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तू जमाना बदल : इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच पर कब्जा

पत्रकार राजेश पटेल द्वारा लिखित पुस्तक 'तू जमाना बदल' से...

आजाद भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी श्रद्धेय यदुनाथ सिंह तब विधायक भी नहीं थे। बात वर्ष 1979 की है। वर्ष 1977 के आम चुनाव में मुगलसराय विधानसभा सीट से निर्दल ही मैदान में कूद पड़े थे। इसके पहले के आम चुनाव में भी मुगलसराय से ही निर्दल भाग्य आजमाया था। उस समय भी कम अंतर से हारे थे। वर्ष 1977 में भी जनता पार्टी की लहर के बावजूद यदुनाथ सिंह मात्र 1280 मतों के अंतर से हारे थे। विजयश्री जनता पार्टी के उम्मीदवार श्री गंजीप्रसाद यादव जी को मिली थी। यदुनाथ सिंह ने चुनाव परिणाम को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी।

कई तारीखों के बाद इस चुनाव याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। यदुनाथ सिंह ने साथियों से कहा कि न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार का घुन लग गया है। इसे ठीक करना ही होगा। उस दिन तो वे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से लौट आए, लेकिन कोलना निवासी सुशील बाबा (अब नहीं रहे), अदलहाट के शोभनाथ सिंह पटेल, मुगलसराय के आसपास के गांवों के निवासी मोहनलाल सोनकर, शकुंतलाल यादव और शमीम अहमद मिल्की, हरबंश सिंह सहित अन्य साथियों को साथ लेकर इलाहाबाद पहुंचे। अपने किसी काम से बाहर ही रह गए, लेकिन पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार शेष चारो साथी हाईकोर्ट की जिस बेंच ने इनकी याचिका को खारिज किया था, उसमें घुस गए।

राजेंद्र सिंह और रामआसरे सिंह बाहर ही थे। उस समय जस्टिस अमिताभ बनर्जी अपने चैंबर में थे। कोर्ट में जज की कुर्सी खाली थी, सो सुशील बाबा को उस पर आसीन करा दिया गया। शमीम अहमद मिल्की जनता के वकील बन गए। एक साथी पेशकार बन गया। इसी तरह से सरकार के वकील की भी भूमिका में एक साथी आ गए। करीब आधे घंटे तक हाईकोर्ट की इस बेंच पर इन लोगों का कब्जा रहा। अदालत की कार्यवाही समानांतर चलती रही। इसी बीच एक बार जस्टिस बनर्जी आए भी, लेकिन यहां का नाटकीय घटनाक्रम देखकर वे फिर अपने चैंबर में जाकर बैठ गए। उन्होंने पुलिस को सूचना भेजवाई। कुछ ही देर में कोर्ट परिसर में मौजूद अधिवक्ताओं के बीच यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। यदुनाथ सिंह भी चूंकि परिसर में ही थे, सो वे भी भागकर आए। अधिवक्ता कक्ष में घुसना चाहते थे और यदुनाथ सिंह गेट पर दीवार की तरह खड़े हो गए। कहा कि खबरदार इधर जो आया। इसके बावदूद कुछ वकील जुटे और यदुनाथ सिंह व इनके साथियों पर हमला कर दिया। कुछ ही देर में पुलिस ने आकर सभी को हिरासत में ले लिया। जो साथी बाहर थे, वे खिसक लिए।

बाद में पुलिस ने एफआइआर दर्ज कर सभी को जेल भेज दिया। एक अधिवक्ता ने हाईकोर्ट की अवमानना का भी केस दायर कर दिया। इसकी सुनवाई जस्टिस जगमोहन सिन्हा व एक अन्य जज की संयुक्त बेंच में शुरू हुई। चूंकि मामला हाईकोर्ट की बेंच पर कब्जा का था, सो कोई भी वकील यदुनाथ सिंह व इनके साथियों की पैरवी करने के लिए तैयार नहीं हुआ। लिहाजा ये लोग खुद ही अपने समर्थन में बहस करते थे। इसी बीच शमीम अहमद मिल्की ने केस से जुड़े सभी दस्तावेजों की हिंदी में प्रतियों की मांग कर दी। लंबी बहस के बाद जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने इनकी मांग को स्वीकार करते हुए हिंदी में प्रतियां उपलब्ध कराने के आदेश दिए। हालांकि इसमें समय लगा। बाद में अदालत की अवमानना के इस केस में यदुनाथ सिंह व इनके साथियों को तीन-तीन माह के सादे कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिसे बनारस जेल में काटा भी।