी संगठने युद्ध क्षेत्र में भर्ती का केंद्र बन जाते हैं।

RSS जैसे दक्षिणपंथी धार्मिक कट्टरपंथी संगठने युद्ध को सभ्यताओं या धर्मों के संघर्ष के रूप में प्रस्तुत कर लोगों की भावनाओं को भड़काकर उनका धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक लाभ उठाते हैं।

तंत्र: युद्ध लोगों को उग्र बनाता है और पहचान-आधारित ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है BJP/RSS/ मोदी जी जैसे संगठनों और नेताओं को लाभ पहुंचाता है।

8. युद्धग्रस्त देशों के स्थानीय अभिजात्य वर्ग

के भ्रष्ट राजनेता/ठेकेदार/मित्र पूंजीपति काला बाजारी और विदेशी सहायता और आर्थिक गबन से लाभ उठाते हैं।

युद्ध के दौरान वो हिंसा के माध्यम से शक्ति के स्रोतों, भौतिक संसाधनों, उत्पादन के स्रोतों और सत्ता पर नियंत्रण कर लेते हैं।

तंत्र और शासन व्यवस्था के ध्वस्त होने से अराजकता फैलती है और अवैध धन संचय का मार्ग खुलता है। जैसे करोना कल में आपने मोदी जी के मित्र पूंजीपतियों को लाख करोड़ पति बनते देखा था, आपदा में अवसर तलाशकर!

9. शिक्षाविद, थिंक टैंक और विश्लेषक

युद्ध के कारण रक्षा रणनीतिकार और शोधकर्ता के विशेषज्ञता की मांग बढ़ती है।

नीति थिंक टैंक: सरकार और कंपनियों से रक्षा संबंधी शोध के लिए फंडिंग प्राप्त करते हैं।

युद्ध के समय "सुरक्षा विशेषज्ञों" की मांग बढ़ती है जो नीति निर्माण और विश्लेषण में लगे रहते हैं।

10. तकनीकी और निगरानी क्षेत्र की कंपनियाँ

तकनीकी कंपनियाँ: युद्ध AI, साइबर सुरक्षा और निगरानी तकनीक में संलिप्त कंपनियों को विकास करने और लाभ कमाने का मौका मिलता है।

बिग डेटा कंपनियाँ: ड्रोन, चेहरा पहचानने वाली तकनीक और खुफिया निगरानी में अनुबंध प्राप्त करती हैं।

रक्षा क्षेत्र की कंपनियों के लिए युद्ध तकनीकी प्रगति का चालक बनता है, जिसका लाभ युद्ध सामग्री बनाने वाली कंपनिया आगे चलकर उठाती हैं।

अर्थात युद्ध एक नियंत्रित अराजकता है जो मुट्ठीभर शक्तिशाली लोगों, मित्र पूंजीपतियों, धार्मिक संगठनों, कमजोर राजनीतिज्ञों को हीं लाभ पहुंचाती है।

एक ओर युद्ध जहां बहुसंख्यक गरीबों को विस्थापित, कमजोर और नष्ट करता है, गुलाम बनाता है, वहीं मुट्ठीभर अभिजात वर्ग के बीच शक्ति को केंद्रीकृत करता है, इसलिए वो आम जनता की भावनाओं को भड़काकर युद्ध चाहते हैं।

युद्ध राष्ट्रीय संपदाओं और संसाधनों का अभिजात्य उच्च वर्गों की ओर पुनर्वितरण करता है। मतलब गरीबों को और गरीब तथा अमीरों को और अमीर बनाया है, इसलिए वो शांति और बुद्ध के बदले अराजकता और युद्ध चाहते हैं।

युद्ध सत्ताधारी मुट्ठीभर उच्च वर्गों और पूंजीपतियों द्वारा जारी संसाधनों की लूट, उनकी कमजोर होती आंतरिक राजनीतिक हालातों या उनके लूट से जनित देश में व्याप्त आर्थिक संकट को छुपाता है।

ऐतिहासिक उदाहरण:

इराक युद्ध (2003): अमेरिकी तेल कंपनियाँ, Halliburton जैसे ठेकेदार लाभ में रहे और क्षेत्रीय अस्थिरता बनी रही।

द्वितीय विश्व युद्ध: अमेरिका एक महाशक्ति के रूप में उभरा, MIC मजबूत हुआ और युद्ध अर्थव्यवस्था ने महामंदी को समाप्त किया।

रूस-यूक्रेन युद्ध: वैश्विक हथियार विक्रेता, अमेरिकी गैस निर्यातक और NATO विस्तार से जुड़े हित समूह लाभान्वित हुए।

करोना काल की विपदा ने पूरी दुनिया के पूंजीपतियों को मजबूत और आम लोगों को कमजोर किया।

(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में हृदय रोग विभाग के प्रोफेसर हैं तथा विभागाध्यक्ष रह चुके हैं।)